जैव विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021 | 11 Aug 2022
प्रिलिम्स के लिये:जैविक विविधता (संशोधन) विधेयक, आयुर्वेद योग प्राकृतिक चिकित्सा यूनानी सिद्ध और होम्योपैथी (आयुष)। मेन्स के लिये:जैव विविधता विधेयक 2021का महत्त्व और संबंधित चिंताएँ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जैव विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021 की जाँच करने वाली संयुक्त संसदीय समिति (JPC) ने विधेयक पर अपने सुझाव प्रस्तुत किये हैं।।
- JPC ने पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा किये गये कई संशोधनों को स्वीकार कर लिया है।
जैव विविधता अधिनियम, 2002
- परिचय:
- जैविक विविधता अधिनियम, 2002 (BDA) को जैविक विविधता के संरक्षण, इसके घटकों के सतत् उपयोग, जैविक संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान से उत्पन्न होने वाले लाभों के उचित और न्यायसंगत साझाकरण के लिये अधिनियमित किया गया था।
- विशेषताएँ:
- यह अधिनियम किसी भी व्यक्ति या संगठन को राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण से पूर्वानुमोदन के बिना, उसके अनुसंधान या वाणिज्यिक उपयोग के लिये भारत में होने वाले किसी भी जैविक संसाधन को प्राप्त करने से रोकता है।
- इस अधिनियम में जैविक संसाधनों तक पहुँच को विनियमित करने के लिये एक त्रि-स्तरीय संरचना की परिकल्पना की गई थी:
- राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA)
- राज्य जैव विविधता बोर्ड (SBBs)
- जैव विविधता प्रबंधन समितियाँ (BMCs) (स्थानीय स्तर पर)
- अधिनियम के तहत सभी अपराधों को संज्ञेय और गैर-जमानती के रूप में निर्धारित किया गया है।
जैव विविधता विधेयक 2021 में किये गये संशोधन
- भारतीय चिकित्सा प्रणाली को बढ़ावा देना: यह "भारतीय चिकित्सा प्रणाली" को बढ़ावा देना चाहता है, और भारत में उपलब्ध जैविक संसाधनों का उपयोग करते हुए अनुसंधान, पेटेंट आवेदन प्रक्रिया, अनुसंधान परिणामों के हस्तांतरण के तेज़ ट्रैकिंग की सुविधा प्रदान करता है।
- यह स्थानीय समुदायों को विशेष रूप से औषधीय मूल्य जैसे कि बीज के संसाधनों का उपयोग करने में सक्षम होने के लिये सशक्त बनाना चाहता है।
- यह विधेयक किसानों को औषधीय पौधों की खेती बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित करता है।
- जैवविविधता पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के उद्देश्यों से समझौता किये बिना इन उद्देश्यों को प्राप्त किया जाना है।
- कुछ प्रावधानों को अपराध से मुक्त करना: यह जैविक संसाधनों की शृंखला में कुछ प्रावधानों को अपराध से मुक्त करने का प्रयास करता है।
- इन परिवर्तनों को वर्ष 2012 में भारत के नागोया प्रोटोकॉल (सामान्य संसाधनों तक पहुँच और उनके उपयोग से होने वाले लाभों का उचित तथा न्यायसंगत साझाकरण) के अनुसमर्थन के अनुरूप लाया गया था।
- विदेशी निवेश की अनुमति: यह जैव विविधता के अनुसंधान में विदेशी निवेश की भी अनुमति देता है हालाँकि यह निवेश आवश्यक रूप से जैवविविधता अनुसंधान में शामिल भारतीय कंपनियों के माध्यम से करना होगा
- विदेशी संस्थाओं के लिये राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण से अनुमोदन आवश्यक है।
- आयुष चिकित्सकों को छूट: विधेयक पंजीकृत आयुष चिकित्सकों और संहिताबद्ध पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करने वाले लोगों को कुछ उद्देश्यों के लिये जैविक संसाधनों तक पहुँचने हेतु राज्य, जैवविविधता बोर्डों को पूर्व सूचना देने से छूट देने का प्रयास करता है।
प्रस्तावित संशोधनों के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ:
- संरक्षण की तुलना में व्यापार को प्राथमिकता: यह जैविक संसाधन संरक्षण अधिनियम के प्रमुख उद्देश्य की कीमत पर बौद्धिक संपदा और वाणिज्यिक व्यापार को प्राथमिकता देता है।
