भारत में अंधविश्वास विरोधी कानून | 01 Nov 2022
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, आईपीसी, ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज़ अधिनियम 1954 मेन्स के लिये:भारत में अंधविश्वास विरोधी कानून की आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
केरल में दो महिलाओं की 'कर्मकांडवादी मानव बलि' के तहत नृशंस हत्याओं ने देश को सदमे में डाल दिया है।
- इन हत्याओं ने भारत में अंधविश्वास, काला जादू और जादू-टोना की व्यापकता के बारे में एक बहस छेड़ दी है।
अंधविश्वास:
- यह अज्ञान अथवा भय से संबंधित एक विश्वास है और अलौकिक के प्रति जुनूनी श्रद्धा इसकी विशेषता है।
- ‘Superstition ' शब्द लैटिन शब्द 'सुपरस्टिटियो' से लिया गया है, जो ईश्वर के अत्यधिक भय को इंगित करता है।
- अंधविश्वास देश, धर्म, संस्कृति, समुदाय, क्षेत्र, जाति या वर्ग-विशिष्ट नहीं होता हैं, इसका स्तर व्यापक है और यह दुनिया के हर कोने में पाया जाता है।
काला जादू:
- काला जादू, जिसे जादू-टोना के रूप में भी जाना जाता है, दुष्ट और स्वार्थी उद्देश्यों के लिये अलौकिक शक्ति का उपयोग है तथा किसी को शारीरिक या मानसिक या आर्थिक नुकसांन पहुँचाने के लिये दुर्भावनापूर्ण कार्य करना है।
- यह कार्य पीड़ित के बाल, कपड़े, फोटो आदि का उपयोग करके किया जा सकता है।
भारत में अंधविश्वास से होने वाली हत्याएँ कितनी व्यापक हैं?
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2021 की रिपोर्ट में भारत में 6 लोगों की मृत्यु का कारण मानव बलि और 68 लोगों की मृत्यु का कारण जादू-टोना बताया गया है।
- जादू टोना के सबसे अधिक मामले छत्तीसगढ़ (20), उसके बाद मध्य प्रदेश (18) और तेलंगाना (11) में दर्ज किये गए।
- NCRB की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 में भारत में जादू टोना के कारण 88 मौतें और 11 लोगों की मौत 'मानव बलि' के कारण हुई।
भारत में इससे संबंधित कानून:
- भारत में जादू टोना और अंधविश्वास से संबंधित अपराधों के लिये कोई समर्पित केंद्रीय कानून नहीं है।
- वर्ष 2016 में लोकसभा में डायन-शिकार निवारण विधेयक (Prevention of Witch-Hunting Bill) लाया गया था लेकिन यह पारित नहीं हुआ था।
- मसौदा प्रावधानों में किसी महिला पर डायन का आरोप लगाने या महिला के खिलाफ आपराधिक बल का उपयोग करने या जादू-टोना करने के बहाने यातना देने या अपमान करने के लिये दंड का प्रावधान किया गया।
- आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) की धारा 302 (हत्या की सज़ा) के तहत मानव बलि को शामिल किया गया है (लेकिन हत्या होने के बाद ही)। इसी तरह धारा 295A ऐसी प्रथाओं को हतोत्साहित करती है।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51A (h) भारतीय नागरिकों के लिये वैज्ञानिक सोच, मानवतावाद और सुधार की भावना को विकसित करना एक मौलिक कर्त्तव्य बनाता है।
- ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज़ एक्ट, 1954 के तहत अन्य प्रावधानों का भी उद्देश्य भारत में प्रचलित विभिन्न अंधविश्वासी गतिविधियों में कमी लाना है।
राज्य-विशिष्ट कानून:
- बिहार:
- बिहार पहला राज्य था जिसने जादू-टोना रोकने, एक महिला को डायन के रूप में चिह्नित करने और अत्याचार, अपमान तथा महिलाओं की हत्या को रोकने हेतु कानून बनाया था।
- द प्रिवेंशन ऑफ विच (डायन) प्रैक्टिस एक्ट अक्तूबर 1999 में प्रभाव में आया।
- महाराष्ट्र:
- वर्ष 2013 में महाराष्ट्र मानव बलि और अन्य अमानवीय कृत्य की रोकथाम एवं उन्मूलन अधिनियम पारित किया ताकि राज्य में अमानवीय प्रथाओं तथा काला जादू आदि को प्रतिबंधित किया जा सके।
- इस कानून का एक खंड विशेष रूप से 'godman’ (स्वयं को इश्वर के समकक्ष मानने वाले) द्वारा किये गए दावों से संबंधित है जो दावा करते हैं कि उनके पास अलौकिक शक्तियाँ हैं।
- कर्नाटक:
- कर्नाटक ने वर्ष 2017 में अंधविश्वास विरोधी कानून को प्रभाव में लाने का कार्य किया, जिसे अमानवीय प्रथाओं और काला जादू रोकथाम एवं उन्मूलन अधिनियम के रूप में जाना जाता है।
- यह अधिनियम धार्मिक अनुष्ठानों से जुड़ी "अमानवीय" प्रथाओं का व्यापक रूप से विरोध करता है।
- केरल:
- केरल में काला जादू और अन्य अंधविश्वासों से निपटने के लिये कोई व्यापक अधिनियम नहीं है।
देशव्यापी अंधविश्वास विरोधी अधिनियम की आवश्यकता:
- इस तरह की प्रथाओं को अबाध रूप से जारी रखने की अनुमति देना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत क्रमशः किसी व्यक्ति की समानता के मौलिक अधिकार और जीवन के अधिकार का उल्लंघन है।
- इस तरह के कृत्य विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय विधानों के कई प्रावधानों का भी उल्लंघन करते हैं, जिनमें भारत एक हस्ताक्षरकर्त्ता है, जैसे 'मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, 1948', 'नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धता, 1966' और ''महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर अभिसमय, 1979।
- भारत के केवल आठ राज्यों में अब तक डायन-शिकार निवारण विधेयक कानून हैं।
- इनमें बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, राजस्थान, असम, महाराष्ट्र और कर्नाटक शामिल हैं।
- अंधविश्वासों से निपटने के उपायों के अभाव में अवैज्ञानिक और तर्कहीन प्रथाओं जैसे उपचार के तरीके पर विश्वास, एवं चिकित्सा प्रक्रियाओं के बारे में गलत जानकारी भी बढ़ सकती है, जो सार्वजनिक व्यवस्था एवं नागरिकों के स्वास्थ्य पर गंभीर हानिकारक प्रभाव डाल सकती है।
आगे की राह
- यह याद रखना उचित है कि इस सामाजिक मुद्दे से निपटने के लिये कानून लाने का मतलब केवल आधी लड़ाई जीतना होगा।
- सूचना अभियानों के माध्यम से इस तरह की प्रथाओं से जुड़े मिथकों को दूर करने के लिये समुदाय/धार्मिक विद्वानों को शामिल करके जनता के बीच जागरूकता बढ़ाकर सुधार किये जाने की आवश्यकता है।