समुद्री डकैती विरोधी विधेयक | 22 Dec 2022
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में राज्यसभा ने समुद्री डकैती विरोधी विधेयक पारित किया, जिसके बारे में सरकार ने कहा कि यह समुद्री डकैती से निपटने के लिये एक प्रभावी कानूनी साधन प्रदान करेगा।
- परिवहन के समुद्री मार्गों की सुरक्षा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारत का 90% से अधिक व्यापार समुद्री मार्गों से होता है और देश की हाइड्रोकार्बन आवश्यकताओं का 80% से अधिक की पूर्ति समुद्र से होती है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- विधेयक समुद्री डकैती की रोकथाम और ऐसे समुद्री डकैती से संबंधित अपराधों के लिये व्यक्तियों पर मुकदमा चलाने का प्रावधान करता है।
- यह भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र की सीमाओं से सटे और उससे परे समुद्र (यानी समुद्र तट से 200 समुद्री मील से परे) के सभी हिस्सों पर लागू होगा।
- यह विधेयक संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय ( United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS) को कानून बनाता है।
- विधेयक समुद्री डकैती की रोकथाम और ऐसे समुद्री डकैती से संबंधित अपराधों के लिये व्यक्तियों पर मुकदमा चलाने का प्रावधान करता है।
- डकैती:
- यह समुद्री डकैती को एक निजी जहाज़ या विमान के चालक दल या यात्रियों द्वारा निजी उद्देश्यों के लिये किसी जहाज़, विमान, व्यक्ति या संपत्ति के खिलाफ की गई हिंसा, हिरासत या विनाश के किसी भी अवैध कार्य के रूप में परिभाषित करता है। इस तरह के कृत्यों को उच्च समुद्र (भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र से परे) या भारत के अधिकार क्षेत्र के बाहर किसी भी स्थान पर किया जा सकता है।
- उकसाना या जान-बूझकर इस तरह के कृत्यों को सुविधाजनक बनाना भी डकैती के रूप में माना जाएगा।
- इसमें अन्य गतिविधियाँ भी शामिल हैं जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत समुद्री डकैती माना जाता है।
- डकैती में समुद्री डकैती जहाज़ या विमान के संचालन में स्वैच्छिक भागीदारी भी शामिल है।
- यह समुद्री डकैती को एक निजी जहाज़ या विमान के चालक दल या यात्रियों द्वारा निजी उद्देश्यों के लिये किसी जहाज़, विमान, व्यक्ति या संपत्ति के खिलाफ की गई हिंसा, हिरासत या विनाश के किसी भी अवैध कार्य के रूप में परिभाषित करता है। इस तरह के कृत्यों को उच्च समुद्र (भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र से परे) या भारत के अधिकार क्षेत्र के बाहर किसी भी स्थान पर किया जा सकता है।
- दंड:
- पायरेसी का कृत्य दंडनीय होगा:
- आजीवन कारावास; या
- मृत्युदंड, अगर समुद्री डकैती मृत्यु का कारण बनती है या ऐसा कोई प्रयास किया जाता है।
- समुद्री डकैती का कृत्य करने, सहायता, समर्थन या सलाह देने का प्रयास करने पर 14 साल तक की कैद और ज़ुर्माना हो सकता है।
- जलदस्युता के कार्य में भाग लेना, आयोजन करना या दूसरों को भाग लेने के लिये निर्देशित करना भी 14 वर्ष तक के कारावास और ज़ुर्माने के साथ दंडनीय होगा।
- अपराधों को प्रत्यर्पित करने योग्य माना जाएगा। इसका मतलब है कि अभियुक्त को अभियोजन के लिये किसी भी उस देश में स्थानांतरित किया जा सकता है जिसके साथ भारत ने प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर किये हैं।
- ऐसी संधियों के अभाव में देशों के बीच पारस्परिकता के आधार पर अपराध प्रत्यर्पण योग्य होंगे।
- पायरेसी का कृत्य दंडनीय होगा:
- न्यायालयों का क्षेत्राधिकार:
- केंद्र सरकार, संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से सत्र न्यायालयों को इस विधेयक के तहत नामित न्यायालयों के रूप में अधिसूचित कर सकती है।
- मनोनीत न्यायालय निम्नलिखित द्वारा किये गए अपराधों की सुनवाई करेगा:
- भारतीय नौसेना या तट रक्षक की हिरासत में एक व्यक्ति, उसकी राष्ट्रीयता की परवाह किये बिना।
