अंतर्राष्ट्रीय संबंध
महत्त्वपूर्ण है नदियों को जलमार्गों से जोड़ना
- 12 Sep 2017
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चर्चा में क्यों?
- पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल के दौरान पहली बार नदियों को एक-दूसरे से जोड़ने पर विचार किया गया था। तब से लेकर अब तक कई प्रयासों के बावजूद इस परियोजना को धरातल पर नहीं उतारा जा सका है।
- इस परियोजना में बाधक कई अन्य समस्यायों में एक प्रमुख समस्या है राज्यों के बीच पानी के अपने-अपने हिस्से के लेकर विवादों का होना। लेकिन हाल ही में विशेषज्ञों के एक समूह ने नदियों को जोड़ने के वैकल्पिक तरीके सुझाएँ हैं।
- इन सुझावों पर अमल के द्वारा बेहतर परिणाम तो हासिल किये ही जा सकते हैं, साथ ही विवादों को भी पीछे छोड़ा जा सकता है।
प्रस्तावित विधि
- प्रस्तावित नए तरीके में एक ऐसी परिकल्पना की गई है जिसमें दो नदियों को एक समतल सतह पर बने जलमार्ग के माध्यम से जोड़ा जाना है।
- इससे नदियों के बीच दो तरफा प्रवाह की स्थिति बनाई जा सकती है। विदित हो कि इस विधि को स्मार्ट जलमार्ग के रूप में भी जाना जाता है।
क्या होगा लाभ?
- सिंचाई क्षेत्र में वृद्धि: इस विधि के अनुपालन से परंपरागत इंटरलिंकिंग की तुलना में बड़े पैमाने पर खेतों को सिंचित किया जा सकता है।
- केवल अधिशेष जल का उपयोग: इस विधि के अनुपालन में केवल बाढ़ के अधिशेष जल का ही प्रयोग किया जाएगा जो कि समुद्र में बहकर बर्बाद हो जाता है।
- अन्य फायदे: इस विधि के अनुपालन द्वारा पानी के द्वि-दिशात्मक प्रवाह, शून्य पम्पिंग लागत और भूमि अधिग्रहण क्षेत्र में 6 प्रतिशत की कमी आदि को सुनिश्चित किया जा सकता है।
निष्कर्ष
- दुनिया में जितना पानी उपलब्ध है, उसका लगभग चार फीसद ही भारत के पास है। इतने से जल में ही भारत पर अपनी आबादी, जो दुनिया की कुल आबादी का लगभग 17 फीसद है, की जल संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने का भार है। तिस पर यह कि करोड़ों क्यूबिक क्यूसेक पानी हर साल बहकर समुद्र में बर्बाद हो जाता है।
- ऐसे में नदी जोड़ो परियोजना वरदान साबित हो सकती है। हालाँकि ज़रूरी यह भी है कि इसे तब अमल में लाया जाए, जब विस्तृत अध्ययन द्वारा यह प्रमाणित हो कि इससे पर्यावरण या जलीय जीवन के लिये कोई समस्या पैदा नहीं होगी।