अंतर्राष्ट्रीय संबंध
बंदरगाहों की पीपीपी परियोजनाओं के रियायती करार में संशोधन
- 04 Feb 2018
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चर्चा में क्यों ?
हाल ही में सरकार ने प्रमुख बंदरगाहों की सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) परियोजनाओं के लिये संशोधित रियायती करार (revised Model Concession Agreement) को मंजूरी दे दी। सरकार द्वारा यह कदम माहौल को निवेश-अनुकूल और बेहतर बनाने के उद्देश्य से उठाया गया है।
करार के प्रमुख बिंदु
- इस करार में प्रावधान किया गया है कि बंदरगाहों के विकास में शामिल कंपनियों अथवा डेवलपर्स को परियोजना के परिचालन के 2 साल पूरे के होने के बाद अपनी पूरी 100 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचकर करार से बाहर निकलने की सुविधा प्राप्त होगी।
- रियायत पाने वाले को अतिरिक्त ज़मीन दिये जाने के प्रावधानों के तहत जमीन का किराया 200 प्रतिशत से कम कर 120 प्रतिशत कर दिया गया है।
- संशोधन के तहत विवाद सुलझाने के लिये सोसायटी फॉर अफोर्डेबल रीड्रेसल ऑफ डिस्प्यूट्स-पोर्ट्स (SAROD-Ports) के गठन की भी बात की गई है। इससे इस क्षेत्र में भी राजमार्गों (Highways) के MCA की तरह विवाद निपटान प्रणाली तैयार हो जाएगी।
- छूट धारकों को ‘प्रति मीट्रिक टन माल/टीईयू हैंडल्ड’ के आधार पर रॉयल्टी देनी होगी, जो वार्षिक डब्ल्यूपीआई में उतार-चढ़ाव के मद्देनजर तय होगी। यह रॉयल्टी, वसूल करने की वर्तमान प्रक्रिया के स्थान पर लागू होगी, जो कुल राजस्व के प्रतिशत के बराबर होगी। इसे बोली के दौरान निर्धारित किया जाएगा और जिसकी गणना महापत्तन प्रशुल्क प्राधिकरण (Tariff Authority for Major Ports) द्वारा निर्धारित अग्रिम मानक प्रशुल्क सीमा के आधार पर की जाएगी।
- इससे सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) के तहत संचालकों की लंबित शिकायतों को दूर करने में मदद मिलेगी।
- नए करार में अब ‘वास्तविक परियोजना लागत’ को ‘कुल परियोजना लागत’ में बदला जाएगा।
- छूट धारकों को अब बड़ी क्षमता वाले उपकरण, सुविधाएं, प्रौद्योगिकी लगाने में स्वायत्तता होगी और वे उच्च उत्पादकता तथा बेहतर इस्तेमाल के लिये अभियांत्रिकी का उपयोग कर सकेंगे। इसके अलावा परियोजना की लागत में भी बचत होगी।
- सीओडी (Commercial Operation Date) के पहले संचालन शुरू होने के संबंध में प्रावधान।
- दोबारा वित्तपोषण के प्रावधानों के संबंध में उद्देश्य यह तय किया गया है कि छूट धारकों को सस्ती दर पर दीर्घकालिक निधियों की उपलब्धता हो, ताकि परियोजनाओं की वित्तीय उपादेयता में सुधार हो।
- परियोजना की समय-समय पर प्रगति रिपोर्ट जानने के लिये एक निगरानी व्यवस्था की शुरुआत की गई है।
पिछले 20 वर्षों के दौरान बंदरगाह क्षेत्र में पीपीपी परियोजनाओं के प्रबंधन से प्राप्त होने वाले अनुभवों के मद्देनज़र इन संशोधनों का प्रस्ताव किया गया है। इसके अलावा मौजूदा एमसीए के कुछ प्रावधानों के कारण होने वाली समस्याओं को समाप्त करने की दृष्टि से भी संशोधनों का प्रस्ताव किया गया है। हितधारकों के साथ गहन विचार-विमर्श के बाद एमसीए के संशोधनों को अंतिम रूप दिया गया है।