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भारतीय राजव्यवस्था

महामारी में ग्राम पंचायतों का प्रशासन

  • 23 Jul 2020
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिये

पंचायती राज व्यवस्था

मेन्स के लिये

पंचायतों के प्रशासन पर COVID-19 महामारी का प्रभाव, भारत में पंचायती राज व्यवस्था के विभिन्न पहलू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार को ग्राम पंचायतों के लिये प्रशासक की नियुक्ति करते समय निजी व्यक्तियों की अपेक्षा सरकारी अधिकारियों को प्राथमिकता देने का अंतरिम आदेश दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • गौरतलब है कि महाराष्ट्र में तकरीबन 14000 ग्राम पंचायतों के चुनाव कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण स्थगित कर दिये गए हैं, ऐसे में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने राज्य भर में ग्राम पंचायतों के प्रशासन को सुचारु रूप से चलाने के लिये यह अंतरिम आदेश दिया है।
  • हालाँकि इस मामले से संबंधित सभी याचिकाओं की सुनवाई बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा सामूहिक तौर पर जल्द ही की जाएगी।
  • विवाद
    • दरअसल बॉम्बे उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति नितिन जामदार और न्यायमूर्ति अभय आहूजा की खंडपीठ राज्य में महाराष्ट्र सरकार द्वारा 25 जून को जारी अध्यादेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे थे, जिसके माध्यम से राज्य सरकार ने महाराष्ट्र ग्राम पंचायत अधिनियम की धारा 151 (1) (a) में संशोधन किया था।
    • राज्य सरकार के इस अध्यादेश के पश्चात् राज्य ग्रामीण विकास विभाग द्वारा 13 जुलाई को एक सरकारी संकल्प जारी किया गया, जिसके द्वारा संबंधित ज़िला परिषदों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों (CEOs) को अपने क्षेत्राधिकार में स्थित सभी ग्राम पंचायतों के लिये किसी भी व्यक्ति को ग्राम प्रशासक की नियुक्ति करने का अधिकार दिया गया।
    • साथ ही इस सरकारी प्रस्ताव में ज़िला परिषदों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों (CEOs) को यह भी निर्देश दिया गया कि वे इस कार्य के लिये ज़िला संरक्षक मंत्री (District Guardian Minister) की भी सहायता लें।
    • इसके बाद राज्य ग्रामीण विकास विभाग द्वारा 14 जुलाई को एक अन्य सरकारी संकल्प (GR) जारी किया गया, जिसमें स्पष्ट तौर पर कहा गया कि किसी भी व्यक्ति को बिना किसी पूर्व अनुभव के प्रशासक के पद पर नियुक्त किया जा सकता है।
    • इन आदेशों के बाद राज्य की कई ग्राम पंचायतों ने बॉम्बे उच्च न्यायालय में याचिका दायर की, जिसमें सरकार के इन आदेशों को चुनौती दी गई।