- बायो-पायरेसी का खतरा: आयुष प्रैक्टिशनर्स (AYUSH Practitioners) को छूट के लिये अब मंज़ूरी लेने की आवश्यकता नहीं है, इससे ‘बायो पायरेसी’ (Biopiracy) का मार्ग प्रशस्त होगा।
- बायोपायरेसी के व्यापार में स्वाभाविक रूप से होने वाली आनुवंशिक या जैव रासायनिक सामग्री का दोहन करने की प्रथा है।
- जैव विविधता प्रबंधन समितियों (BMCs) का हाशिये पर होना: प्रस्तावित संशोधन राज्य जैवविविधता बोर्डों को लाभ साझा करने की शर्तों को निर्धारित करने हेतु BMCs का प्रतिनिधित्व करने की अनुमति देते हैं।
- जैवविविधता अधिनियम 2002 के तहत, राष्ट्रीय और राज्य जैवविविधता बोर्डों को जैविक संसाधनों के उपयोग से संबंधित कोई भी निर्णय लेते समय जैवविविधता प्रबंधन समितियों (प्रत्येक स्थानीय निकाय द्वारा गठित) से परामर्श करना आवश्यक है।
- स्थानीय समुदाय को दरकिनार करना: विधेयक खेती वाले औषधीय पौधों को अधिनियम के दायरे से भी छूट देता है। हालांँकि यह पता लगाना व्यावहारिक रूप से असंभव है कि किन पौधों की खेती की जानी चाहिये और कौन-से पौधे जंगली हैं।
- यह प्रावधान बड़ी कंपनियों को अधिनियम के दायरे और बेनिफिट-शेयरिंग प्रावधानों के तहत पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता से बचने या स्थानीय समुदायों के साथ लाभ साझा करने की अनुमति दे सकता है।
समिति की सिफारिशें:
- जैविक संसाधनों का संरक्षण:
- जेपीसी ने सिफारिश की है कि, प्रस्तावित कानून के तहत जैव विविधता प्रबंधन समितियों तथा स्थानीय समुदायों को जैविक संसाधनों के संरक्षक के रूप में स्पष्टतः परिभाषित करके सशक्त बनाया जाना चाहिये।
- देशी चिकित्सा को बढ़ावा देना:
- औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा देकर जंगली औषधीय पौधों पर दबाव कम करें।
- संहिताबद्ध पारंपरिक ज्ञान को स्पष्ट रूप से परिभाषित करके भारतीय चिकित्सा पद्धति को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता सम्मेलन के उद्देश्यों से समझौता किये बिना भारत में उपलब्ध जैविक संसाधनों का उपयोग करते हुए अनुसंधान के फास्ट-ट्रैकिंग, पेटेंट आवेदन प्रक्रिया, अनुसंधान परिणामों के हस्तांतरण की सुविधा के माध्यम से स्वदेशी अनुसंधान और भारतीय कंपनियों को बढ़ावा देना।
- सतत् उपयोग को बढ़ावा देना:
- राज्य सरकार के परामर्श से जैविक संसाधनों के संरक्षण, संवर्द्धन और सतत् उपयोग के लिये राष्ट्रीय रणनीति विकसित करना।
- नागरिक अपराध:
- एक नागरिक अपराध होने की वजह से, समिति ने आगे सिफारिश की है कि जैव विविधता अधिनियम, 2002 के उल्लंघन में किसी भी अपराध में समानुपातिक दंड के साथ नागरिक दंड को भी शामिल किया जाना चाहिये ताकि उल्लंघनकर्त्ता किसी भी प्रकार से दण्ड प्रावधानों से न बच पाए।
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का अंतर्वाह:
- इसके अलावा भारत में कंपनी अधिनियम के अनुसार विदेशी कंपनियों एवं जैविक संसाधनों के उपयोग के लिये एक प्रोटोकॉल को परिभाषित कर, राष्ट्रीय हितों से समझौता किये बगैर अनुसंधान, पेटेंट और वाणिज्यिक उपयोग सहित जैविक संसाधनों की शृंखला में अधिक विदेशी निवेश को आकर्षित करने की आवश्यकता है।
- आयुष चिकित्सकों को छूट:
- समिति ने स्पष्ट किया कि आयुष चिकित्सक जो आजीविका के पेशे के रूप में भारतीय चिकित्सा पद्धति सहित स्वदेशी चिकित्सा का अभ्यास कर रहे हैं, उन्हें जैविक संसाधनों तक पहुँचने के लिये राज्य जैव विविधता बोर्डों को पूर्व सूचना से छूट प्रदान की गई है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न: भारत सरकार औषधि के पारंपरिक ज्ञान को दवा कंपनियों द्वारा पेटेंट कराने से कैसे बचा रही है? (मुख्य परीक्षा, 2019) |