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एयर इंडिया : विनिवेश का मार्ग

  • 13 Jun 2018
  • 9 min read

संदर्भ

आश्चर्यजनक रूप से एयर इंडिया का रणनीतिक विनिवेश निवेशकों को लुभाने में असफल रहा है। यह सुनिश्चित करने के लिये कि कंपनी को एक आकर्षक निवेश अवसर के रूप में देखा जाय, पूरी बिक्री प्रक्रिया और शर्तों पर फिर से काम करने की आवश्यकता है। इसके लिये कंपनी को छोटी इकाइयों में पुनर्गठित किया जाना चाहिये। साथ ही इन इकाइयों का पुनर्गठन और निर्माण कर बिक्री के दौरान अधिकतम मूल्य सुनिश्चित करना होगा|

एयर इंडिया को सात इकाइयों में पुनर्गठित करने की आवश्यकता
कंपनी को सात इकाइयों में पुनर्गठित किया जाना चाहिये-

  1. विमानन- यात्री और कार्गो (एयर इंडिया एक्सप्रेस और एलायंस एयर शामिल हैं)
  2. लीजिंग - सभी स्वामित्व वाली वायुयान संपत्तियाँ
  3. हवाईअड्डा सेवाएँ-ग्राउंड हैंडलिंग (पहले से निर्मित)
  4. होटल (पहले से निर्मित)
  5. रख-रखाव, मरम्मत और ओवरहाल (एमआरओ, पहले से ही बनाया गया)
  6. लॉयल्टी कार्यक्रम-उड़ान वापसी 
  7. विरासत (legacy) - अतिरिक्त संपत्तियों, मानव संसाधनों और देनदारियों को शामिल करना, यह अन्य कंपनियों के लिये महत्त्वपूर्ण नहीं है।

अन्य महत्त्वपूर्ण सुझाव 

  • इन इकाइयों का पुनर्गठन और निर्माण, बिक्री के दौरान अधिकतम मूल्य सुनिश्चित करेगा और सरकार का वित्तीय नुकसान कम होगा।
  • इसके अलावा, यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि कंपनियों के बीच प्रदान की जाने वाली सेवाएँ प्रतिस्पर्द्धी और बाज़ार दरों के अनुरूप हों।
  • विमानन इकाई के पुनर्गठन में टिकट मूल्य निर्धारण और लोड कारकों को अनुकूलित करने के लिये यातायात और मार्गों पर विस्तृत अध्ययन को शामिल किया जाना चाहिये।
  • 11 विमान उप-प्रकारों के मिश्रित विमानों में तीन से कम नहीं होने चाहिये।
  • भारत की अग्रणी एयरलाइन, इंडिगो में केवल एक विमान प्रकार अनुदेशित है, जिससे लागत और जटिलता कम आती है।
  • पूरे विमान पोर्टफोलियो, एमआरओ सेवाओं, हवाईअड्डा सेवाओं और लॉयल्टी कार्यक्रम को पट्टे पर देने के लिये अन्य संस्थाओं के साथ प्रतिस्पर्द्धी सेवा अनुबंध पर हस्ताक्षर किये जाने चाहिये।
  • पुनर्गठन का मानव संसाधन हिस्सा राजनीतिक रूप से मुश्किल होगा लेकिन वित्तीय रूप से आवश्यक होगा।
  • सभी महत्त्वपूर्ण कर्मचारियों को "बाज़ार स्तर पर" विमानन इकाई में पुनर्स्थापित किया जाना चाहिये, यह किसी भी निवेशक के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • प्रासंगिक विमानन अनुभव के साथ एक गतिशील और कुशल प्रबंधन जो  सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की तरह नौकरशाही से प्रभावित न हो, आवश्यक होगा।
  • सभी अतिरिक्त संपत्तियाँ (मुंबई कार्यालय, दिल्ली भूमि संपत्ति  आदि) और अतिरिक्त कर्मचारियों को विरासत इकाई में स्थानांतरित किया जाना चाहिये।
  • लगभग ₹ 50,000 करोड़ की सभी देनदारियों को भी विरासत इकाई में स्थानांतरित किया जाना चाहिये, कंपनी को ऋण मुक्त बेचना महत्वपूर्ण है।
  • इससे यह सुनिश्चित होगा कि खरीदार को अपनी पूंजी संरचना आवश्यकताओं के अनुसार कंपनी को खरीदने की स्वतंत्रता है, इस प्रकार व्यापक बोली-प्रक्रिया में भागीदारों की अनुमति मिलती है।
  • पुनर्गठित विमानन इकाई, जिसमें 22,000 करोड़ रुपए राजस्व (एक रूढ़िवादी अनुमान) के साथ एबिटदर (Abitdar) (ब्याज, कर, मूल्यह्रास और किराए से अर्जित) 5,500 करोड़ रुपए होना चाहिये। 
  • विरासत ऋण बोझ को कम करने के साथ बिक्री में वित्तीय नुकसान को तुरंत रोक दिया जाएगा।
  • विमानन इकाई की बिक्री के बाद लीज़िंग इकाई, हवाईअड्डा सेवाओं की इकाई और होटल इकाई का मुद्रीकरण किया जाना चाहिये।
  • लीज़िंग इकाई का इक्विटी वैल्यू स्वामित्व वाले विमान के मूल्य में निहित होता है। वर्तमान में लाभप्रद एयरपोर्ट सेवा इकाई तीसरे पक्षों से अपने राजस्व का 50% कमाती है, जिससे इसे रणनीतिक खिलाड़ियों के लिये वांछित अधिग्रहण मिल जाता है।

