अल्लाह बख्श और मेवाड़ी शैली की चित्रकला | 06 Oct 2023
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स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
17वीं सदी के अंत के मेवाड़ी लघु चित्रकार अल्लाह बख्श ने अपनी चित्रकला में महाभारत की व्याख्या को चित्रित किया और साथ ही वह अपने जटिल एवं आनंददायक प्रतिनिधित्व के लिये भी जाने जाते हैं।
अल्लाह बख्श:
- परिचय:
- अल्लाह बख्श 17वीं शताब्दी के अंत में उदयपुर के महाराजा जय सिंह द्वारा नियुक्त एक दरबारी चित्रकार थे।
- चित्रकारी एवं चित्रण:
- अल्लाह बख्श की प्रत्येक चित्रकला पात्रों की वेशभूषा, पृष्ठभूमि में वनस्पतियों, जीवों तथा जादुई एवं रहस्यमय घटनाओं के चित्रण को सावधानीपूर्वक दर्शाती है।
- ये लघुचित्र कवि और चित्रकार की मौखिक एवं दृश्य कल्पनाओं के बीच संवाद को प्रदर्शित करते हुए, महाभारत का एक रमणीय प्रतिनिधित्व प्रस्तुत करते हैं।
मेवाड़ी शैली की लघु चित्रकला:
- परिचय:
- मेवाड़ चित्रकला 17वीं और 18वीं शताब्दी की भारतीय लघु चित्रकला की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण शाखाओं में से एक है। यह राजस्थानी शैली की एक शाखा है, इसे मेवाड़ (राजस्थान राज्य में) की हिंदू रियासत में विकसित किया गया था।
- यह चित्रकला का एक अत्यधिक परिष्कृत एवं जटिल रूप है, जो विस्तार, जीवंत रंगों और सूक्ष्म शिल्प कौशल पर ध्यान केंद्रित करता है।
- चित्रकला शाखा के कार्यों की विशेषता सरल चमकीले रंग और प्रत्यक्ष भावनात्मक आकर्षण है।
- शैली में तुलनात्मक रूप से बड़ी संख्या में चित्रों की तारीखें तथा उनकी उत्पत्ति के स्थान बताए जा सकते हैं, जो किसी भी अन्य राजस्थानी रियासत की तुलना में मेवाड़ में चित्रकला के विकास की अधिक व्यापक तस्वीर को दर्शाते हैं।
- प्रसिद्ध चित्रकार: साहिबदीन (1628 ई. में रागमाला को चित्रित किया)।
लघु चित्रकला:
- परिचय:
- लघु चित्र रंगीन हस्तनिर्मित चित्र होते हैं जो आकार में बहुत छोटे होते हैं। इन चित्रों की उत्कृष्ट विशेषताओं में से एक जटिल ब्रशवर्क है जो उनकी विशिष्ट पहचान में योगदान देता है।
- चित्रों में प्रयुक्त रंग विभिन्न प्राकृतिक स्रोतों जैसे सब्जियों, नील, कीमती पत्थरों, सोने और चाँदी से प्राप्त होते हैं।
- इन्हें कागज़ और कपड़े जैसी सामग्रियों पर चित्रित किया जाता है।
- बंगाल के पालों को भारत में लघु चित्रकला का अग्रणी माना जाता है, लेकिन यह कला मुगल शासन के दौरान अपने चरम पर पहुँच गई।
- लघु चित्रों की परंपरा को किशनगढ़, बूंदी जयपुर, मेवाड़ एवं मारवाड़ सहित विभिन्न राजस्थानी चित्रकला शाखा के कलाकारों ने आगे बढ़ाया।
- लघु चित्रकारी की शाखाएँ:
- पाल शाखा: प्रारंभिक भारतीय लघुचित्र 8वीं शताब्दी ई.पू. की पाल शाखा से संबंधित हैं।
- चित्रकला की इस शाखा में रंगों के प्रतीकात्मक उपयोग पर बल दिया जाता था साथ ही विषय-वस्तु प्राय: बौद्ध तांत्रिक अनुष्ठानों से ली जाती थी।
- जैन शाखा: जैन चित्रकला शैली को 11वीं शताब्दी में प्रसिद्धि प्राप्त हुई जब 'कल्प सूत्र' तथा 'कालकाचार्य कथा' जैसे धार्मिक ग्रंथों को लघु चित्रों के रूप में चित्रित किया गया।
- मुगल शाखा: भारतीय चित्रकला और फारसी लघु चित्रों के समामेलन से लघु चित्रकला की मुगल शाखा का उदय हुआ।
- दिलचस्प बात यह है कि फारसी लघु चित्रकलाओं पर काफी हद तक चीनी चित्रकला का प्रभाव देखा जा सकता है।
- राजस्थानी शाखा: मुगल लघु चित्रकला के पतन के परिणामस्वरूप राजस्थानी शाखा का उदय हुआ। राजस्थानी चित्रकला शैली को उस क्षेत्र के आधार पर विभिन्न शैलियों में विभाजित किया जा सकता है, जहाँ उनकी रचना की गई थी।
- मेवाड़ शाखा, मारवाड़ शाखा, हाडोती शाखा, ढूंढर शाखा, कांगड़ा और कुल्लू कला शाखा, ये सभी राजस्थानी चित्रकला की शाखाएँ हैं।
- पहाड़ी शाखा: लघु चित्रकला की पहाड़ी शाखा का उदय 17वीं शताब्दी में हुआ। इनकी उत्पत्ति उत्तर भारत के राज्यों, हिमालय क्षेत्र में हुई।
- डेक्कन शाखा: लघु चित्रकला की डेक्कन शाखा 16वीं से 19वीं शताब्दी तक अहमदनगर, गोलकुंडा, तंजौर, हैदराबाद और बीजापुर जैसे स्थानों में विकसित हुई।
- लघु चित्रकला की डेक्कन शाखा काफी हद तक डेक्कन की समृद्ध परंपराओं और तुर्किये, फारस तथा ईरान की धार्मिक मान्यताओं से प्रभावित थी।
- पाल शाखा: प्रारंभिक भारतीय लघुचित्र 8वीं शताब्दी ई.पू. की पाल शाखा से संबंधित हैं।
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