अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अल्प बचत अधिनियम में संशोधन
- 14 Feb 2018
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चर्चा में क्यों?
भारत सरकार अल्प बचत करने वालों, विशेषकर बालिकाओं, वरिष्ठ नागरिकों के लाभ हेतु की जाने वाली बचत के साथ-साथ नियमित तौर पर बचत करने वाले उन लोगों के हितों को भी सर्वोच्च प्राथमिकता देती है जो हमारे देश के बचत ढाँचे की रीढ़ माने जाते हैं। विभिन्न तरह के अधिनियमों के कारण उत्पन्न मौजूदा अस्पष्टता के साथ-साथ अल्प बचत योजनाओं से जुड़े नियमों में निहित अस्पष्टता को भी समाप्त करने तथा ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम गवर्नेंस’ के उद्देश्य को और मज़बूत करने के लिये भारत सरकार ने सरकारी बचत प्रमाणपत्र अधिनियम, 1959 और सार्वजनिक भविष्य निधि अधिनियम, 1968 का विलय सरकारी बचत बैंक अधिनियम, 1873 में करने का प्रस्ताव किया है।
पृष्ठभूमि
- बचत आर्थिक संवृद्धि का एक वाहक है। बचत को सही दिशा देने के लिये सरकार ने 1959 में बचत प्रमाणपत्र बनाया।
- साथ ही असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को सामाजिक सुरक्षा देने के लिये लोक भविष्य निधि अधिनियम, 1968 बनाया गया।
- छोटी बचतों को सक्रिय बनाने के लिये सभी साधनों और योजनाओं को सरकार द्वारा पूर्णतः सुरक्षित बनाया गया है और इसे सरकार की गारंटी प्राप्त है।
- बचत के ये साधन आसान पहुँच प्रदान करते हैं और इनमें बचतकर्त्ता को तरलता देने की विशेषताएँ हैं।
संशोधन के बाद की स्थिति
- वर्तमान में एक ही अधिनियम के अस्तित्व में रहने की स्थिति में सरकारी बचत प्रमाणपत्र (एनएससी) अधिनियम, 1959 और सार्वजनिक भविष्य निधि अधिनियम, 1968 के प्रासंगिक प्रावधानों का विलय नए संशोधित अधिनियम में हो जाएगा और इसके लिये मौजूदा अधिनियम के किसी भी कार्यरत प्रावधान के मामले में कोई समझौता नहीं करना पड़ेगा।
- प्रस्तावित सरकारी बचत संवर्द्धन अधिनियम के अंतर्गत पीपीएफ अधिनियम को लाते समय सभी प्रकार की मौजूदा सुरक्षा को बरकरार रखा गया है। इस प्रक्रिया के ज़रिये जमाकर्त्ताओं को मिलने वाले किसी भी मौजूदा लाभ को वापस लेने का कोई प्रस्ताव नहीं है।
- केवल एक ही अधिनियम को प्रस्तावित करने के पीछे मुख्य उद्देश्य जमाकर्त्ताओं के लिये इसके क्रियान्वयन को सुगम बनाना है क्योंकि उन्हें विभिन्न अल्प बचत योजनाओं के प्रावधानों को समझने के लिये विभिन्न नियमों और अधिनियमों को पढ़ने या समझने की कोई ज़रूरत नहीं है।
- इसका एक अन्य उद्देश्य निवेशकों के लिये कुछ विशेष लचीलापन सुनिश्चित करना है।
इस संदर्भ में चिंता का विषय क्या है?
- विभिन्न हलकों के साथ-साथ प्रिंट मीडिया और सोशल मीडिया में इस आशय की चिंता जताई जा रही है कि सरकार का उद्देश्य जमाकर्त्ताओं पर किसी भी तरह का ऋण अथवा देनदारी बोझ होने की स्थिति में किसी अदालत द्वारा दिये जाने वाले आदेश अथवा हुक्मनामे के तहत सार्वजनिक भविष्य निधि खाते को जब्त करने के सापेक्ष मिलने वाली सुरक्षा को कम करना है।
- हालाँकि, सरकार की ओर से यह स्पष्ट किया गया है कि संबंधित प्रावधान को वापस लेने का कोई प्रस्ताव नहीं है और वर्तमान तथा भावी जमाकर्त्ताओं को संबंधित क्षेत्र अधिनियम के तहत जब्ती या कुर्की से सुरक्षा आगे भी मिलती रहेगी।
संशोधन से होने वले लाभ क्या होंगे?
