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उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति का मामला

  • 08 Dec 2017
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में देश के कुछ उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा उम्मीदवार जजों के नाम सुझाए गए। इसके बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री तथा राज्यपाल द्वारा इनमें से कुछ नामों को लेकर आपत्ति जाहिर की गई।

प्रमुख बिंदु

  • कर्नाटक उच्च न्यायालय में नियुक्ति के लिये जिन न्यायाधीशों के नामों की संस्तुति की गई, कर्नाटक के राज्यपाल ने उनमें से कुछ की सक्षमता पर प्रश्न उठाते हुए उनकी नियुक्ति पर आपत्ति ज़ाहिर की।
  • साथ ही कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने भी इन नामों को लेकर आशंका व्यक्त करते हुए कहा है कि सुझाए गए नाम समाज के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि इन नामों के संपूर्ण प्रस्ताव को हाई कोर्ट के पास पुनर्विचार के लिये पुनः भेज दिया जाए।
  • सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने राज्यपाल की आपत्ति पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि राज्यपाल ने न ही उन उम्मीदवारों के नाम बताये हैं और न ही उन आधारों का उल्लेख किया है, जिन पर उन्हें अक्षम बताया गया है।
  • साथ ही कॉलेजियम ने कहा कि जिन लोगों के नामों की अनुशंसा की गई है उनके प्रदर्शनों और उनकी ईमानदारी का पूरी तरह वस्तुनिष्ठ आकलन हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के स्तर पर किया गया है और जहाँ तक उनकी ईमानदारी, चरित्र और व्यवहार आदि की बात है, खुफिया ब्यूरो (IB) ने इसकी जांच करने के बाद कहा है कि निजी रूप से और एक पेशेवर के रूप में उनकी छवि अच्छी है और उनकी सत्यनिष्ठा के खिलाफ कोई भी प्रमाण सामने नहीं आया है।
  • हाई कोर्ट कॉलेजियम ने पहले की बैठकों में ही उम्मीदवारों की योग्यता, अनुभव, प्रदर्शन और व्यवहार के बारे में विस्तृत चर्चा की थी और इसका ब्यौरा इन बैठकों की  विवरण में दर्ज है। पुनर्विचार की बात पर कॉलेजियम ने कहा कि चूंकि हाई कोर्ट का कॉलेजियम इन बातों पर पहले ही गौर कर चुका है, इसलिए अब इन पर दुबारा गौर करने की ज़रूरत नहीं है।

न्यायपालिका में कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर प्रायः सवाल उठते रहे हैं, लेकिन न्यायपालिका की 'स्वतंत्रता' का हवाला देकर हमेशा से इसका बचाव किया जाता रहा है। हालाँकि अब पहली बार तय किया गया है कि कॉलेजियम के फैसलों को सार्वजनिक किया जाएगा। विदित हो कि कॉलेजियम व्यवस्था ने अपने फैसले शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड करने का फैसला किया है। कॉलेजियम व्यवस्था की कार्यवाही में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से उसके फैसलों को वेबसाइट पर अपलोड किया जाएगा।

कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर विवाद इसलिये है क्योंकि यह व्यवस्था नियुक्ति का सूत्रधार और नियुक्तिकर्त्ता दोनों स्वयं ही है। इस व्यवस्था में कार्यपालिका की भूमिका बिल्कुल नहीं है या है भी तो बस मामूली। 

क्या है कॉलेजियम व्यवस्था? 

  • देश की अदालतों में जजों की नियुक्ति की प्रणाली को कॉलेजियम व्यवस्था कहा जाता है। 
  • कॉलेजियम व्यवस्था के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में बनी वरिष्ठ जजों की समिति जजों के नाम तथा नियुक्ति का फैसला करती है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय में जजों की नियुक्ति तथा तबादलों का फैसला भी कॉलेजियम ही करता है। उच्च न्यायालय के कौन से जज पदोन्नत होकर सर्वोच्च न्यायालय जाएंगे, यह फैसला भी कॉलेजियम ही करता है। 
  • उल्लेखनीय है कि कॉलेजियम व्य‍वस्था का उल्लेख न तो मूल संविधान में है और न ही उसके किसी संशोधित प्रावधान में।
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