भारतीय अर्थव्यवस्था
अवसंरचना वित्तपोषण के लिये विकास वित्तीय संस्थान
- 08 Sep 2020
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प्रिलिम्स के लियेविकास वित्तीय संस्थान मेन्स के लियेअवसंरचना वित्तपोषण की आवश्यकता और विकास वित्तीय संस्थान का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार देश के अवसंरचना क्षेत्रों की दीर्घकालिक वित्तपोषण संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने हेतु विकास वित्तीय संस्थान (Development Financial Institute-DFI) शुरू करने की योजना बना रही है।
प्रमुख बिंदु
- गौरतलब है कि इस प्रस्तावित विकास वित्तीय संस्थान (DFI) द्वारा 'राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन' (National Infrastructure Pipeline- NIP) के तहत पहचानी गई सामाजिक और आर्थिक दोनों क्षेत्रों की बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का वित्तपोषण किया जाएगा।
- बीते दिनों आर्थिक मामलों के तत्कालीन सचिव अतनु चक्रवर्ती की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय कार्य दल ने वित्त वर्ष 2019-25 के लिये NIP पर अपनी अंतिम रिपोर्ट पेश की थी।
- इस उच्च स्तरीय कार्यदल ने अपनी रिपोर्ट में आगामी पाँच वित्तीय वर्षों अर्थात वर्ष 2020 से वर्ष 2025 की अवधि के दौरान सड़कों, रेलवे, ऊर्जा और शहरी क्षेत्रों की ‘अवसंरचना’ (Infrastructure) पर 111 लाख करोड़ रुपए के निवेश का अनुमान लगाया था।
विकास वित्तीय संस्थान (DFI) का स्वरूप
- वित्त मंत्रालय द्वारा अभी तक इस नए विकास वित्तीय संस्थान (DFI) का स्वरूप तय नहीं किया गया है, इस संबंध में दो प्रकार के विकास वित्तीय संस्थान (DFI) गठित किये जा सकते हैं:
- या तो यह पूर्णतः सरकार के स्वामित्त्व में होगा,
- या फिर इसे निजी क्षेत्र का स्वरूप दिया जाएगा, जिसमें सरकार की हिस्सेदारी 49 प्रतिशत तक सीमित होगी।
सरकार का पूर्ण स्वामित्त्व
- यदि विकास वित्तीय संस्थान (DFI) पूरी तरह से सरकार द्वारा वित्तपोषित किया जाता है, तो इससे फंड जुटाना काफी आसान हो जाएगा।
- सरकार द्वारा विकास वित्तीय संस्थान (DFI) की प्रतिभूतियों को वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) के पात्र बनाया जा सकता है। जिससे बैंकों को विकास वित्तीय संस्थान (DFI) द्वारा जारी प्रतिभूतियाँ खरीदने तथा अपने SLR दायित्त्वों को पूरा करने के लिये प्रोत्साहन मिलेगा।
- उल्लेखनीय है कि भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के नियमों के अनुसार, प्रत्येक बैंक को अपनी शुद्ध माँग और समय देयताओं (Net Demand and Time Liabilities-NDTL) का 18 प्रतिशत हिस्सा सुरक्षित और तरल संपत्ति जैसे कि सरकारी प्रतिभूतियाँ, नकदी और सोना आदि में बनाए रखने की आवश्यकता है।
- हालाँकि यहाँ समस्या यह है कि विकास वित्तीय संस्थान (DFI) का वरिष्ठ प्रबंधन सदैव नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (Comptroller & Auditor General of India-CAG) और केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission-CVC) की जाँच के अधीन रहेगा, जिससे उसके लिये स्वतंत्र रूप से कार्य करना काफी मुश्किल होगा।
निजी क्षेत्र का स्वरूप
- नए विकास वित्तीय संस्थान (DFI) के गठन के लिये आवश्यक होगा कि सरकार उसके नियंत्रण और संचालन से आवश्यक दूरी बनाए रखे और उसे नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के उद्देश्य से परियोजनाओं को लागू करने और उन्हें निष्पादित करने की छूट देनी होगी।
- इस स्वरूप में विकास वित्तीय संस्थान CAG और CVC जैसी संस्थानों के भय के बिना कार्य कर सकेगा, हालाँकि यहाँ समस्या यह है कि इस संस्थान को आवश्यक फंड जुटाने में समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
नए विकास वित्तीय संस्थान की आवश्यकता
- विशेषज्ञों के अनुसार, भारत के अवसंरचना क्षेत्र में वित्तपोषण की भारी कमी मौजूद है। वहीं बैंक भी इस प्रकार की परियोजनाओं को दीर्घकालिक वित्त प्रदान करने में असमर्थ हैं।
- ध्यातव्य है कि भारतीय बैंक पहले से ही गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) की समस्या का सामान कर रहे हैं।
- बीते दिनों भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था कि अब भारतीय उद्योगों को अपनी अवसंरचना संबंधी परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये नए तरीके खोजने होंगे, क्योंकि बैड लोन से जूझ रहे बैंक उन्हें आवश्यक वित्त प्रदान करने में असमर्थ हैं।
- यदि भारत को 8-10 प्रतिशत की दर से वृद्धि करनी है तो विभिन्न परियोजनाओं के लिये जाने वाले ऋण में 12-14 प्रतिशत वृद्धि होनी आवश्यक है।
- चूँकि अवसंरचना परियोजनाओं को लंबी अवधि के लिये वित्तपोषण की आवश्यकता होती है और निवेश की मात्रा भी काफी अधिक मात्रा में होती है इसलिये नए विकास वित्तीय संस्थान (DFI) का गठन एक महत्त्वपूर्ण विचार हो सकता है।
विकास वित्तीय संस्थान (DFI)
- विकास वित्तीय संस्थान (DFI) मुख्य रूप से विकास और अवसंरचना संबंधी परियोजनाओं को वित्त प्रदान करने हेतु स्थापित एक विशिष्ट संस्थान होती है, जिसका गठन सामान्यतः विकासशील देशों में दीर्घकालिक ऋण प्रदान करने हेतु किया जाता है।
- विकास वित्तीय संस्थान (DFI) प्रायः सामाजिक लाभ के साथ लंबी अवधि के निवेश को बढ़ावा देने के लिये ब्याज की कम और स्थिर दरों पर ऋण प्रदान करते हैं।
- यह वाणिज्यिक परिचालन मानदंडों के बीच एक संतुलन बनाता है, जिसमें एक ओर वाणिज्यिक बैंक की गतिविधियाँ और दूसरी ओर विकास संबंधी ज़िम्मेदारियाँ होती हैं।
- यह वाणिज्यिक बैंकों की तरह केवल ऋण ही नहीं देता, बल्कि यह अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के विकास में सहायक के रूप में भी कार्य करते हैं।