भारतीय इतिहास
अकाल तख्त
- 06 Dec 2024
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प्रिलिम्स के लिये:अकाल तख्त, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति, गुरु हरगोबिंद, गुरु गोबिंद सिंह, महाराजा रणजीत सिंह, गुरु ग्रंथ साहिब मेन्स के लिये:धार्मिक संस्थाओं का शासन और स्वायत्तता, भारत में धर्म और राजनीति के बीच अंतर्संबंध, सिख धर्म |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (SGPC) द्वारा शासित सिख समुदाय की सर्वोच्च लौकिक और आध्यात्मिक संस्था अकाल तख्त ने शिरोमणि अकाली दल (SAD) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल पर धार्मिक दंड (तन्खा) लगाया है।
- यह कार्रवाई पंजाब में SAD के कार्यकाल (वर्ष 2007-2017) के दौरान कथित कुशासन के लिये सज़ा के रूप में की गई है।
- इससे अकाल तख्त के अधिकार तथा शिरोमणि अकाली दल और SGPC के साथ उसके संबंधों पर चर्चा आरंभ हो गई है।
अकाल तख्त क्या है?
- ऐतिहासिक महत्त्व: अकाल तख्त की स्थापना वर्ष 1606 में गुरु हरगोबिंद, 6 वें सिख गुरु द्वारा, उनके पिता, गुरु अर्जन देव (सिखों के 5 वें गुरु) को मुगलों द्वारा फाँसी दिये जाने के परिणामस्वरूप की गई थी।
- तख्त एक फारसी शब्द है जिसका अर्थ है "शाही सिंहासन"। अकाल तख्त स्वर्ण मंदिर परिसर में हरमंदिर साहिब के सामने स्थित है।
- मुगल उत्पीड़न के प्रत्युत्तर में निर्मित अकाल तख्त सिख संप्रभुता का प्रतीक बन गया, जो शासन एवं न्याय के लिये एक मंच के रूप में कार्य करता था।
- प्रतीकात्मकता: गुरु ने दो तलवारों को चिह्नित किया, जो मीरी (लौकिक शक्ति) और पीरी (आध्यात्मिकता) का प्रतीक थीं, जिसमें मीरी तलवार छोटी थी, जो आध्यात्मिक अधिकार की प्रधानता को दर्शाती थी।
- अकाल तख्त में एक ऊँचा सिंहासन है, जो मुगल संप्रभुता द्वारा स्वीकृत अधिकतम ऊँचाई से तीन गुना ऊँचा है।
- इसकी ऊँचाई दिल्ली के लाल किले में मुगल सिंहासन की बालकनी से भी अधिक है, जो मुगल शासन के खिलाफ अवज्ञा और सिख संप्रभुता का प्रतीक है।
- आध्यात्मिक और लौकिक प्राधिकार: अकाल तख्त सिख धर्म के पाँच तख्तों (शक्ति के आसन) में से एक है, लेकिन अपने दोहरे प्राधिकार (लौकिक शासन के साथ आध्यात्मिक मार्गदर्शन) के कारण सर्वोच्च स्थान रखता है।
- हुक्मनामा (फरमान) जारी करने की परंपरा यहीं से आरंभ हुई, जो सिख समुदाय के मार्गदर्शन में इसकी सर्वोच्च भूमिका का प्रतीक है।
- 10वें गुरु के बाद की भूमिका: गुरु गोबिंद सिंह (10 वें और अंतिम गुरु) के निधन के पश्चात् अकाल तख्त सिखों के लिये एक महत्त्वपूर्ण केंद्र बन गया।
- अशांत समय के दौरान, जैसे कि 18 वीं शताब्दी में सिखों पर अत्याचार के दौरान, अकाल तख्त सरबत खालसा (सिखों की आम सभा) के लिये महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर विचार-विमर्श करने का केंद्र बन गया।
- महाराजा रणजीत सिंह, जिन्होंने लगभग चार दशकों (1801-39) तक पंजाब पर शासन किया, ने वर्ष 1805 में अंतिम सरबत खालसा का आयोजन किया।
- अकाल तख्त जत्थेदार की भूमिका: अकाल तख्त के जत्थेदार (प्रमुख) को नैतिक और आध्यात्मिक जवाबदेही के लिये सिखों को बुलाने और विनम्रता एवं अनुशासन पैदा करने के लिये दंड (तन्खा) निर्धारित करने का अधिकार है, यह अधिकार केवल उन लोगों पर लागू होता है जो सिख के रूप में पहचान रखते हैं।
- जत्थेदार के लिये नैतिक रूप से ईमानदार होना, बपतिस्मा लेना और सिख ग्रंथों में शिक्षित होना ज़रूरी है। शुरुआत में सरबत खालसा द्वारा नियुक्त जत्थेदार की नियुक्ति ब्रिटिश प्रभाव के तहत दरबार साहिब समिति को सौंप दी गई। वर्ष 1925 के बाद, SGPC ने जत्थेदार की नियुक्ति की।
