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भारतीय इतिहास

अल्लूरी सीताराम राजू

  • 05 Jul 2022
  • 4 min read

प्रिलिम्स के लिये:

आधुनिक इतिहास, महात्मा गांधी, असहयोग आंदोलन।

मेन्स के लिये:

अल्लूरी सीताराम राजू और स्वतंत्रता आंदोलन में उनका योगदान।

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री ने 4 जुलाई, 2022 को अल्लूरी सीतारमण राजू की 125वीं जयंती के उपलक्ष्य में आंध्र प्रदेश में उनकी एक कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया।

  • आज़ादी का अमृत महोत्सव के हिस्से के रूप में सरकार स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को उचित मान्यता देने और देश भर के लोगों को उनके बारे में जागरूक करने के लिये प्रतिबद्ध है।

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अल्लूरी सीताराम राजू :

  • परिचय:
    • वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल एक भारतीय क्रांतिकारी थे।
    • उनका जन्म वर्तमान आंध्र प्रदेश में वर्ष 1897 (कुछ स्रोतों में वर्ष 1898) में हुआ था।
    • वह 18 वर्ष की आयु में एक संन्यासी बन गए और उन्होंने अपनी तपस्या, ज्योतिष तथा चिकित्सा के ज्ञान एवं जंगली जानवरों को वश में करने की अपनी क्षमता के कारण पहाड़ी व आदिवासी लोगों के बीच एक रहस्यमय आभा प्राप्त की।
  • स्वतंत्रता आंदोलन:
    • बहुत कम उम्र में राजू ने गंजम, विशाखापत्तनम और गोदावरी में पहाड़ी लोगों के असंतोष को अंग्रेज़ो के खिलाफ अत्यधिक प्रभावी गुरिल्ला प्रतिरोध में बदल दिया।
      • गुरिल्ला युद्ध अनियमित युद्ध का एक रूप है जिसमें लड़ाकों के छोटे समूह एक बड़ी और कम-गतिशील पारंपरिक सेना से लड़ने के लिये घात, तोड़फोड़, छापे, छोटे युद्ध, हिट-एंड-रन रणनीति एवं गतिशीलता सहित सैन्य रणनीति शामिल है।
    • औपनिवेशिक शासन ने आदिवासियों की पारंपरिक पोडु (स्थानांतरित) खेती को खतरे में डाल दिया, क्योंकि सरकार ने वन भूमि को सुरक्षित करने की मांग की थी।
    • वर्तमान आंध्र प्रदेश में जन्मे सीताराम राजू वर्ष 1882 के मद्रास वन अधिनियम के खिलाफ ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों में शामिल हो गए। इस अधिनियम ने आदिवासियों (आदिवासी समुदायों) के उनके वन आवासों में मुक्त आवाजाही तथा उनके पारंपरिक रूप पोडु (स्थानांतरित खेती झूम कृषि) को प्रतिबंधित कर दिया।
    • अंग्रेज़ो के प्रति बढ़ते असंतोष ने 1922 के रम्पा विद्रोह/मन्यम विद्रोह को जन्म दिया, जिसमें अल्लूरी सीताराम राजू ने एक नेतृत्वकर्त्ता के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई।
      • रम्पा विद्रोह महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के साथ हुआ। उन्होंने लोगों को खादी पहनने और शराब छोड़ने के लिये सहमत किया।
      • लेकिन साथ ही उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि भारत केवल बल के प्रयोग से ही आज़ाद हो सकता है अहिंसा से नहीं।
    • स्थानीय ग्रामीणों द्वारा उनके वीरतापूर्ण कारनामों के लिये उन्हें "मन्यम वीरुडु" (जंगल का नायक) उपनाम दिया गया था।
    • वर्ष 1924 में अल्लूरी सीताराम राजू को पुलिस हिरासत में ले लिया गया, एक पेड़ से बांँध कर सार्वजनिक रूप से गोली मार दी गई तथा सशस्त्र विद्रोह को प्रभावी ढंग से समाप्त कर दिया।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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