प्रदूषण विरोधी अभियान | 14 Oct 2020

प्रिलिम्स के लिये: 

वृक्ष प्रत्यारोपण नीति, स्मॉग टॉवर, इलेक्ट्रिक वाहन, पराली

मेन्स के लिये: 

वायु प्रदूषण की रोकथाम हेतु विभिन्न उपाय।

चर्चा में क्यों?   

दिल्ली सरकार ने हाल ही में वृहद् स्तर का एक  प्रदूषण विरोधी अभियान शुरू किया है,  जिसे ‘युद्ध प्रदूषण के विरुद्ध’  (Yuddh Pradushan Ke Viruddh) नाम दिया गया है। इसके अंतर्गत पेड़ों के प्रत्यारोपण की नीति, कनॉट प्लेस (दिल्ली) में एक स्मॉग टॉवर का निर्माण, इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना और पराली  को जलाने से रोकना जैसी मुहिम शामिल हैं।

प्रमुख बिंदु

  • इससे दिल्ली की खराब वायु गुणवत्ता का मुकाबला करने में मदद मिलेगी जो सर्दियों के मौसम में और भी अधिक खराब हो जाती है।

वृक्ष प्रत्यारोपण नीति (Tree Transplantation)

  • ट्री ट्रांसप्लांटेशन से तात्पर्य किसी विशेष स्थान से किसी पेड़ को उखाड़ना और उसे दूसरे स्थान पर लगाना है।
  • इस नीति के तहत किसी भी विकासात्मक परियोजना से प्रभावित होने वाले कम-से-कम 80% पेड़ों को प्रत्यारोपित किया जाएगा। इसके अलावा प्रत्यारोपित पेड़ों के न्यूनतम 80% को अच्छी तरह से विकसित होना चाहिये और यह सुनिश्चित करना उन एजेंसियों की ज़िम्मेदारी होगी जो सरकार से इस विकासात्मक परियोजना  हेतु अनुमति लेंगे।
  • यह प्रत्यारोपण, प्रत्येक काटे गए वृक्ष के लिये 10 पौधे लगाने के मौजूदा प्रतिपूरक वनीकरण के अतिरिक्त होगा।
  • सरकार द्वारा एक समर्पित ट्री ट्रांसप्लांटेशन सेल का गठन किया जाएगा।

लाभ:

  • एक मौजूदा पूरी तरह से विकसित पेड़ के विकल्प के रूप में एक  नए पौधे को लगाना, मौजूदा पेड़ को काटने से जो  प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव उत्पन्न होता है, उसका पर्याप्त रूप से मुकाबला नहीं करता है। प्रत्यारोपण से पुराने पेड़ों का संरक्षण सुनिश्चित होगा।
  • इसके अलावा कई पुराने पेड़ों का एक प्रतीकात्मक या विरासत मूल्य होता है जिसे संरक्षित करने की आवश्यकता है।

सीमाएँ:

  • कम सफलता दर: प्रत्यारोपण एक जटिल प्रक्रिया है और इसकी सफलता दर लगभग 50% है। एक प्रत्यारोपित पेड़ की उत्तरजीविता दर मिट्टी के प्रकार पर निर्भर करती है क्योंकि यमुना में बाढ़ की स्थिति में दिल्ली के रिज पर उगने वाले पेड़ों  के जीवित रहने की संभावना नहीं है।
  • महँगे: औसत आकार के पेड़ के प्रत्यारोपण में लगभग 1 लाख रुपए का खर्च आता है।

स्मॉग टॉवर (Smog Tower):

  • एक स्मॉग टॉवर, जो एक मेगा एयर प्यूरीफायर के रूप में काम करेगा,  को  दिल्ली सरकार और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को दिये गए सर्वोच्च न्यायालय के नवंबर 2019 के आदेश के अनुसार स्थापित किया जाएगा।
  • दिल्ली में स्थापित किये जाने वाले टॉवर आईआईटी मुंबई, आईआईटी दिल्ली और मिनेसोटा विश्वविद्यालय के बीच सहयोग का परिणाम होंगे।
  • नीदरलैंड, चीन, दक्षिण कोरिया और पोलैंड के शहरों में हाल के वर्षों में स्मॉग टावरों का प्रयोग किया गया है। नीदरलैंड के रॉटरडैम में  वर्ष 2015 में ऐसा पहला टॉवर बनाया गया था।
  • दुनिया का सबसे बड़ा एयर-प्यूरिफाइंग टॉवर शीआन, चीन में है।
  • टॉवर प्रदूषित वायु के प्रदूषकों को ऊपर से सोख लेगा और नीचे की तरफ से स्वच्छ वायु छोड़ेगा।

सीमाएँ:

