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भारतीय राजव्यवस्था

न्यायाधीशों की नियुक्ति

  • 13 Dec 2019
  • 4 min read

प्रीलिम्स के लिये:

कोलेजियम प्रणाली

मेन्स के लिये:

न्यायाधीशों की संख्या तथा कोलेजियम प्रणाली से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि विभिन्न उच्च न्यायालयों में नियुक्ति के लिये कोलेजियम द्वारा अनुशंसित 213 पद केंद्र सरकार की स्वीकृति न मिलने के कारण लंबित हैं।

मुख्य बिंदु:

  • 1 दिसंबर, 2019 तक उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिये स्वीकृत कुल पदों के 38% पद रिक्त हैं।
  • आंध्र प्रदेश और राजस्थान सहित कुछ राज्यों के उच्च न्यायालयों में वास्तविक क्षमता के आधे से भी कम न्यायाधीश हैं।

नियुक्ति संबंधी प्रावधान:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये छह महीने की समयावधि तय की है जिनके नाम पर सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम, उच्च न्यायालय और सरकार ने सहमति व्यक्त की है।
  • उच्च न्यायपालिका के लिये न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया पर प्रधानमंत्री तथा राष्ट्रपति के अंतिम अनुमोदन हेतु निर्दिष्ट समय-सीमा तय की गई है।
  • मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (Memorandum of Procedure) के अनुसार, एक पद रिक्त होने के कम-से-कम छह महीने पहले नियुक्ति की प्रक्रिया प्रारंभ की जानी चाहिये तथा उसके बाद छह सप्ताह का समय राज्य द्वारा केंद्रीय कानून मंत्री को सिफारिश भेजने के लिये निर्दिष्ट किया गया है। तत्पश्चात् चार सप्ताह के अंदर प्रक्रिया संबंधी संक्षिप्त विवरण सर्वोच्च न्यायालय के कोलेजियम के पास भेजा जाता है।
  • एक बार जब कॉलेजियम द्वारा नामों की मंजूरी दे दी जाती है तो कानून मंत्रालय को इसे तीन सप्ताह में प्रधानमंत्री को सिफारिश के लिये भेजना होगा।
  • गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति तथा तबादले के लिये राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम बनाया था, जिसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस अधिनियम को यह कहते हुए असंवैधानिक करार दिया था कि ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग’ अपने वर्तमान स्वरूप में न्यायपालिका के कामकाज में एक हस्तक्षेप मात्र है।
  • हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को भेजे गए नामांकनों पर कार्रवाई नहीं करने के लिये केंद्र सरकार को फटकार लगाई थी।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अगर कोलेजियम द्वारा इन नामों को पुनः नामांकित किया जाता है तो सरकार के पास न्यायाधीशों को नियुक्त करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच मतभेदों का सार्वजनिक होना लोकतंत्र के लिये नुकसानदायक है। संसदीय लोकतंत्र में कार्यपालिका और न्यायपालिका के अपने-अपने अधिकार क्षेत्र हैं। संविधान के तहत दोनों की सुपरिभाषित भूमिकाएँ हैं और अदालतों की भूमिका अंततः विधि का शासन सुनिश्चित कराने की है। न्यायपालिका और कार्यपालिका दोनों अपना-अपना काम करती हैं। विधायिका कानून बनाती है और इसे लागू करना कार्यपालिका का तथाविधायिका द्वारा बनाए गए कानूनों के संविधान सम्मत होने की जाँच करना न्यायपालिका का काम है।

स्रोत-द हिंदू

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