पृष्ठभूमि 

  • देश भर में कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी का प्रसार तेज़ी से होता जा रहा है और महाराष्ट्र इस महामारी से सबसे अधिक प्रभावित राज्य है, राज्य में वायरस से संक्रमित लोगों की कुल संख्या 3 लाख को भी पार कर गई है।
  • महामारी की इस गंभीर स्थिति में ग्राम पंचायतों के चुनावों का संचालन करना संभव नहीं है, किंतु यदि चुनाव नहीं किये जाते हैं तो इससे राज्य की ग्राम पंचायतों का संचालन और उनका कामकाज प्रभावित होगा, ऐसे में सरकार ने ग्राम पंचायतों के प्रशासन के लिये प्रशासक की नियुक्ति का निर्णय लिया था।
  • गौरतलब है कि महाराष्ट्र ग्राम पंचायत अधिनियम, 1959 में भी इस बात का प्रावधान किया गया है कि यदि किसी कारणवश निवर्तमान ग्राम पंचायत स्थगित हो जाती है, तो राज्य सरकार ग्राम पंचायत के प्रशासन के लिये एक प्रशासक की नियुक्ति करेगी और यह प्रशासक तब तक कार्य करेगा जब तक नई पंचायत गठित नहीं हो जाती है।
  • याचिकाकर्त्ताओं का पक्ष
    • याचिकाकर्त्ताओं के अनुसार, कानून में कहीं भी ग्राम पंचायत के प्रशासक के तौर पर निजी प्रशासकों की नियुक्तियों की अनुमति नहीं दी गई है और इस तरह की सामूहिक नियुक्तियों का स्थानीय शासन पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
    • गौरतलब है कि राज्य के विभिन्न विभागों में पर्याप्त मात्रा में सरकारी अधिकारी मौज़ूदा हैं, जिन्हें इस कार्य के लिये प्रशासक के रूप में नियुक्त किया जाता है, किंतु इसके बावजूद निजी प्रशासकों की नियुक्ति की अनुमति देना ज़ाहिर तौर पर एक राजनीतिक कदम प्रतीत हो रहा है।
    • राज्य में सदैव ही सरकारी अधिकारियों को प्रशासक के तौर पर नियुक्त करने की प्रथा रही है।
  • राज्य सरकार का पक्ष
    • इस संबंध में बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा जारी अंतरिम आदेश का विरोध करते हुए राज्य के महाधिवक्ता (Advocate-General) ने कहा कि यदि प्रशासकों की नियुक्ति नहीं की जाती है तो इससे ग्राम पंचायतों के प्रशासन में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
    • सरकार का प्रतिनिधित्त्व कर रहे राज्य के महाधिवक्ता ने कहा कि राज्य में काफी बड़ी संख्या में ग्राम पंचायतें मौजूद हैं और राज्य के सरकारी अधिकारी पहले से ही काम के अत्यधिक बोझ के तले दबे हुए हैं, जिसके कारण उन्हें इस पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता है।
  • उच्च न्यायालय का निर्णय
    • न्यायालय ने कहा कि कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण राज्य की सभी ग्राम पंचायतों में चुनाव कराना संभव नहीं है, ऐसे में यदि ग्राम पंचायत के प्रशासक की नियुक्त नहीं की जाती है, तो इससे ग्राम पंचायतों का कामकाज प्रभावित होगा।
    • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस बात का कोई भी कारण नहीं है कि सरकारी अधिकारियों और स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों को ग्राम पंचायत के प्रशासक के रूप में क्यों न नियुक्त किया जाए।
    • न्यायालय ने अंतरिम आदेश देते हुए कहा कि सरकार द्वारा जारी अध्यादेश के तहत नियुक्त किया जाने वाला प्रशासक, सरकारी कर्मचारी या स्थानीय प्रशासन का अधिकारी होना चाहिये।
    • न्यायालय द्वारा जारी अंतरिम आदेश के अनुसार, यदि इस कार्य के लिये किसी भी ग्राम पंचायत में निजी प्रशासक की नियुक्ति जाती है तो राज्य को इस संबंध में एक लिखित स्पष्टीकरण देना होगा।
    • हालाँकि यह उच्च न्यायालय का केवल अंतरिम आदेश (Interim Order) है और इस मामले की सुनवाई बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा जल्द ही की जाएगी।

निष्कर्ष

ग्राम पंचायतों के लिये प्रशासकों को नियुक्त करने का निर्णय राज्य में ग्राम पंचायतों का सुचारु प्रशासन सुनिश्चित करेगा, किंतु राज्य ग्रामीण विकास विभाग द्वारा जारी आदेश राजनीतिक मंशा से प्रेरित प्रतीत होते हैं, आवश्यक है कि उच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों का पालन किया जाए और ग्राम पंचायत के प्रशासक की नियुक्ति में पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए।

स्रोत: द हिंदू 

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