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दवाओं की ट्रैकिंग के लिये QR कोड

  • 06 Aug 2019
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

जल्द ही केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय दवाईयों के मुख्य घटकों के बारे में जानने हेतु दवा कंपनियों द्वारा भारत में दवा बनाने के लिये कोड लगाए जाने को अनिवार्य कर सकता है।

  • यदि इसे लागू किया जाता है, तो दवाओं के मूल घटकों और उनके संचलन आदि को इंगित करने तथा उनकी प्रामाणिकता सुनिश्चित करने के लिये सरकार द्वारा उठाया गया संभवतः यह पहला कदम होगा।

ट्रैकिंग के लिये QR कोड

  • दवाओं में इस्तेमाल किये जाने वाले सक्रिय फार्मास्यूटिकल घटक (Active Pharmaseutical Ingredient-API) की पैकेजिंग के प्रत्येक स्तर पर त्वरित प्रतिक्रिया (Quick Response-QR) कोड को अनिवार्य करने वाला एक मसौदा संशोधन तैयार है तथा जल्द ही इसे अधिसूचित किया जाएगा।
  • एक API दवा या कीटनाशक में मौजूद मूल दवा/घटक होता है जो जैविक रूप से सक्रिय होता है।
  • एक दवा के प्रभावी होने के लिये उसमें उपयोग किये गए API का प्रभावी होना अत्यंत आवश्यक है।
  • प्रथम प्रयास के तौर पर देश में निर्मित और आयात की जाने वाली प्रत्येक API (को ट्रैक एवं ट्रेस करने के लिये पैकेजिंग) के प्रत्येक स्तर पर इसके लेबल पर एक QR कोड होगा।
  • भारत वर्तमान में कुछ आवश्यक दवाओं के निर्माण हेतु APIs के लिये चीन पर निर्भर है।

इस प्रयास की आवश्यकता क्यों है?

  • सक्रिय फार्मास्यूटिकल घटक (Active Pharmaceutical Ingredient) किसी भी दवा को बनाने के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण घटक होता है।
  • आपूर्ति शृंखला के संबंध में इसकी सुरक्षा और शुद्धता हेतु उचित भंडारण APIs की गुणवत्तापूर्ण आपूर्ति में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • API निर्माताओं को उनके उत्पादों की गुणवत्ता और शुद्धता के लिये जवाबदेह एवं ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिये।
  • विभिन्न विक्रेताओं के API उनकी गुणवत्ता, विनिर्देशों और शुद्धता के संबंध में परिभाषित विशिष्टताओं के अनुसार नहीं होते हैं तथा कुछ मामलों में इनके वांछित परिणाम भी प्राप्त नहीं होते हैं।
  • अधिकांश APIs का निर्माण उपयुक्त स्थान पर नहीं किया जाता हैं अथवा जैविक सक्रिय पदार्थ बनाने हेतु इन API के उत्पादन में आवश्यकतानुसार वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग नहीं किया जाता है।

नकली दवाओं पर अंकुश लगाना

  • भारत में दवा विनियामक निकायों ने कई बार बड़े-बड़े दवा उत्पादकों द्वारा उत्पादित दवाओं को गुणवत्ता परीक्षण में फेल किया है।
  • भारत में नकली और गुणवत्ताहीन दवा समस्या के विषय में अभी भी स्पष्टता का अभाव है।
  • अमेरिका ने इस वर्ष अपनी विशेष 301 रिपोर्ट (Special 301 Report) में अनुमान लगाया कि भारतीय बाज़ार में बेची जाने वाली दवाओं में से 20 प्रतिशत नकली दवाएँ हैं तथा ये रोगी के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के लिये बहुत अधिक हानिकारक साबित हो सकती हैं।
  • हालाँकि वर्ष 2014 और वर्ष 2016 के दौरान भारत सरकार द्वारा किये गए एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण से यह निष्कर्ष प्राप्त हुआ कि लगभग 3 प्रतिशत दवाएँ मानकों के अनुरूप नहीं हैं तथा केवल 0.023 प्रतिशत दवाएँ ही नकली या गुणवत्ताहीन थीं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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