गुजरात आतंकवादरोधी क़ानून | 06 Nov 2019
प्रीलिम्स के लिये -
GCTOC
मेन्स के लिये -
भारत में आंतरिक सुरक्षा संबधी कानून
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रपति ने विवादास्पद आतंकवादरोधी क़ानून से संबंधित ‘गुजरात आतंकवाद और संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक (Gujarat Control Of Terrorism And Organised Crime Bill) ’ को स्वीकृति दे दी।
प्रमुख बिंदु -
- गुजरात आतंकवाद और संगठित अपराध नियंत्रण क़ानून के तहत जाँच एजेंसियाँ फ़ोन कॉल्स रिकॉर्ड कर सकती हैं और उसे सबूत के तौर पर न्यायालय में पेश भी कर सकती हैं।
- इस क़ानून के अनुसार, ऐसा कोई भी कृत्य जो कानून व्यवस्था या सार्वजनिक व्यवस्था में विघ्न डालने या राज्य की एकता, अखंडता और सुरक्षा को खतरे में डालने या किसी भी वर्ग के लोगों के मन में आतंक फैलाने के इरादे से किया जाता है,आतंकवाद की श्रेणी में आएगा।
- GCTOC के अंतर्गत आर्थिक अपराध जैसे पॉन्जी स्कीम (Ponzi Scheme), मल्टी-लेवल मार्केटिंग स्कीम (Multi Level Marketing Scheme) और संगठित सट्टेबाज़ी शामिल हैं।
- इसके अंतर्गत ज़बरन वसूली, ज़मीन हथियाना, अनुबंध हत्याएँ, साइबर अपराध और मानव तस्करी भी शामिल हैं।
- इस तरह के किसी भी अपराध में शामिल होने या उसकी योजना बनाने के मामलों में 5 वर्ष से आजीवन कारावास तक का प्रावधान है।
- ऐसे अपराधों के परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति की मृत्यु के संदर्भ में आजीवन कारावास और मृत्युदंड का प्रावधान है।
- इसके तहत चार्जशीट दाखिल करने की अवधि सामान्य 90 दिनों के बजाय 180 दिन करने का प्रावधान किया गया है।
- इस कानून में संगठित अपराधों के संदर्भ में विशेष न्यायालय के गठन के साथ-साथ विशेष सरकारी अभियोजकों (Special Public Prosecuter) की नियुक्ति का भी प्रावधान है।
- इसके तहत संगठित अपराधों के माध्यम से अर्जित संपत्तियों को नीलाम किया जा सकता है साथ ही संपत्तियों के हस्तांतरण को रद्द किया जा सकता है।
विवाद के बिंदु
- इस विधेयक में जाँच एजेंसियों द्वारा फोन कॉल रिकॉर्ड करने और उसे साक्ष्य के रूप में न्यायालय में पेश करने का प्रावधान अनुच्छेद 21 के तहत निजता के मौलिक अधिकार का अतिक्रमण है।
- पुलिस की हिरासत में अभियुक्त से लिये गए बयान को साक्ष्य के रूप में पेश करने के प्रावधान अनुच्छेद 20 के अभियुक्त के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
- अनुच्छेद 20(3) के तहत किसी भी अपराध के आरोपी व्यक्ति को खुद के खिलाफ गवाह बनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
पृष्ठभूमि -
- गुजरात आतंकवाद और संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक वर्ष 2003 में गुजरात विधानसभा में पेश किया गया।
- पूर्व में इस विधेयक को गुजरात संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक (Gujarat Control of Organised Crime Bill -GUJCOC) का नाम दिया गया था।
- राष्ट्रपति द्वारा यह विधेयक लगातार 3 बार वर्ष 2004, 2008 और 2015 में अस्वीकृत किया जा चुका है।
राष्ट्रपति की सहमति की आवश्यकता क्यों?
राज्यपाल धन विधेयक के अलावा राज्य विधानमंडल द्वारा पारित किसी भी विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रख सकता है।चूँकि इस विधेयक के कुछ प्रावधान राष्ट्रीय कानून के प्रावधानों के साथ ओवरलैप कर रहे थे, जैसे साक्ष्य अधिनियम , अतः ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति की स्वीकृति की आवश्यकता होती है।