किशोरों हेतु सहमति की आयु | 10 Nov 2022
प्रिलिम्स के लिये:यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012, भारतीय दंड संहिता। मेन्स के लिये:POCSO अधिनियम और संबंधित चिंताओं के तहत किशोरों हेतु सहमति की आयु। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO अधिनियम) के तहत दायर एक मामले को खारिज करते हुए कहा कि भारत के विधि आयोग को किशोरों हेतु सहमति की उम्र पर पुनर्विचार करना होगा।
- न्यायालय ने कहा, 18 साल से कम उम्र की लड़की द्वारा सहमति के पहलू पर विचार करना होगा अगर यह वास्तव में भारतीय दंड संहिता और/या पॉक्सो अधिनियम के तहत अपराध है।
यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012:
- यह 18 वर्ष से कम उम्र के किसी भी व्यक्ति को बच्चे के रूप में परिभाषित करता है और बच्चे के स्वस्थ शारीरिक, भावनात्मक, बौद्धिक एवं सामाजिक विकास को सुनिश्चित करने के लिये हर स्तर पर बच्चे के सर्वोत्तम हित तथा कल्याण को सर्वोपरि मानता है।
- यह यौन शोषण के विभिन्न रूपों को परिभाषित करता है, जिसमें भेदक और गैर-भेदक हमले, साथ ही यौन उत्पीड़न एवं अश्लील साहित्य शामिल हैं।
- ऐसा लगता है कि कुछ परिस्थितियों में यौन हमलों की घटनाएँ बढ़ गई हैं, जैसे कि जब दुर्व्यवहार का सामना करने वाला बच्चा मानसिक रूप से बीमार होता है अथवा जब दुर्व्यवहार परिवार के किसी सदस्य, पुलिस अधिकारी, शिक्षक या डॉक्टर जैसे विश्वसनीय लोगों द्वारा किया जाता है।
- यह जाँच प्रक्रिया के दौरान पुलिस को बाल संरक्षक की भूमिका भी प्रदान करता है।
- अधिनियम में कहा गया है कि बाल यौन शोषण के मामले का निपटारा अपराध की रिपोर्ट की तारीख से एक वर्ष के भीतर किया जाना चाहिये।
- अगस्त 2019 में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों में मृत्युदंड सहित कठोर सज़ा देने के लिये इसमें संशोधन किया गया था।
संबंधित चिंताएँ:
- कानून का दुरुपयोग:
- पिछले कुछ वर्षों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब न्यायालयों ने बलात्कार और अपहरण की आपराधिक कार्यवाही को यह मानते हुए रद्द कर दिया कि कानून का दुरुपयोग एक या दूसरे पक्ष के लिये किया जा रहा है।
- कई मामलों में युगल, माता-पिता के विरोध के डर से घर से भाग जाता है, जिसके परिणामस्वरूप ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है जब परिवार द्वारा पुलिस में मामला दर्ज़ किया जाता है, जिसमें लड़के पर POCSO अधिनियम के तहत बलात्कार और IPC या बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत शादी करने के प्रयास के साथ अपहरण का मामला दर्ज़ किया जाता है।
- यहाँ तक कि अगर लड़की 16 साल की है, तो उसे POCSO अधिनियम के तहत "नाबालिग" माना जाता है, इसलिये उसकी सहमति कोई मायने नहीं रखती है अर्थात् सहमति से बने शारीरिक संबंध को भी बलात्कार के रूप में माना जाता है, इस प्रकार यह कड़ी सज़ा का आधार बन जाताा है।
- आपराधिक न्याय प्रणाली:
- गैर-शोषणकारी और सहमति वाले संबंधों में कई युवा जोड़ों ने स्वयं को आपराधिक न्याय प्रणाली में उलझा हुआ पाया है।
- ब्लैंकेट क्रिमनलाइज़ेशन:
- सहमति वाली यौन गतिविधियों के कारण किसी भी अधिक उम्र के किशोर की गरिमा, हित, स्वतंत्रता, गोपनीयता, स्वायत्तता विकसित करने की तथा विकासात्मक क्षमता कमज़ोर होती हैं।
- अदालतों पर दबाव:
- इन मामलों की वजह से न्यायालयों पर अत्यधिक दबाव के कारण न्यायिक प्रक्रिया भी प्रभावित होती है।
- न्यायालयों पर दबाव के कारण बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार के वास्तविक मामलों की जाँच एवं अभियोजन पर ध्यान केंद्रित करने में समस्याएँ आती हैं।
आगे की राह
- किशोरों को संबद्ध अधिनियम और IPC के कड़े प्रावधानों से अवगत कराना एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा।
- सहमति की उम्र को संशोधित करने और तथ्यात्मक रूप से सहमति से और गैर-शोषणकारी कृत्यों में संलग्न अधिक उम्र के किशोरों के अपराधीकरण को रोकने के लिये कानून में अनिवार्य रूप से सुधार किये जाने की आवश्यकता है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से बच्चे का अधिकार है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही उत्तर है। |