इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


जैव विविधता और पर्यावरण

एंटीबायोटिक प्रतिरोध

  • 31 Aug 2019
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

जल शक्ति मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के अंतर्गत संपूर्ण गंगा में सूक्ष्मजीवों की विविधता (Microbial Diversity) का आकलन करने के लिये एक अनुसंधान परियोजना शुरू की गई है। इस परियोजना के तहत ‘एंटीबायोटिक प्रतिरोध’ (Antibiotic Resistance) को बढ़ावा देने वाले सूक्ष्मजीवों का पता लगाया जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • इस परियोजना को मोतीलाल नेहरू प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद; राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (National Environmental Engineering Research Institute-NEERI), नागपुर; सरदार पटेल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, गोरखपुर के वैज्ञानिकों द्वारा पूरा किया जाना है।
  • इस परियोजना में दो स्टार्ट-अप कंपनियों फिक्सेन (Phixgen) और एक्सलरिस (Xcelris) लैब को भी शामिल किया गया है। ये स्टार्टअप जीनोम अनुक्रमण सेवाएँ (Genome Sequencing Services) प्रदान करने का कार्य करेंगे जिसमें सूक्ष्मजीवों के जीनोम की मैपिंग भी शामिल होगी।

अनुसंधान परियोजना का उद्देश्य

  • सीवेज और उद्योगों द्वारा नदी में फैलाए गए संदूषण (Contamination) का पता लगाना।
  • मानव स्वास्थ्य के लिये खतरनाक एंटीबायोटिक प्रतिरोध बढ़ाने करने वाले सूक्ष्मजीवों की वृद्धि के बारें में पता लगाना।
  • जानवरों और मनुष्यों की आँतो में रहने वाले एक प्रकार के ई-कोलाई [Escherichia coli- (E-Coli)] के स्रोतों की पहचान करना।

ई. कोलाई क्या है?

  • ई-कोलाई की साधारणतः बहुत सी प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिनमें से कुछ बहुत ज़्यादा हानिकारक होती हैं।
  • ई-कोलाई हमारे शरीर की आँत में इंफेक्शन फैलाकर हानि पहुँचाता है। यह तालाब, झीलों, पोखरों में पाया जाता है।

पूर्व के अनुसंधान

  • इस संबंध में पूर्व में अनेक अनुसंधान हो चुके हैं परंतु संपूर्ण गंगा के लिये यह पहला अनुसंधान है।
  • वर्ष 2014 में यू.के. की न्यूकास्टेल यूनिवर्सिटी (Newcastle University) एवं आई.आई.टी., दिल्ली (IIT-Delhi) ने अलग-अलग मौसमों में गंगा के मात्र सात स्थानों पर जल और अवसादों के नमूने एकत्र किये।
    • रिपोर्ट के अनुसार मई और जून माह में तीर्थ व धार्मिक कार्यों के समय सुपरबग्स के लिये उत्तरदायी प्रतिरोध जीनों का स्तर वर्ष के अन्य समय की तुलना में लगभग 60 गुना अधिक था।
  • वर्ष 2017 में केंद्रीय जैव प्रौद्योगिकी विभाग और यू.के. रिसर्च काउंसिल की रिपोर्ट के अनुसार भारत में एंटीबायोटिक प्रतिरोध दर उच्च है जो आमतौर पर संक्रमण का कारण बनती है।

स्रोत: द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2