भारतीय इतिहास
कवचुआह रोपुठे विरासत स्थल
- 11 Feb 2019
- 6 min read
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वैज्ञानिकों द्वारा जलवायु परिवर्तन और मौसम की विषम परिस्थितिओं को देखते हुए विश्व में पानी के लिये बढ़ते संघर्षों को कम करने हेतु मिज़ोरम की एक खोई हुई सभ्यता को अपनाने की बात कही गई है जो चट्टानों को छिपे हुए जलाशयों में बदल कर विषम स्थितियों में जल संरक्षण में महत्त्वपूर्ण हो सकती है।
- वर्ष 2016 में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India-ASI) द्वारा म्याँमार की सीमा से सटे मिज़ोरम के चम्फाई (Champhai) ज़िले के एक गांव वांगछिया (Vangchhia) में एक ’लिविंग हिस्ट्री मयूज़ियम (Living History Museum)’ की खोज की गई। जिसे कवचुआह रोपुठे विरासत स्थल (Kawtchhuah Ropuithe Heritage Site) नाम दिया गया।
- कवचुआह रोपुठे विरासत स्थल भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के संरक्षित स्मारकों के अंतर्गत मिज़ोरम की पहली साइट है। जो यहाँ के स्थानीय लोगों द्वारा कई पीढ़ियों से पूजनीय है।
- आइज़ॉल से 260 किमी. की दूरी पर स्थित यह साइट लगभग 45 वर्ग किमी. क्षेत्रफल में विस्तृत है, जिसमें बड़े पत्थर के स्लैब, मेनहिर (Menhirs - बड़े और खड़े पत्थर) और एक नेक्रोपोलिस (Necropolis - एक बड़ा कब्रिस्तान) तथा कलाकृतियों के बीच में चित्रित चित्रलेख मिले हैं।
- यह क्षेत्र निचले हिमालय का हिस्सा है और इसमें हल्के भूरे व काले रंग के विभिन्न प्रकार के बलुआ पत्थरों की पहाड़ियों की कतारें हैं।
जल संग्रहण की संभावित कला
- ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन समय में वांगछिया के लोगों ने अपनी बस्ती के लिये इन चट्टानों पर नक्काशी की थी। मुख्य खुदाई वाली जगह पर ऐसे 15 इलाके प्राप्त हुए हैं।
- पुरातत्त्वविदों द्वारा की गई सबसे महत्त्वपूर्ण खोजों में यहाँ पाए गए पत्थरों के बीच पानी के पैवेलियन (पत्थरों को काट कर बनाए गए एक फीट से लेकर एक मीटर तक के छेद) हैं, जो कई बलुआ पत्थर की ढलानों पर फैले हुए हैं।
- ASI के शोधकर्त्ताओं ने बताया कि ग्रे सैंडस्टोन (Grey Sandstone) छिद्रों के लिये उपयुक्त होती है, जबकि कठोर काली चट्टान (Black Rock) का उपयोग मेन्हिरों के लिये किया जाता है।
- शोधकर्त्ताओं द्वारा विगत वर्षों में वांगछिया साइट पर किये गए अध्ययन के अनुसार, यह क्रियाविधि कई शताब्दियों पहले सिद्ध की गई जल संचयन हेतु साधारण विज्ञान प्रतीत हो रही है जिसे स्थानीय आबादी कम-से-कम एक वर्ष तक इस्तेमाल कर सकती है।
- सबसे उल्लेखनीय विषय यह है कि कैसे उन लोगों द्वारा बारिश के पानी को ढलान से बहते हुए यहाँ चट्टानों में रोक दिया गया है, ताकि चट्टानों के अंदर पानी जमा हो सके।
- अभी तक पुरातत्त्वविद वांगछिया बस्ती के बारे में सही-सही पता नहीं लगा पाए हैं क्योंकि तीन साल पहले जब इस जगह की खुदाई की गई तो यहाँ मिले खंडहरों को 15वीं शताब्दी के होने का अनुमान लगाया गया। बाद में बीरबल साहनी संस्थान ने इसे 6वीं शताब्दी का बताया।
निष्कर्ष
- अभी हाल ही में ASI की टीम द्वारा पहले के अनुत्तरित प्रश्नों के जवाब के तलाश में वांगछिया के पास नवपाषाण गुफाओं की खोज की गई जो यह दर्शाती है कि यह खोई हुई सभ्यता और भी अधिक पुरानी हो सकती है।
- मिज़ोरम चैप्टर ऑफ इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (Mizoram Chapter of Indian National Trust for Art and Cultural Heritage (INTACH) के संयोजक ने बताया कि ये पुरातात्विक अवशेष वांगछिया या चम्फाई ज़िले तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि कम-से-कम चार और प्रमुख साइटें हैं - फ़ार्कन, डुंग्ट्लंग, लियानपुई और लुनघुनियान। जहाँ अब तक सैकड़ों मेनहिर और चित्रलेखों के साथ बड़े पैमाने पर खुदाई की जा रही है जो कि एक भुला दिए गए अतीत की कहानियों को बताते हैं।
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण
(Archaeological Survey of India-ASI)
- संस्कृति मंत्रालय के अधीन यह राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासतों के पुरातत्त्वीय अनुसंधान तथा संरक्षण के लिये एक प्रमुख संगठन है।
- इसका मुख्य कार्य राष्ट्रीय महत्त्व के प्राचीन स्मारकों तथा स्थलों और भग्नावशेषों का रख-रखाव करना है।
- प्राचीन स्मारक और पुरातात्त्विक अधिनियम,1958 के प्रावधान ASI का मार्गदर्शन करते हैं।
- पुरावशेष एवं बहुमूल्य कलाकृति अधिनियम, 1972 द्वारा ASI अपने कामकाज को दिशा देता है।
- ASI राष्ट्रीय महत्त्व के प्रमुख पुरातात्त्विक स्थलों की बेहतर देखभाल के लिये संपूर्ण देश को 24 मंडलों में बाँटता है।
स्रोत – द हिंदू