अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अंधविश्वास-निरोधक विधेयक
- 17 Nov 2017
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चर्चा में क्यों?
कर्नाटक राज्य विधानसभा द्वारा अंधविश्वास निरोधक विधेयक (Prevention and Eradication of Inhuman Evil Practices and Black Magic Bill) को मंज़ूरी दे दी गई है। इस विधेयक को राज्य सरकार द्वारा सितम्बर माह में पारित किया गया था।
- इस विधेयक को न्यूनतम संशोधनों के साथ अंतिम रूप प्रदान किया गया है। इसके अंतर्गत वास्तु तथा ज्योतिष शास्त्र को शामिल नहीं किया गया है।
- इसके साथ-साथ एक उच्च जाति समुदाय (माधव ब्राह्मण) में प्रचलित एक प्रथा, जिसमें शरीर पर ‘मुद्रा’ (हिंदूओं और बौद्ध के समारोहों एवं मूर्तियों तथा भारतीय नृत्य में प्रयुक्त प्रतीकात्मक हाथ का इशारा) का मुद्रांकन किया जाता है, को छूट प्रदान की गई है।
प्रमुख बिंदु
- कर्नाटक में सिद्दुभुक्टी, माता, ओखली जैसे कई रिवाज़ आपराधिक माने गए हैं, जिनसे इंसान की जान को खतरा होता है। विधेयक के अनुसार, अगर ऐसी किसी दकियानूसी प्रथा से इंसान की जान चली जाती है, तो दोषियों को मौत की सज़ा भी दी जा सकती है।
- विधेयक में अंधविश्वास को फैलाने वाले तत्त्वों के खिलाफ एक्शन लेने का भी प्रावधान है। यदि गाँव का ओझा ग्रामीणों को झाड़-फूँक के जाल में फँसाएगा, तो उसके अलावा उस व्यक्ति के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी जो उसका प्रचार-प्रसार कर रहा है। इसके लिये सरकार प्रचार के सभी माध्यमों पर भी नज़र रखेगी।
- इस विधेयक में नर बलि पर पूर्ण प्रतिबंध का प्रस्ताव किया गया है। अंधविश्वास निरोधी विधेयक में नर बलि के साथ-साथ पशु की गर्दन पर वार कर उसकी बलि पर भी प्रतिबंध लगाने की बात कही गई है।
- इस विधेयक में 'बाईबिगा प्रथा' के नाम पर लोहे की रॉड को मुँह के आर-पार करते हुए करतब करना, 'बनामाथी प्रथा' के नाम पर पथराव करना, तंत्र-मंत्र से प्रेत या आत्मा को बुलाने की मान्यता पर भी प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव है।
- अंधविश्वास विरोधी विधेयक में धर्म के नाम पर महिलाओं और बच्चियों को देवदासी बनाने पर भी प्रतिबंध लगाया गया है। इस विधेयक में धर्म के नाम पर महिलाओं और लड़कियों के यौन शोषण को रोकने और खत्म करने का प्रावधान किया गया है।
- विदित हो कि महाराष्ट्र में बहुत पहले से ऐसा ही एक कानून मौजूद है।
- कुप्रथाओं के उन्मूलन में कानूनी प्रावधानों की उपयोगिता अवश्य है, लेकिन समाज से अंधविश्वासों को जड़ से समाप्त करने के लिये पर्याप्त नहीं है।
- कुछ लोगों का मत यह हो सकता है कि प्रस्तावित कानून संविधान के अनुच्छेद 25 (प्रत्येक व्यक्ति को अन्तःकरण की स्वतंत्रता और धर्म के अबाध रूप में मानने, आचरण करने तथा प्रचार करने का अधिकार) का उल्लंघन करता है। हालाँकि इसे एक उचित प्रतिबंध के रूप में देखा जाना चाहिये, क्योंकि इससे सार्वजनिक हित सुनिश्चित होता है।