- भारत का नागरिक, भारत में एक निवासी विदेशी नागरिक या राज्यविहीन व्यक्ति।
- किसी विदेशी जहाज़ पर किये गए अपराधों पर न्यायालय का अधिकार क्षेत्र नहीं होगा जब तक कि निम्नलिखित द्वारा हस्तक्षेप का अनुरोध नहीं किया जाता है:
- जहाज़ की उत्पत्ति का देश।
- जहाज़ का मालिक।
- जहाज़ पर कोई अन्य व्यक्ति।
- गैर-वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये नियोजित युद्धपोत और सरकारी स्वामित्व वाले जहाज़ न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं होंगे।
विधेयक की प्रमुख चुनौतियाँ:
- विधेयक के तहत यदि कोई व्यक्ति समुद्री डकैती का कार्य करते समय मृत्यु का कारण बनता है, तो उसे मृत्युदंड दिया जाएगा।
- इसका तात्पर्य ऐसे अपराधों के लिये अनिवार्य रूप से मृत्युदंड से है।
- सर्वोच्च न्यायालय का मानना है कि किसी भी अपराध के लिये अनिवार्य मृत्युदंड असंवैधानिक है क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करता है।
- हालाँकि संसद ने कुछ अपराधों के लिये अनिवार्य मृत्युदंड का प्रावधान करने वाले कानून पारित किये हैं। उदाहरणत: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989।
- यदि कोई व्यक्ति समुद्री डकैती के कार्य में शामिल होता है तो इस विधेयक में 14 वर्ष तक के कारावास का प्रावधान किया गया है। समुद्री डकैती (जिसमें समुद्री लुटेरे जहाज़ या विमान के संचालन में स्वेच्छा से भाग लेना शामिल है) आजीवन कारावास के रूप में दंडनीय है।
- कभी-कभी परिस्थितियाँ भिन्न हो सकती हैं, ऐसे में यह स्पष्ट नहीं है कि ऐसे मामलों में सज़ा कैसे निर्धारित की जाएगी।
- यह अधिनियम भारत के एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन (EEZ) की सीमाओं से सटे और उससे आगे के समुद्र के सभी हिस्सों पर लागू होगा, यानी समुद्र तट से 200 समुद्री मील से आगे तक के क्षेत्र में।
- सवाल यह है कि क्या विधेयक में EEZ को भी शामिल किया जाना चाहिये, जो कि 12 समुद्री मील और 200 समुद्री मील (भारत के समुद्र तट से) के बीच का क्षेत्र है।
समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय:
- UNCLOS, 1982 एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो समुद्री गतिविधियों के संबंध में कानूनी रूपरेखा स्थापित करता है।
- इसे लॉ ऑफ द सी के नाम से भी जाना जाता है। यह समुद्री क्षेत्रों को पाँच मुख्य क्षेत्रों में विभाजित करता है- आंतरिक जल, प्रादेशिक समुद्र, सन्निहित क्षेत्र, विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) और उच्च समुद्र।
- यह एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय है जो समुद्री क्षेत्रों में राज्य के अधिकार क्षेत्र के लिये एक रूपरेखा निर्धारित करता है। यह विभिन्न समुद्री क्षेत्रों को एक अलग कानूनी दर्जा प्रदान करता है।
- यह तटीय देशों और महासागरों को नेविगेट करने वालों द्वारा अपतटीय शासन के लिये मज़बूती प्रदान करता है।
- यह न केवल तटीय देशों के अपतटीय क्षेत्रों का ज़ोन है बल्कि पाँच संकेंद्रित क्षेत्रों में देशों के अधिकारों और ज़िम्मेदारियों के लिये विशिष्ट मार्गदर्शन भी प्रदान करता है।
- वर्ष 1995 में भारत ने UNCLOS की पुष्टि की।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. 'ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न. 'क्षेत्रीय सहयोग के लिये हिंद महासागर रिम संघ इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन फॉर रीजनल को-ऑपरेशन (IOR-ARC)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न. दक्षिण चीन सागर के मामले में समुद्री भू-भागीय विवाद तथा बढ़ता हुआ तनाव समस्त क्षेत्र में नौपरिवहन की और उपरी उड़ान की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिये समुद्री सुरक्षा की आवश्यकता की अभिपुष्टि करते हैं। इस संदर्भ में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा कीजिये। (मेन्स-2014) |