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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

विज्ञान और प्रौद्योगिकी में अमेरिकी सहयोग

  • 25 Jul 2017
  • 4 min read

संदर्भ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका की हालिया यात्रा से कई सामरिक क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों के और गहरा होने की संभावना है। इसमें विज्ञान और प्रौद्योगिकी में सहयोग को अधिक महत्त्व दिया जाना चाहिये, क्योंकि यही दोनों देशों में नवाचार और रोज़गार सृजन को बढ़ावा देने का मुख्य वाहक है। दोनों देशों के साझा मूल्य और हित भविष्य में सहयोग के लिये आवश्यक आधार प्रदान करते हैं।

सहयोग के क्षेत्र 

  • दोनों देशों के बीच स्वच्छ ऊर्जा के विकास में  भागीदारी और मूलभूत विज्ञान के क्षेत्रों जैसे, उच्च तीव्रता सुपरकंडक्टिंग प्रोटॉन एक्सीलेरेटर, तीस मीटर दूरबीन, लेज़र इंटरफेरोमीटर गुरुत्त्वाकर्षण वेधशाला और नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर राडार मिशन जैसे बड़ी परियोजनाओं में संयुक्त भागीदारी को लेकर द्विपक्षीय समझौते का एक दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।
  • इसी तरह सूचना प्रौद्योगिकी, नैनोतकनीक और जीन-संपादन प्रौद्योगिकी पर और आगे बढ़ते हुए हम उच्च लाभ अर्जित कर सकते हैं। इससे शिक्षा, अर्थव्यवस्था और व्यापार, रक्षा और गृहभूमि की सुरक्षा, ऊर्जा और जलवायु, स्वास्थ्य, कृषि और अंतरिक्ष जैसे सहयोग के सभी क्षेत्रों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
  • भारत और अमेरिका के बीच सहयोग की व्यवस्था को और मज़बूत करने और नए  पहल करने के लिये भारतीय संस्थाओं को अमेरिका के मुख्य संघीय संस्थाओं के सर्वोत्तम प्रथाओं को सीखने एवं समझने की ज़रूरत है।
  • नवाचार की प्रक्रिया को तीव्र करने एवं एक उद्यमशील वर्ग की स्थापना के लिये  विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से उत्पन्न ज्ञान को पूंजी में परिवर्तित करने की आवश्यकता है, जो समाज के लिये विभिन्न स्तरों पर समाधान खोजने में मदद कर सकता है। 
  • हम जिस नव-प्रवर्तन की बात कर रहे हैं, वह ज़रूरी नहीं कि अत्याधुनिक ही होना चाहिये, बल्कि उसे वर्तमान समस्याओं के समाधान करने में सक्षम होने के साथ-साथ ज़रूरत पर आधारित और सस्ता भी  होना चाहिये। 

प्रयोगशाला से बाजार तक

  • हमें अपनी संस्थागत प्रणाली को इस तरह बनाना चाहिये जिससे कि वैज्ञानिक और इंजीनियर उद्योग जगत के व्यापार सलाहकारों के साथ मिलकर अपने नवाचार को  प्रयोगशाला से बाज़ार तक की सफल यात्रा करवा सकें। 
  • इसके अलावा, दोनों देशों के अनुसंधान संस्थानों और विश्वविद्यालयों के बीच विद्यमान सहयोगी साझेदारी और छात्रों के आने-जाने के कार्यक्रमों को विभिन्न स्तरों पर जैसे, विश्वविद्यालय-से-विश्वविद्यालय, विश्वविद्यालय से उद्योग, उद्योग-से-उद्योग के स्तर तक मज़बूत बनाने की आवश्यकता है।   
  • अंत में, अमेरिकी प्रशासन में सफल भारतीय डायस्पोरा के ज्ञान और कौशल को न केवल भारतीय स्टार्ट-अप पारिस्थितिक तंत्र का समर्थन करने के लिये  इस्तेमाल किया जाना चाहिये, बल्कि उन कार्यक्रमों के लिये धन जुटाने में भी किया जाना चाहिये, जो भारत को समग्र विकास प्राप्त करने में मदद करेंगे। 
  • भारत के स्थानीय स्तर पर निर्माण करने एवं अधिक नौकरियों के सृजन के प्रयास को अमेरिकी प्रौद्योगिकी एवं भारतीय कौशल की आवश्यकता है। 
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