  • कई विशेषज्ञों ने दावा किया है कि  बड़ी मात्रा में प्रदूषित वायु के स्मॉग टावर्स में प्रवाह के कारण ये वायु को स्वच्छ करने में अधिक कुशल नहीं होते।
  • यहाँ तक ​​कि चीन के पास भी अपने स्मॉग टावरों की प्रभावशीलता का समर्थन करने के लिये अपर्याप्त डेटा है।
  • एक विशेषज्ञ पैनल ने अनुमान लगाया है कि दिल्ली में प्रदूषण के संकट से लड़ने के लिये  कुल 213 स्मॉग टॉवरों की आवश्यकता होगी जो बहुत महँगे होंगे क्योंकि प्रत्येक टॉवर पर लगभग 20 करोड़ रुपए का खर्च आएगा।

इलेक्ट्रिक वाहन (Electric Vehicles )

  • सरकार का लक्ष्य वर्ष 2024 तक राजधानी में पंजीकृत कुल नए वाहनों में से एक-चौथाई वाहनों के लिये ईवीएस खाता बनाना है।
  • इलेक्ट्रिक वाहन के लक्ष्य को इन वाहनों की खरीद हेतु प्रोत्साहन द्वारा, पुराने वाहनों पर मार्जिन लाभ देने, अनुकूल ब्याज पर ऋण देने और सड़क करों में छूट देने आदि के माध्यम से प्राप्त किया जाएगा।
  • हाल ही में दिल्ली सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहन नीति 2020 को अधिसूचित किया जो ईवीएस के साथ निजी चार पहिया वाहनों के बजाय दोपहिया वाहन, सार्वजनिक परिवहन, साझा वाहनों और माल-वाहक द्वारा  प्रतिस्थापन पर सबसे अधिक ज़ोर देती है।

इन कदमों के अलावा  सरकार दिल्ली में थर्मल प्लांटों और ईंट भट्टों के साथ-साथ आस-पास के राज्यों में जलने वाली पराली से उत्पन्न प्रदूषण के रासायनिक उपचार पर भी ध्यान केंद्रित करती है।

दिल्ली में वायु प्रदूषण

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा संकलित वायु गुणवत्ता के आँकड़ों के अनुसार, दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है।
  • दिल्ली में पार्टिकुलेट मैटर, पीएम 2.5 और पीएम 10, राष्ट्रीय मानकों से कहीं अधिक हैं।
    • दिल्ली को PM2.5 के राष्ट्रीय मानकों को पूरा करने हेतु इसकी मात्रा में 65% की कमी करने की आवश्यकता है।
  • दिल्ली की ज़हरीली हवा में सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड की उच्च मात्रा भी होती है।
  • हवा की कमी से प्रदूषकों की सांद्रता भी बढ़ती है।
  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने अक्तूबर 2018 में एक शोध पत्र प्रकाशित किया, जिसमें लगभग 41% वाहनों से, 21.5% धूल से और 18% उद्योगों से होने वाले उत्सर्जन को प्रदूषण हेतु ज़िम्मेदार ठहराया गया।
    • वाहनों का उत्सर्जन परीक्षण केवल 25% है।
  • डब्ल्यूएचओ के अनुसार, भारत, साँस की बीमारियों और अस्थमा से होने वाली मौतों के मामले में दुनिया में अग्रणी है। कम दृश्यता, अम्ल वर्षा और ट्रोपोस्फेरिक स्तर पर ओज़ोन की उपस्थिति के माध्यम से भी  वायु प्रदूषण पर्यावरण को प्रभावित करता है।

दिल्ली की बिगड़ती वायु गुणवत्ता के कारण

  • पराली जलाना 
  • वाहनों से उत्सर्जन
  • मौसम
  • उच्च जनसंख्या घनत्व
  • इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी
  • निर्माण गतिविधियाँ और खुले में कचरा जलाना
  • थर्मल पावर प्लांट और उद्योग
  • पटाखे
  • डीज़ल जेनरेटर
  • खाड़ी देशों से धूल का तूफान

आगे की राह:

  • दिल्ली में वायु प्रदूषण का दीर्घकालिक समाधान परिवहन से होने वाले उत्सर्जन को समाप्त करने पर महत्त्वपूर्ण रूप से निर्भर करेगा। वाहनों के उत्सर्जन का मुकाबला करने के लिये  उत्सर्जन मानक, सार्वजनिक परिवहन और इलेक्ट्रिक वाहन जैसे कदम उठाना आवश्यक है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय के अनुसार, दिल्ली में बस बेड़े को बढ़ाने और इसे मेट्रो नेटवर्क के साथ संरेखित करने के कार्य को पूरा करना चाहिये।
  • केंद्रीय, राज्य और स्थानीय सरकारों में समन्वय और पारदर्शिता से तकनीकी समाधानों को बढ़ाने की आवश्यकता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा उपलब्ध डेटा का उपयोग करके प्रदूषण और स्वास्थ्य पर संदेश साझा करने के लिये नागरिक भागीदारी और मीडिया महत्त्वपूर्ण हैं।
  • कोविड-19 महामारी परिदृश्य में वायु प्रदूषण पर नियंत्रण की आवश्यकता अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि वायु प्रदूषण के कारण श्वसन संबंधी बीमारियाँ कोविड-19 से प्रभावित लोगों की स्थिति को और खराब कर सकती हैं।

स्रोत: द हिंदू