लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

जैव विविधता और पर्यावरण

अरब सागर के शैवाल

  • 02 Jun 2018
  • 6 min read

संदर्भ

शैवालों का खिलना मानव नेत्रों के लिये तो सुंदरता की वस्तु हो सकती है लेकिन हाल ही में वैज्ञानिक अध्ययनों से यह बात सामने आई है कि अरब सागर में शैवालों का खिलना मछलियों के लिये मृत्यु का कारण हो सकता है।

क्या हैं ये समुद्र के आकर्षक दिखने वाले भाग?   

  • ये अत्यधिक आकर्षक हरे भाग जो अक्सर रात में चमकते हैं, नोक्टिलुका शैवाल (Noctiluca algae) का संचय है। 
  • उनके रूप-रंग की ये दीप्ति, बायोल्यूमाइन्सेंस (bioluminescence) नामक घटना के कारण होती है।

नोक्टिलुका शैवालों का प्रभाव

  • 'सी स्पार्कल' के नाम से प्रचलित, ये सुंदर स्थल प्रतिकूल रूप से इस क्षेत्र के पतन की ओर संकेत करते हैं क्योंकि यहाँ मछलियाँ फल-फूल नहीं पाती और कभी-कभी इन शैवालों के कारण उनकी मृत्यु भी हो जाती है।
  • ये शैवाल मछली की खाद्य श्रृंखला के आधार कहे जाने वाले प्लैंकटोनिक जीवों, जिन्हें डायटम कहा जाता है, का तेज़ी से भक्षण करते हैं।
  • ये शैवाल उच्च मात्रा में अमोनिया का उत्सर्जन भी करते हैं जो कि मछलियों की उच्च मृत्यु दर से जुड़ा हुआ है 
  • इन शैवालों का प्रसार पश्चिमी तट पर स्थित शहरों में निम्न ऑक्सीजन और तटीय प्रदूषण के लिये भी ज़िम्मेदार है।

शैवालों की संख्या में वृद्धि के कारण

  • भारत-चीन के वैज्ञानिको द्वारा किये गए संयुक्त अध्ययन में शैवालों की संख्या में होने वाली तीव्र वृद्धि के लिये ग्लोबल वार्मिंग को ज़िम्मेदार ठहराया गया है।
  • इस समस्या के लिये वैज्ञानिकों द्वारा प्रदूषकों या रासायनिक प्रदूषण को ज़िम्मेदार नहीं माना गया है।   

अध्ययन में शामिल शोधकर्त्ता
संयुक्त अध्ययन के अंग के रूप में इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओसियन इनफार्मेशन सर्विसेज (INCOIS), हैदराबाद, नेशनल ओसियनिक एंड एटमोस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) तथा नेशनल मरीन फिशरीज़ सर्विस (NMFS), अमेरिका के वैज्ञानिकों ने 'समुद्री मत्स्यपालन और भारतीय समुद्रों में हानिकारक शैवालों के खिलने के संदर्भ में पूर्वानुमानित क्षमताओं का विकास' करने के हेतु संयुक्त रूप से कार्य किया।

कैसे किया गया शोध?

  • वैज्ञानिकों ने बड़े पैमाने पर नमूने और डेटा एकत्र किये। 
  • डायटोम्स और हानिकारक नोक्टिलुका दोनों के विस्तार का निरीक्षण करने के लिये संवेदक उपग्रहों का उपयोग किया गया। 
  • इसके अलावा, समुद्री परिस्थितियों, पोषक तत्त्वों, और ऑक्सीजन सांद्रता का अध्ययन विशेष मुक्त-तैरने वाले और स्वयं-प्रक्षेपित एर्गो (Argo) बेड़े से जुड़े सेंसर के साथ किया गया था। 
  • जल के नमूने के रासायनिक विश्लेषण बोर्ड के शोध जहाज़ों पर किये गए।

अध्ययन के निष्कर्ष

  • अध्ययन के निष्कर्ष में कहा गया कि जलवायु के गर्म होने के कारण समुद्र के पृष्ठ में अधिक तीव्रता से वृद्धि होगी। 
  • यह सतह पर इसकी सांद्रता को कम करते हुए, समुद्र तल से सिलिकेट जैसे पोषक तत्त्वों के ऊपर की तरफ़ अपवाहन को धीमा कर देगा।
  • सतह के पानी पर बढ़ने वाले डायटम को अपने खुर्दबीन अस्थिपंजर बनाने के लिये सूर्य का प्रकाश और सिलिकेट दोनों की आवश्यकता होती है। इस प्रकार सिलिकेट कम उपलब्ध होने पर डायटम अपनी वृद्धि नहीं कर पाता है। 
  • दूसरी तरफ, नोक्टिलुका पर इन परिवर्तनों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है इसके अलावा वह शेष बचे डायटम का भी शिकार करता है। 
  • अध्ययन में पाया गया कि इस क्षेत्र के जल में ऑक्सीजन की पर्याप्त मौज़ूदगी है इससे स्पष्ट होता है कि निम्न ऑक्सीजन तथा नोक्टिलुका की वृद्धि के बीच कोई संबंध नहीं है। 
  • अतः ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि को मछली की आहार श्रृंखला बाधित होने का कारण माना जा सकता है जिसके कारण इस क्षेत्र में मछलियों की संख्या में कमी आई है।   

मोज़ेक नेटवर्क (MOSAIC Network) 

  • इस अध्ययन को आगे बढ़ाने के प्रयास में INCOIS एक मरीन ऑब्जरवेशन सिस्टम अलोंग इंडियन कोस्ट (Marine Observation System Along Indian Coast -MOSAIC) की स्थापना करेगा। 
  • मोज़ेक नेटवर्क के अंतर्गत पूर्वी तथा पश्चिमी प्रत्येक तट पर तीन वेधशालाओं की स्थापना की जाएगी। 
  • इसके अलावा, स्वचालित प्लावकों (buoys) का एक नेटवर्क तटीय पानी की गुणवत्ता की निगरानी करेगा और अन्य मानदंड एकत्रित करेगा जो क्षेत्र में मत्स्यपालन को बनाए रखने में मदद करेंगे और इन जानकारियों को वेधशालाओं तक प्रसारित करेगा।
  • इस साल के अंत में लॉन्च होने वाली इस परियोजना का उद्देश्य समुद्री तटीय प्रदूषण की निगरानी करना है।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2