मौजूदा लाभों को सुनिश्चित करने के अलावा जमाकर्त्ताओं के लिये कुछ विशेष नए लाभ भी विधेयक के तहत प्रस्तावित हैं, जिनका उल्लेख नीचे किया गया है।
- पीपीएफ अधिनियम के अनुसार, पाँच वित्त वर्ष पूरे होने से पहले पीपीएफ खाते को समय से पहले बंद नहीं किया जा सकता है।
- यदि जमाकर्त्ता अत्यंत आवश्यक होने पर पाँच साल से पहले ही पीपीएफ खाते को बंद करना चाहता है तो वह ऐसा नहीं कर सकता है।
- हालाँकि, सभी योजनाओं के संदर्भ में खाते को समय से पहले बंद करने के प्रावधान को आसान बनाने के लिये अब विशिष्ट योजना अधिसूचना के ज़रिये प्रावधान बनाए जा सकते हैं।
- अल्प बचत योजनाओं को समय से पहले बंद करने का लाभ अब आपातकालीन चिकित्सा, उच्च शिक्षा की ज़रूरतों इत्यादि की स्थिति में मिल सकता है।
- अब प्रस्तावित विधेयक के प्रावधानों के तहत अवयस्क या नाबालिग की ओर से अभिभावक द्वारा अल्प बचत योजनाओं में निवेश किया जा सकता है। यही नहीं, अभिभावक को संबंधित अधिकार एवं दायित्व भी दिये जा सकते हैं।
- इससे पहले मौजूदा अधिनियमों में अवयस्क द्वारा धनराशि जमा करने के बारे में कोई भी स्पष्ट प्रावधान नहीं था। अब इस आशय का प्रावधान कर दिया गया है, ताकि बच्चों के बीच बचत की संस्कृति को बढ़ावा दिया जा सके।
- अधिनियमों के मौजूदा प्रावधानों के अनुसार, यदि किसी जमाकर्त्ता की मृत्यु हो जाती है और नामांकन बरकरार रहता है तो वैसी स्थिति में शेष धनराशि नामित व्यक्ति को दे दी जाएगी।
- हालाँकि, माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि नामित व्यक्ति को केवल कानूनी वारिस के लाभ के लिये ट्रस्टी के रूप में राशि एकत्र करने का अधिकार है।
- इस वजह से अधिनियमों के प्रावधानों और उच्चतम न्यायालय के फैसले के बीच विवाद उत्पन्न हो रहे थे। अब नामित व्यक्ति के अधिकार को और भी ज़्यादा स्पष्ट ढंग से परिभाषित कर दिया गया है।
- मौजूदा अधिनियमों में अवयस्क के नाम पर खाता खोले जाने की स्थितिमें नामित या नामांकन करने का कोई प्रावधान नहीं है।
- इसके अलावा, मौजूदा अधिनियमों में यह कहा गया है कि यदि खाताधारक की मृत्यु हो जाती है और कोई नामित व्यक्ति नहीं होता है तथा कुलराशि निर्धारित सीमा से अधिक होती है तो वैसी स्थिति में धनराशि कानूनी वारिस को दे दी जाएगी।
- इस स्थिति में अभिभावक को उत्तराधिकार प्रमाणपत्र लेना पड़ता है। इस असुविधा को समाप्त करने के लिये अवयस्क के नाम पर खोले जाने वाले खाते के संबंध में नामांकन के प्रावधानों को शामिल किया गया है।
- इसके अलावा, यह भी प्रावधान किया गया है कि यदि अवयस्क की मृत्यु हो जाती है और कोई भी नामित व्यक्ति नहीं होता है तो वैसी स्थिति में शेष धनराशि अभिभावक को दे दी जाएगी।
- मौजूदा अधिनियमों में शिकायत निवारण के बारे में कुछ भी उल्लेख नहीं किया गया है। हालाँकि, अब संशोधित अधिनियम के तहत सरकार शिकायत निवारण के साथ-साथ अल्प बचत से जुड़े विवादों के सौहार्द्पूर्ण एवं त्वरित निपटान के लिये उपयुक्त व्यवस्था कर सकती है।
- संशोधित अधिनियम में जिन प्रावधानों को शामिल करने का प्रस्ताव किया गया है उससे अल्प बचत योजनाओं के तहत खाता परिचालन में लचीलापन और भी ज़्यादा बढ़ जाएगा।
बैंक जमाओं की तुलना में ऊँची ब्याज दरों की पेशकश करने वाली कुछ अल्प बचत योजनाओं पर आयकर लाभ भी मिलता है। इस संशोधन के ज़रिये अल्प बचत योजना पर देय ब्याज दर अथवा टैक्स नीति में कोई भी बदलाव नहीं किया जा रहा है।