एमआरओ इकाई और लॉयल्टी कार्यक्रम इकाई की भूमिका 

  • लॉयल्टी कार्यक्रम व्यापारियों द्वारा डिज़ाइन की गई मार्केटिंग रणनीतियों की संरचना करने के लिये ग्राहकों को प्रोत्साहित करते हैं ताकि वे प्रत्येक लॉयल्टी प्रोग्राम से जुड़े व्यवसायों की सेवाओं पर खरीदारी कर सकें|
  • एमआरओ (maintenance, repair and overhaul-MRO) इकाई और लॉयल्टी कार्यक्रम इकाई में महत्त्वपूर्ण अप्रयुक्त मूल्य होता है जिसे विमानन इकाई और अन्य तृतीय पक्ष ग्राहकों को प्रदान की जाने वाली सेवाओं के पुनर्गठन और विस्तार के माध्यम से वसूल किया जा सकता है।
  • नागपुर में बोइंग द्वारा निर्मित एक नई सुविधा के निर्माण के दावे के साथ भारत में एमआरओ सुविधाएँ सर्वश्रेष्ठ हैं।
  • भारतीय एमआरओ सेवा प्रदाताओं को बिक्री से पहले इक्विटी हिस्सेदारी के लिये साझेदारी करने में रुचि हो सकती है, जो वित्तीय सुधार में मदद कर सकता है|
  • वैकल्पिक रूप से  बोइंग और एयरबस क्षेत्रीय एमआरओ केंद्र बनाने में रुचि रख सकते हैं।
  • लॉयल्टी कार्यक्रम के ग्राहक और क्रेडिट कार्ड उपयोगकर्त्ता आधार में वृद्धि की जानी चाहिये और लॉयल्टी बिंदु ऋणमुक्ति (redemption) (उदाहरण के लिए ऑनलाइन शॉपिंग साइट्स) के अधिक मार्गों की अनुमति भी दी जानी चाहिये।
  • इससे विमानन इकाई के आकर्षक मार्ग नेटवर्क और टिकटों के लिये लॉयल्टी अंक का उपयोग कर आसानी से पूरा किया जा सकता है।
  • एमआरओ और लॉयल्टी कार्यक्रम इकाइयों को इक्विटी मूल्य अधिकतम करने तथा सरकार को लौटाने के लिये  अपने ग्राहक आधार बनाने के बाद, तीन से पाँच वर्षों में बेचा जा सकता है।
  • 50,000 करोड़ रुपए के मौजूदा विरासत ऋण को अन्य कंपनियों की बिक्री से ₹ 15,000 करोड़ (लगभग 70% कमी) घटाया जा सकता है।
  • सरकार के साथ शेष भूमि, कार्यालयों और दुनिया भर की अन्य संपत्तियों की बिक्री से ऋण को और कम किया जा सकता है|
  • इस इकाई में सभी मानव संसाधन संपत्तियों को अन्य सरकारी उद्यमों में व्यवहार्य माना जाना चाहिये।

निष्कर्ष 

  • उपरोक्त सुझावों से एयर इंडिया को संभावित बोलीदाताओं के लिये एक आकर्षक निवेश मिलेगा| इस प्रकार  अतिरिक्त कर्मचारियों की बाधाओं, उपरोक्त बाज़ार अनुबंध और अन्य विरासत लागतों को पुनर्निर्मित किया जा सकता है।
  • उत्तरी अमेरिकी लीगेसी कैरियर तथा एशियाई, यूरोपीय और मध्य-पूर्वी फ्लैग कैरियर के पुनर्गठन में समान दृष्टिकोण लागू किया गया है।
  • हालाँकि उपरोक्त सुझावों को निष्पादित करना आसान नहीं है लेकिन इसे आसान किया गया है और यहाँ भी इसे आसान किया जा सकता है।
  • नागपुर में बोइंग द्वारा निर्मित नई एमआरओ सुविधाएँ भारत में सर्वश्रेष्ठ हैं|
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