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अधिक बारिश और कृषि संवृद्धि दर में गिरावट का विरोधाभास

  • 22 Jan 2018
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

  • वर्ष 2017 में देश भर में मानसून से पहले और बाद में पिछले वर्ष की तुलना में अधिक बारिश हुई थी।
  • फिर भी, केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने वर्ष 2017-18 में कृषि विकास दर के  2.1% होने का अनुमान व्यक्त किया है। जबकि 2016-17 में कृषि संवृद्धि दर 4.9% रही थी।
  • कृषि मंत्रालय के आँकड़ों के मुताबिक भी खरीफ और वर्तमान रबी फसल की कृषि के अंतर्गत कमी आने का अनुमान है।

अधिक बारिश और कृषि क्षेत्र की कम संवृद्धि के बीच विसंगति का कारण

  • इसका मुख्य कारण वर्षा का वितरण है। पूरे राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, विदर्भ और यहाँ तक ​​कि सिचाई सुविधाओं से संपन्न पंजाब और हरियाणा में भी जुलाई के बाद बहुत कम वर्षा दर्ज की गई।
  • परस्पर सटे हुए इस कृषि क्षेत्र में दीर्घकालिक शुष्क अवधि ने रबी फसल की संभावनाओं को प्रभावित किया है। 
  • मृदा के निचले और उपरी संस्तरों में नमी की पर्याप्त कमी के कारण इस साल गेहूं के बुवाई क्षेत्रफल में 2016-17 की तुलना में 14.46 लाख हेक्टेयर (lh) तक की कमी हुई है।
  • इसमें से अधिकांश कमी मध्य प्रदेश (8.64 lh), उत्तर प्रदेश (2.12 lh), महाराष्ट्र (1.65 lh) और राजस्थान (1.49 lh) में देखने को मिली है।
  • इसके अतिरिक्त दूसरी प्रमुख रबी फसल, रेपसीड-सरसों के अंतर्गत क्षेत्र में यूपी और मध्य प्रदेश में वृद्धि और राजस्थान में 7.09 लाख हेक्टेयर की कमी के साथ कुल 3.52 लाख हेक्टेयर तक गिरावट देखने को मिली है।
  • 2016 में दूरस्थ दक्षिण भारत को छोड़कर पूरे भारत में वर्षा का एक समान वितरण देखा गया। पुराने मैसूर क्षेत्र से लेकर तटीय कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल तक फैले खंड को 2016 के दक्षिण-पश्चिम मानसून और उत्तर-पूर्व मानसून दोनों के दौरान वर्षा की कमी का सामना करना पड़ा।
  • लेकिन कृषि के दृष्टिकोण से यह क्षेत्र उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है जितने कि मध्य या पश्चिमोत्तर भारत के राज्य महत्त्वपूर्ण है।
  • इसके अलावा 2016-17 की गंभीर सूखे की क्षतिपूर्ति, दक्षिण में जुलाई से हो रही अच्छी बारिश से हो रही है। 
  • वर्षा के दृष्टिकोण से हालिया वर्षों में 2013 सबसे अच्छा वर्ष था, जिसके दौरान न केवल वर्षा का स्तर सामान्य से अधिक रहा बल्कि स्थानिक और कालिक रूप से भी इसका वितरण भी समान था।
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