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रोगाणुरोधी प्रतिरोध: वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा के लिये खतरा

  • 30 Apr 2021
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) एक बढ़ती हुई वैश्विक समस्या है, जिसे बढ़ाने में वर्तमान कोविड -19 महामारी भी योगदान कर सकती है।

  • कोविड-19 रोगियों में प्रत्यक्ष रूप से एंटीबायोटिक के उपयोग के सबूत और अप्रत्यक्ष रूप से बिगड़ती आर्थिक स्थितियों के  खतरे के कारण AMR का खतरा बना हुआ है।

प्रमुख बिंदु:

रोगाणुरोधी प्रतिरोध (अर्थ):

  • रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance-AMR) का तात्पर्य किसी भी सूक्ष्मजीव (बैक्टीरिया, वायरस, कवक, परजीवी, आदि) द्वारा एंटीमाइक्रोबियल दवाओं (जैसे एंटीबायोटिक्स, एंटीफंगल, एंटीवायरल, एंटीमाइरियल और एंटीहेलमिंटिक्स) जिनका उपयोग संक्रमण के इलाज के लिये किया जाता है, के खिलाफ प्रतिरोध हासिल कर लेने से है। 
  • परिणामस्वरूप मानक उपचार अप्रभावी हो जाते हैं, संक्रमण जारी रहता है और दूसरों में फैल सकता है।
  • रोगाणुरोधी प्रतिरोध विकसित करने वाले सूक्ष्मजीवों को कभी-कभी "सुपरबग्स" के रूप में जाना जाता है।

रोगाणुरोधी प्रतिरोध का आधार:

  • प्रतिरोध जीन की उपस्थिति के कारण कुछ बैक्टीरिया आंतरिक रूप से प्रतिरोधी होते हैं और इसलिये रोगाणुरोधी दवाओं के लगातार संपर्क में आने के कारण अपने शरीर को इन दवाओं के अनुरूप ढाल लेते हैं। 
  • बैक्टीरिया प्रतिरोध को दो तरीके से प्राप्त कर सकते हैं:
    • शेष आबादी में मौजूद प्रतिरोधी जीन को साझा और स्थानांतरित करके, या
    • एंटीबायोटिक दवाएँ बैक्टीरिया को खत्म कर देती हैं या उनकी वृद्धि को रोक देती हैं, लेकिन लगातार इस्तेमाल से बैक्टीरिया में उत्परिवर्तन के कारण एक प्रतिरोध क्षमता पैदा हो जाती है।

रोगाणुरोधी प्रतिरोध के प्रसार के कारण:

  • रोगाणुरोधी दवा का दुरुपयोग और कृषि में अनुचित उपयोग।
  • दवा निर्माण स्थलों के आसपास संदूषण शामिल हैं, जहाँ अनुपचारित अपशिष्ट से अधिक मात्रा में सक्रिय रोगाणुरोधी वातावरण में मुक्त हो जाते है।

चिंताएँ:

  • AMR पहले से ही प्रतिवर्ष 7,00,000 तक मौतों  के लिये ज़िम्मेदार है।
  • AMR आधुनिक चिकित्सा के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न करता है। जीवाणुयुक्त और कवकीय संक्रमण के उपचार के लिये कार्यात्मक रोगाणुरोधी के बिना सामान्य शल्य चिकित्सा प्रक्रियाओं (जैसे-अंग प्रत्यारोपण,, मधुमेह प्रबंधन) के साथ-साथ कैंसर कीमोथेरेपी भी गैर-उपचारित संक्रमणों के जोखिम से युक्त हो जाएगी।
  • अस्पतालों में लंबे समय तक रहने तथा अतिरिक्त परीक्षणों और अधिक महंगी दवाओं के उपयोग के साथ स्वास्थ्य देखभाल की लागत बढ़ जाती है।
  • यह सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों की प्राप्ति को जोखिम को प्रभावित कर रहा है और सतत् विकास लक्ष्यों की उपलब्धि को खतरे में डाल रहा है।
  •  यह चुनौती इसलिये और भी गंभीर हो जाती है क्योंकि विकास और उत्पादन के पर्याप्त प्रोत्साहन के अभाव में विगत तीन दशकों में एंटीबायोटिक दवाओं का कोई भी नया विकल्प बाज़ार में उपलब्ध नहीं हो पाया है।
  • यदि तत्काल कार्रवाई नहीं की गई तो एंटीबायोटिक दवाओं के बिना हमारा भविष्य समाप्ति की ओर बढ़ रहा होगा जिसके परिणामस्वरूप बैक्टीरिया पूरी तरह से उपचार के लिये प्रतिरोधी बन जाएगा और तब आम संक्रमण और मामूली समस्याए एक बार फिर से खतरा उत्पन्न कर सकती हैं।