अन्य 4 सिख तख्त
- तख्त श्री केशगढ़ साहिब: हिमाचल प्रदेश के शिवालिक की तलहटी में स्थित तख्त श्री केशगढ़ साहिब खालसा और गुरु गोबिंद सिंह से जुड़ा एक ऐतिहासिक स्थल है।
- तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब: बिहार के पटना में स्थित, यह गुरु गोबिंद सिंह का जन्मस्थान है।
- तखत सचखंड श्री हजूर अबचल नगर साहिब: महाराष्ट्र के नांदेड़ में स्थित, यह वर्ष 1708 में गुरु गोबिंद सिंह के दाह संस्कार का स्थान है।
- तख्त श्री दमदमा साहिब: पंजाब के तलवंडी साबो में स्थित, यह वह स्थान है जहाँ गुरु गोबिंद सिंह ने सिख धर्मग्रंथ (गुरु ग्रंथ साहिब) को अंतिम रूप प्रदान किया था।
सिख धर्म के दस गुरु
गुरु नानक देव (1469-1539) |
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गुरु अंगद (1504-1552) |
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गुरु अमर दास (1479-1574) |
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गुरु राम दास (1534-1581) |
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गुरु अर्जुन देव (1563-1606) |
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गुरु हरगोबिंद (1594-1644) |
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गुरु हर राय (1630-1661) |
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गुरु हरकिशन (1656-1664) |
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गुरु तेग बहादुर (1621-1675) |
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गुरु गोबिंद सिंह (1666-1708) |
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अकाल तख्त, SGPC और शिरोमणि अकाली दल के बीच क्या संबंध है?
- सिख शासन में SGPC की भूमिका: वर्ष 1920 में गठित SGPC को सिख गुरुद्वारों का प्रबंधन और धार्मिक सिद्धांतों को बनाए रखने का कार्य सौंपा गया था। वर्ष 1925 के सिख गुरुद्वारा अधिनियम के तहत, इसे अकाल तख्त के जत्थेदार को नियुक्त करने का कानूनी अधिकार प्राप्त हुआ।
- SGPC पंजाब, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ में प्रमुख सिख तीर्थस्थलों के वित्त और प्रशासन को नियंत्रित करती है।
- शिरोमणि अकाली दल: गुरुद्वारा सुधार आंदोलन के दौरान सिखों को संगठित करने के लिये प्रारंभ में SGPC की राजनीतिक शाखा के रूप में गठित शिरोमणि अकाली दल ने SGPC के साथ मिलकर कार्य किया।
- अंतर्संबंधित: SGPC पर नियंत्रण से शिरोमणि अकाली दल को अकाल तख्त पर नियुक्तियों और निर्णयों को प्रभावित करने की अनुमति मिलती है।
- आलोचकों का तर्क है कि यह संबंध अकाल तख्त की नैतिक सत्ता की स्वतंत्रता को कमज़ोर करता है, जिससे यह राजनीतिक हस्तक्षेप के प्रति संवेदनशील हो जाता है।
गुरुद्वारा सुधार आंदोलन
- गुरुद्वारा सुधार आंदोलन या अकाली आंदोलन वर्ष 1920 में अमृतसर, पंजाब में आरंभ हुआ, जिसका नेतृत्व सिखों ने किया, जिनका उद्देश्य ब्रिटिश नियंत्रण और गुरुद्वारों को चलाने वाले भ्रष्ट महंतों (पुजारियों) का विरोध करना था।
- इस आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश समर्थित महंतों से गुरुद्वारों को वापस लेना था, जिसके परिणामस्वरूप नवंबर,1920 में SGPC का गठन हुआ।
- अकाली आंदोलन औपनिवेशिक भारत में धार्मिक सुधार के बड़े आंदोलन का हिस्सा था।
- इसके परिणामस्वरूप वर्ष 1925 का सिख गुरुद्वारा अधिनियम पारित हुआ, जिसने सिख समुदाय को अपने गुरुद्वारों पर कानूनी नियंत्रण प्रदान किया तथा महंतों का वंशानुगत नियंत्रण समाप्त कर दिया।
अकाल तख्त और SGPC के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?
