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जैव विविधता और पर्यावरण

आर्कटिक क्षेत्र में मीथेन रिसाव

  • 05 Nov 2020
  • 5 min read

प्रिलिम्स के लिये:

हाइड्रेट्स, लापतेव सागर

मेन्स के लिये:

ध्रुवीय क्षेत्रों में पिघलती बर्फ का कारण, प्रभाव तथा इससे निपटने के प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रूस और स्वीडन के साझा नेतृत्त्व में बने वैज्ञानिकों के एक दल ने आर्कटिक क्षेत्र में पूर्वी साइबेरियाई सागर के तट के निकट मीथेन गैस रिसाव के प्रमाण मिलने की पुष्टि की है।

प्रमुख बिंदु:

  • गौरतलब है कि आर्कटिक क्षेत्र की ढलानों की तलछट में बड़ी मात्रा में जमी हुई मीथेन और कुछ अन्य गैसें भी पाई जाती हैं, जिन्हें हाइड्रेट्स (Hydrates) के रूप में जाना जाता है।
  • इस शोध में शामिल वैज्ञानिकों के अनुसार, वर्तमान में गैस के अधिकांश बुलबुले पानी में घुले हुए थे, परंतु सतह पर मीथेन का स्तर सामान्य स्थिति की तुलना में 4 से आठ गुना अधिक पाया गया, जो कि धीरे-धीरे वायुमंडल में फैल रहा है।
  • वैज्ञानिकों ने रूस के निकट ‘लापतेव सागर’ (Laptev Sea) में भी 350 मीटर की गहराई में उच्च स्तर पर मीथेन के मिलने की पुष्टि की है।
  • इस क्षेत्र में मीथेन की सांद्रता लगभग 1600 नैनोमोल्स प्रति लीटर बताई गई।

मीथन रिसाव के दुष्प्रभाव:

  • वैज्ञानिकों के अनुसार, मीथेन में वायुमंडल को गर्म करने की क्षमता कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में बहुत अधिक होती है (20 वर्षों में 80 गुना)।
  • इससे पहले ‘द यूनाइटेड स्टेट्स जियोलॉजिकल सर्वे’’ (The United States Geological Survey) ने अप्रत्याशित जलवायु परिवर्तन के लिये आर्कटिक के हाइड्रेट्स की अस्थिरता को चार सबसे गंभीर स्थितियों में से एक बताया था।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, वर्तमान में इस रिसाव के कारण जलवायु परिवर्तन पर कोई बड़ा प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है परंतु पूर्वी साइबेरिया में मीथेन हाइड्रेट्स की अस्थिरता लगातार जारी रहेगी, आगे चलकर जिसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
  • जमी हुई मीथेन की सुभेद्यता के मामलों में आर्कटिक क्षेत्र का मुद्दा सबसे अहम है, इस क्षेत्र को ‘स्लीपिंग जायंट्स ऑफ द कार्बन सायकल’ (Sleeping Giants of the Carbon Cycle) के नाम से भी जाना जाता है।

अन्य चुनौतियाँ:

  • वर्तमान में आर्कटिक क्षेत्र का तापमान में वैश्विक औसत की तुलना में दोगुनी गति से बढ़ रहा है, ऐसे में मीथेन के वायुमंडल में पहुँचने को लेकर चिंताए और भी बढ़ गई हैं।
  • इस वर्ष जनवरी से जून के बीच साइबेरिया के तापमान में सामान्य से 5°C की वृद्धि दर्ज की गई, इस क्षेत्र के तापमान में हुई वृद्धि के लिये मानवीय गतिविधियों के कारण मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड के अत्यधिक उत्सर्जन को उत्तरदायी बताया गया है।
  • पिछले वर्ष सर्दियों में समुद्री बर्फ असामान्य रूप से जल्दी ही पिघल गई और इस वर्ष की सर्दियों में बर्फ जमने की शुरुआत अभी तक नहीं हुई है, जिसमें पहले से ज्ञात किसी भी समय की तुलना में काफी देरी हो चुकी है।

कारण:

  • इस क्षेत्र में उत्पन्न अस्थिरता के लिये सबसे संभावित कारण पूर्वी आर्कटिक में गर्म अटलांटिक धाराओं के प्रवेश को माना जा रहा है।
  • इस भौगोलिक घटना के लिये भी मानवीय गतिविधियों को उत्तरदायी बताया गया है।

जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने हेतु प्रयास:

  • जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिये विश्व के अधिकांश देशों द्वारा पेरिस समझौते (Paris Agreement) के तहत वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर (Pre-Industrial level) से 2 डिग्री सेल्सियस कम रखने की प्रतिबद्धता पर सहमति व्यक्त की गई।
  • कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये यूरोपीय संघ (European Union) द्वारा ग्रीन डील की अवधारणा के तहत कई महत्त्वपूर्ण योजनाओं की रूपरेखा प्रस्तुत की गई।

स्रोत: द हिंदू

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