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आंतरिक सुरक्षा

आकाश प्राइम सरफेस-टू-एयर मिसाइल: डीआरडीओ

  • 29 Sep 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन, आकाश प्राइम, मैन पोर्टेबल एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल, आकाश मिसाइल, एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम, पृथ्वी, अग्नि, त्रिशूल, नाग

मेन्स के लिये:

रक्षा प्रोद्योगिकी के स्वदेशीकरण में DRDO की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation-DRDO) ने एकीकृत परीक्षण रेंज (ITR) चांदीपुर, ओडिशा से आकाश मिसाइल के एक नए संस्करण 'आकाश प्राइम' (Akash Prime) का परीक्षण किया।

  • इससे पहले डीआरडीओ ने आकाश-एनजी (नई पीढ़ी) और मैन पोर्टेबल एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल (Man Portable Anti Tank Guided Missile) लॉन्च की थी।

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन

  • यह भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन कार्य करता है, जिसका लक्ष्य भारत को अत्याधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकियों में सशक्त बनाना है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1958 में रक्षा विज्ञान संगठन (DSO) के साथ भारतीय सेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (TDE) तथा तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय (DTDP) के संयोजन के बाद की गई थी।

प्रमुख  बिंदु

Akash-Prime

  • आकाश प्राइम के विषय में:
    • यह मौजूदा आकाश प्रणाली की तुलना में बेहतर सटीकता के लिये स्वदेशी सक्रिय रेडियो फ्रीक्वेंसी से लैस है, जो यह सुनिश्चित करता है कि जिस लक्ष्य पर मिसाइल दागी गई है वहीं पहुँचे।
    • आकाश प्राइम में अन्य सुधार भी शामिल किये गए थे जैसे- उच्च ऊँचाई पर कम तापमान वाले वातावरण में विश्वसनीय प्रदर्शन सुनिश्चित करना।
  • विकास और उत्पादन:
    • मिसाइल और सामरिक प्रणाली (Missiles and Strategic System) के अंतर्गत अन्य डीआरडीओ प्रयोगशालाओं के सहयोग से रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला (DRDL), हैदराबाद द्वारा विकसित।
  • आकाश मिसाइल:
    • आकाश भारत की पहली स्वदेश निर्मित मध्यम श्रेणी की सतह से हवा (SAM) में मार करने वाली मिसाइल है जो कई दिशाओं, कई लक्ष्यों को निशाना बना सकती है। इस मिसाइल को मोबाइल प्लेटफाॅर्म्स के माध्यम से युद्धक टैंकों या ट्रकों से लॉन्च किया जा सकता है। इसमें लगभग 90% तक लक्ष्य को भेदने की सटीकता की संभावना है।
    • इस प्रकार से यह अद्वितीय है क्योंकि यह रडार प्रणाली समूह या स्वायत्त मोड में कई दिशाओं से अत्यधिक लक्ष्यों को भेदने में सक्षम है।
    • इसमें इलेक्ट्रॉनिक काउंटर-काउंटरमेशर्स (Electronic Counter-Counter Measures-ECCM) जैसी विशेषताएँ है जिसका अर्थ है कि इसमें ऑन-बोर्ड तंत्र हैं जो डिटेक्शन सिस्टम के प्रभाव को कम करने वाले इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम का सामना कर सकते हैं।
    • इस मिसाइल का संचालन स्वदेशी रूप से विकसित रडार 'राजेंद्र' द्वारा किया जाता है।
    • यह मिसाइल ध्वनि की गति से 2.5 गुना तीव्र गति से लक्ष्य को भेद सकती है तथा निम्न, मध्यम और उच्च ऊँचाई पर लक्ष्यों का पता लगाकर उन्हें नष्ट कर सकती है।
    • यह मिसाइल ठोस ईंधन तकनीक और उच्च तकनीकी रडार प्रणाली के कारण अमेरिकी पैट्रियट मिसाइलों (US’ Patriot Missiles) की तुलना में सस्ती और अधिक सटीक है।

एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम

  • इसकी स्थापना का विचार प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा दिया गया था। इसका उद्देश्य मिसाइल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करना था। इसे भारत सरकार द्वारा वर्ष 1983 में अनुमोदित किया गया था और मार्च 2012 में पूरा किया गया था।
  • इस कार्यक्रम के तहत विकसित 5 मिसाइलें (P-A-T-N-A) हैं:
    • पृथ्वी: सतह-से-सतह पर मार करने में सक्षम कम दूरी वाली बैलिस्टिक मिसाइल।
    • अग्नि: सतह-से-सतह पर मार करने में सक्षम मध्यम दूरी वाली बैलिस्टिक मिसाइल, यानी अग्नि (1,2,3,4,5)।
    • त्रिशूल: सतह-से-आकाश में मार करने में सक्षम कम दूरी वाली मिसाइल।
    • नाग: तीसरी पीढ़ी की टैंक भेदी मिसाइल।
    • आकाश: सतह-से-आकाश में मार करने में सक्षम मध्यम दूरी वाली मिसाइल।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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