- स्वायत्तता का क्षरण: अकाल तख्त के निर्णयों में राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोपों ने सिख समुदाय के भीतर इसकी नैतिक स्थिति को कमज़ोर कर दिया है।
- SGPC चुनावों में देरी से भाई-भतीजावाद और पारदर्शिता की कमी की धारणा को बढ़ावा मिला है।
- सिख नेतृत्व का विखंडन: SGPC के भीतर और सिख समुदाय के विभिन्न गुटों के बीच विवाद इन संस्थाओं की प्रभावशीलता एवं एकता को कमज़ोर करते हैं।
- विशेष रूप से प्रवासी सिखों की ओर से SGPC और अकाल तख्त के भीतर सुधार और लोकतंत्रीकरण की मांग ज़ोर पकड़ रही है।
- एक बदलते विश्व में प्रासंगिकता: अकाल तख्त को वैश्विक सिख समुदाय के भीतर अपने अधिकार को स्थापित करने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। इसमें बढ़ती नशीली दवाओं की लत और बढ़ती आर्थिक असमानताओं जैसे सामाजिक मुद्दों को संबोधित करना शामिल है, साथ ही न्याय, विनम्रता और एकता के अपने मूल सिद्धांतों को कायम रखना भी शामिल है।
आगे की राह
- जत्थेदारों की स्वतंत्र नियुक्ति: SGPC-नियंत्रित नियुक्तियों से व्यापक, समुदाय-संचालित प्रक्रिया में परिवर्तन जिसमें वैश्विक सिख प्रतिनिधित्व शामिल है।
- सामूहिक निर्णय लेने को सुनिश्चित करने और राजनीतिक संस्थाओं द्वारा एकतरफा कार्यवाही को न्यूनतम करने के लिये सरबत खालसा सभाओं की प्रथा को बहाल करना।
- SGPC का लोकतांत्रिक चुनाव: किसी भी राजनीतिक दल द्वारा सत्ता पर दीर्घकालिक एकाधिकार को रोकने के लिये समय पर और पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करना।
- शक्तियों का पृथक्करण: SGPC के प्रशासनिक कार्यों और अकाल तख्त की आध्यात्मिक और लौकिक अधिकारों के बीच स्पष्ट सीमाएँ स्थापित करना।
- सिख प्रवासियों के साथ सहभागिता: सिख शासन की समावेशिता और प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये वैश्विक सिख समुदाय के संसाधनों और दृष्टिकोणों का लाभ उठाना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: सिख शासन में अकाल तख्त के महत्त्व और समुदाय को आकार देने में इसकी भूमिका की जाँच कीजिये और आधुनिक समय में इसकी प्रासंगिकता सुनिश्चित करने के उपाय सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित भक्ति संतों पर विचार कीजिये: (2013)
इनमे से कौन उस समय उपदेश देता था/देते थे जब जब लोदी वंश का पतन हुआ तथा बाबर सत्तारुढ़ हुआ? (a) 1 और 3 उत्तर: (b) |