भारत में AMR:

  • भारत में बड़ी आबादी के संयोजन के साथ बढ़ती हुई आय जो एंटीबायोटिक दवाओं की खरीद की सुविधा प्रदान करती है, संक्रामक रोगों का उच्च बोझ और एंटीबायोटिक दवाओं के लिये आसान ओवर-द-काउंटर उपयोग, प्रतिरोधी जीन की पीढ़ी को बढ़ावा देती हैं। 
  • बहु-दवा प्रतिरोध निर्धारक, नई दिल्ली मेटालो-बीटा-लैक्टामेज़-1 (एनडीएम -1), इस क्षेत्र में विश्व स्तर पर तेज़ी से  उभरा है।
    • अफ्रीका, यूरोप और एशिया के अन्य भाग भी दक्षिण एशिया से उत्पन्न होने वाले बहु-दवा प्रतिरोधी टाइफाइड से प्रभावित हुए हैं।
  • भारत में सूक्ष्मजीवों (जीवाणु और विषाणु सहित) के कारण सेप्सिस से हर वर्ष 56,000 से अधिक नवजात बच्चों की मौत होती हैं जो पहली पंक्ति के एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोधी हैं।
  • भारत ने टीकाकरण कवरेज को कम करने के लिये निगरानी और जवाबदेही में सुधार करके अतिरिक्त नियोजन और अतिरिक्त तंत्र को मबूत करने के लिये मिशन इंद्रधनुष जैसी कई कार्य किये गए हैं।
  • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) ने AMR को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के साथ मंत्रालय के सहयोगात्मक कार्यों के लिये शीर्ष 10 प्राथमिकताओं में से एक के रूप में पहचाना है।
  • AMR प्रतिरोध 2017-2021 पर राष्ट्रीय कार्य योजना तैयार की गई है

आगे की राह 

  • चूँकि रोगाणु नई रोगाणुरोधकों प्रतिरोधी क्षमता विकसित करते रहेंगे, अत: नियमित आधार पर नए प्रतिरोधी उपभेदों (Strain) का पता लगाने और उनका मुकाबला करने के लिये निरंतर निवेश और वैश्विक समन्वय की आवश्यकता है।
  • एंटीबायोटिक दवाओं के अनुचित प्रोत्साहन को कम करने के लिये उपभोक्ताओं को शिक्षित करने के साथ प्रदाताओं के लिये उपचार संबंधी दिशा-निर्देश जारी करने की भी आवश्यकता है।
  • इन विविध चुनौतियों से निपटने के लिये नए रोगाणुरोधी को विकसित करने के अलावा कई अन्य क्षेत्रों में कार्रवाई की आवश्यकता है। संक्रमण-नियंत्रण उपायों के द्वारा एंटीबायोटिक के उपयोग को सीमित कर सकते हैं।
  • वित्तीय अनुमोदन जैसे उपाय उचित नैदानिक ​​उपयोग को (Clinical Use) प्रोत्साहित करेंगे। साथ ही रोगाणुरोधी की आवश्यकता वाले लोगों तक इसकी पहुँच को सुनिश्चित करना भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि उपचार योग्य संक्रमण के लिये दवाओं के अभाव में दुनिया भर में 7 मिलियन लोग प्रतिवर्ष मर जाते हैं।
  • इसके अलावा, रोगाणुओं में प्रतिरोध के प्रसार को ट्रैक करने व समझने के क्रम में इन जीवाणुओं की पहचान के लिये निगरानी उपायों को अस्पतालों के अतिरिक्त पशुओं, अपशिष्ट जल एवं कृषि व खेत-खलिहान को भी शामिल करने की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू

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