COVID-19 परीक्षण हेतु स्वदेशी RNA पृथक्करण किट का विकास | 21 May 2020
प्रीलिम्स के लिये:अगाप्पे चित्रा मैग्ना, COVID-19. मेंस के लिये:COVID-19 से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research- ICMR) और केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organization- CDSCO) की अनुमति मिलने के बाद COVID-19 परीक्षण के दौरान लिये गए नमूनों से RNA पृथक्करण हेतु बड़े पैमाने पर ‘अगाप्पे चित्रा मैग्ना’ (Aggape Chitra Magna) नामक स्वदेशी किट के निर्माण की तैयारी की जा रही है।
प्रमुख बिंदु:
- इस किट का विकास तिरुवनंतपुरम स्थित ‘श्री चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेज़ एंड टेक्नोलॉजी’ (Sri Chitra Tirunal Institute for Medical Sciences and Technology- SCTIMST) द्वारा किया गया है।
- RNA पृथक्करण किट के उत्पादन को बड़े पैमाने पर बढ़ाने हेतु अप्रैल 2020 में इसकी तकनीकी को ‘अगाप्पे डायग्नोस्टिक्स’ (Agappe Diagnostics) को हस्तांतरित कर दिया गया था।
- इस किट को COVID-19 RNA पृथक्करण हेतु ‘राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान’ (National Institute of Virology) द्वारा स्वतंत्र रूप से मंज़ूरी दी गई है।
कार्यप्रणाली:
- COVID-19 बीमारी SARS-COV-2 नामक विषाणु के संक्रमण से होती है, किसी भी व्यक्ति के SARS-COV-2 से संक्रमित होने की पुष्टि हेतु व्यक्ति के गले और नाक से लिये गए नमूनों में इस विषाणु के RNA की उपस्थिति का पता लगाना अति महत्त्वपूर्ण है।
- किसी व्यक्ति से लिये गए नमूनों को एक निर्धारित प्रक्रिया के तहत प्रयोगशाला तक ले जाया जाता है।
- इस किट में किसी नमूने से ‘राइबोन्यूक्लिक एसिड’ (Ribonucleic Acid- RNA) को अलग करने के लिये चुंबकीय नैनोकणों का उपयोग किया जाता है।
- ये नैनोंकण RNA से जुड़ जाते हैं और इसे किसी चुंबकीय क्षेत्र के संपर्क में लाने पर अत्यधिक शुद्ध और केंद्रित RNA प्राप्त होता है।
- ध्यातव्य है कि SARS-COV-2 संक्रमण का सफल परीक्षण के लिये RNA की पर्याप्त मात्रा का होना आवश्यक है, अतः इस विधि के माध्यम से SARS-COV-2 संक्रमण की सफलता पूर्वक पहचान करने की संभावना बढ़ जाती है।
लाभ:
- लागत:
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SCTIMST द्वारा विकसित एक किट की लागत मात्र 150 रुपए है जो वर्तमान में उपस्थित अन्य विकल्पों का लगभग आधा है।
- एक अनुमान के अनुसार, भारत को अगले 6 महीनों में प्रतिमाह लगभग 8 लाख RNA पृथक्करण किट की आवश्यकता होगी, अतः इस किट के द्वारा कम लागत में अधिक-से-अधिक परीक्षण किये जा सकेंगे।
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- तकनीकी दक्षता:
- इस किट में प्रयोग किये जाने वाले चुंबकीय नैनोकण की तकनीक के माध्यम से बहुत ही आसानी से RNA को एक बिंदु पर एकत्र किया जा सकता है।
- अतः यदि व्यक्ति से लिये गए नमूने को रखने और ले जाने में RNA का विघटन हो जाता है, तो उस स्थिति में भी इस तकनीकी के माध्यम से बहुत ही आसानी से RNA को एकत्र कर सफलतापूर्वक परीक्षण किया जा सकता है।
- अन्य परीक्षणों में उपयोग:
- इस किट का प्रयोग ‘लूप-मीडिएटेड आइसोथर्मल एम्प्लिफिकेशन’ (Loop-mediated isothermal amplification- LAMP) के अलावा रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन (Reverse Transcription Polymerase Chain Reaction-RT-PCR) टेस्ट में भी किया जा सकता है।
- वर्तमान में भारत में अधिकांश RNA पृथक्करण किट विदेशों से आयात की जाती है और ऐसे में देश में बड़े पैमाने पर RT-PCR टेस्ट संचालित करने में ‘RNA पृथक्करण किट’ की अनुपलब्धता एक बड़ी बाधा बनी रहती है।
- अतः देश में बड़े पैमाने पर स्वदेशी ‘RNA पृथक्करण किट’ के निर्माण से इस समस्या को दूर करने में सहायता प्राप्त होगी।
आगे की राह:
- SCTIMST निदेशक के अनुसार, अगले कुछ ही दिनों में एक अन्य उत्पादक को जोड़कर इस किट के उत्पादन को बढ़ाने का प्रयास किया जाएगा, जिससे जुलाई 2020 के अंत तक स्वदेशी किट से ही प्रतिदिन एक लाख टेस्ट किये जा सके।
- आगे चलकर इस स्वदेशी किट के माध्यम से परीक्षण क्षमता को 8 लाख प्रतिदिन तक बढ़ाए जाने का लक्ष्य है, जिससे ‘RNA पृथक्करण किट’ के लिये आयात पर निर्भरता को समाप्त किया जा सके।
- विशेषज्ञों के अनुसार, औद्योगिकीकरण, शहरों की बढ़ती जनसंख्या और प्रकृति के अनियंत्रित दोहन के कारण भविष्य में अनेक प्रकार के संक्रामक रोगों में वृद्धि हो सकती है, ऐसे में COVID-19 परीक्षण हेतु स्वदेशी ‘RNA पृथक्करण किट’ का विकास भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र के लिये एक बड़ी सफलता है।
- देश में स्वास्थ्य के क्षेत्र में स्वदेशी तकनीकी पर शोध और विकास को बढ़ावा देकर भविष्य में अन्य संक्रामक रोगों से निपटने में सहायता प्राप्त हो सकती है, साथ ही भविष्य में इसके माध्यम से स्वास्थ्य क्षेत्र में उपलब्ध व्यावसायिक अवसरों का भी लाभ उठाया जा सकेगा।