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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

लिंग संबंधी अधिकारों के विरुद्ध प्रदर्शन क्यों?

  • 01 Dec 2017
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?
संसद के शीतकालीन सत्र में ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकार संरक्षण) विधेयक, (Transgender Persons (Protection of Rights) Bill) 2016 को फिर से पेश करने के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (Ministry of Social Justice and Empowerment) के फैसले पर ट्रांसजेंडर समुदाय और उनके सहयोगियों द्वारा असंतोष व्यक्त किया गया है। परंतु सवाल यह है कि जब इस विधेयक को इसके मूल रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है तो फिर इसके संदर्भ में विवाद या प्रदर्शन क्यों हो रहा है? 

  • यह एक प्रगतिशील विधेयक है, क्योंकि इसके अंतर्गत एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को 'पुरुष', 'महिला' या 'ट्रांसजेंडर' के रूप में पहचानने का अधिकार प्रदान किया गया है। 

विधेयक के संबंध में समिति की रिपोर्ट

  • हाल ही में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के संबंध में गठित स्थायी समिति द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।
  • इस रिपोर्ट में 2016 के विधेयक के संबंध में अपनी आलोचनाएँ प्रस्तुत की गईं।  इसके अंतर्गत विधेयक की खामियों को रेखांकित किया गया है। 
  • साथ ही ‘एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति' की परिभाषा को भी पुनर्परिभाषित किया गया है, ताकि इसे और अधिक  समावेशी और सटीक बनाया जा सके। 
  • इसके अतिरिक्त इस समुदाय के संदर्भ में भेदभाव की परिभाषा और भेदभाव के मामलों को हल करने के लिये एक शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना की भी सिफारिश की गई है। 
  • इसके साथ-साथ इसमें ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को आरक्षण देने की बात भी शामिल की गई है।
  • उक्त समिति की सिफारिशों में उभयलिंगियों को कानूनी मान्यता प्रदान करने तथा धारा 377 के समक्ष उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के अनुरूप बनाने की बात कही गई थी। 
  • संसदीय समिति द्वारा उभयलिंगियों के लिये आरक्षण, भेदभाव के खिलाफ मज़बूत प्रावधान, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ दुर्व्यवहार करने वाले सरकारी अधिकारियों हेतु दंड का प्रावधान, उन्हें भीख माँगने से रोकने के लिये कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना तथा उनके लिये अलग से सार्वजनिक शौचालयों की व्यवस्था करना। 
  • इसके अतिरिक्त समिति द्वारा अधिकारों और कल्याण से परे यौन पहचान के मुद्दे को भी संबोधित किया गया। साथ ही इसके द्वारा इंटरसेक्स भ्रूण (intersex fetuses) होने की स्थिति में गर्भपात के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाही करने तथा इंटरसेक्स शिशुओं (intersex infants) के संबंध में जबरन शल्य कार्य के संदर्भ में भी प्रावधान किये जाने की बात कही गई।
  • इसके अतिरिक्त सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस समिति द्वारा विधेयक में निहित अन्य कई शर्तों को फिर से परिभाषित किया गया। 
  • हिजड़ा या अरवानी समुदायों द्वारा ट्रांसजेंडर बच्चों के गोद लेने जैसी वैकल्पिक पारिवारिक संरचनाओं की पहचान के लिये इस विधेयक में परिवार को "रक्त, विवाह या गोद लिये गए ट्रांसजेंडर व्यक्ति से संबंधित लोगों के समूह” के रूप में लेने को परिभाषित किया गया है।

ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2016 

  • ट्रांसजेंडर व्यक्ति को परिभाषित करना। 
  • ट्रांसजेंडर व्यक्ति के विरुद्ध विभेद का प्रतिषेध करना। 
  • ऐसे व्यक्ति को उस रूप में मान्यता देने के लिये उसे अधिकार प्रदत्त करने और स्वत: अनुभव की जाने वाली लिंग पहचान का अधिकार प्रदत्त करना। 
  • पहचान पात्र जारी करना। 
  • यह उपबंध करना कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति को किसी भी स्थापन में नियोजन, भर्ती, प्रोन्नति और अन्य संबंधित मुद्दों के विषय में विभेद का सामना न करना पड़े। 
  • प्रत्येक स्थापन में शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करना। 
  • विधेयक के उपबंधों का उल्लंघन करने के संबंध में दंड का प्रावधान सुनिश्चित करना। 

अधिकार विहीन दृष्टिकोण

  • ध्यातव्य है कि नालसा मामले में प्रयोग की गई अधिकारों की भाषा (rights language) के अनुरूप 2016 के विधेयक में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के मौलिक  अधिकारों को संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 14, 19 एवं 21) के साथ संबद्ध करते हुए व्याख्यायित किया गया है|  
  • मानसिक स्वास्थ्य विधेयक (Mental Healthcare Bill) 2016 तथा विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम (Rights of Persons with Disabilities Act) 2016 में भी अधिकारों की इसी भाषा (rights language) का प्रयोग किया गया है|
  • एक अन्य समस्या यह है कि 2016 के विधेयक के अंतर्गत इस कानून के संचालन एवं क्रियान्वयन के विषय में कोई विशेष जानकारी प्रदत्त नहीं की गई है|  
  • ध्यातव्य है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नालसा मामले में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये नागरिक अधिकारों को सुलभ बनाने की आवश्यकता पर विशेष बल दिया गया है| 
  • हालाँकि, वर्तमान विधेयक इस दृष्टिकोण पर खरा नहीं उतरता है|  अंततः यहाँ यह स्पष्ट करना अत्यावश्यक है कि उपरोक्त सभी विधेयकों में से किसी भी विधेयक में धारा 377 के प्रावधानों को शामिल नहीं किया गया है| 
  • ध्यातव्य है कि धारा 377 के अंतर्गत ट्रांसजेंडर व्यक्तियों, विशेषकर ट्रांसजेंडर महिलाओं के शोषण संबंधी प्रावधानों को शामिल किया गया है|
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