अफगानिस्तान की आर्थिक सहायता में कटौती | 27 Mar 2020

प्रीलिम्स के लिये 

अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौता

मेन्स के लिये

शांति समझौते से संबंधी प्रमुख बिंदु और भारत तथा अमेरिका पर इसका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिका ने अफगानिस्तान में राष्ट्रपति और अन्य नेताओं के नई सरकार के गठन में विफल होने के पश्चात् अफगानिस्तान को मिलने वाली आर्थिक सहायता में 1 बिलियन डॉलर की कटौती की घोषणा की है।

प्रमुख बिंदु

  • अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ (Mike Pompeo) ने इस संदर्भ में घोषणा करते हुए कहा कि अफगानिस्तान के नेताओं की इस विफलता के कारण अमेरिका के राष्ट्रीय हितों पर प्रत्यक्ष रूप से खतरा पैदा हो गया है।
  • उल्लेखनीय है कि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी और उनके मुख्य राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी अब्दुल्ला अब्दुल्ला दोनों ने ही बीते वर्ष स्वयं को अफगानिस्तान का राष्ट्रपति घोषित कर दिया था।
  • अमेरिका के अनुसार, दोनों ही नेता तालिबान के साथ जारी गृहयुद्ध सहित देश के समक्ष मौजूद तमाम चुनौतियों का सामना करने के लिये एक समावेशी सरकार के गठन में विफल रहे हैं।
  • उल्लेखनीय है कि अमेरिका 9/11 हमले और तालेबान को उखाड़ फेंकने के पश्चात् से अफगानिस्तान की सरकार का प्रमुख समर्थक रहा है।
  • अफगानी नेताओं से वार्ता के पश्चात् विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने तालिबान के वरिष्ठ अधिकारी  के साथ भी बैठक की। माइक पोम्पिओ के अनुसार, अशरफ गनी और अब्दुल्ला अब्दुल्ला बीते महीने हस्ताक्षरित अमेरिकी-तालिबान शांति समझौते का समर्थन करने हेतु किये गए समझौतों के अनुरूप कार्य नहीं कर रहे थे।

अमेरिकी-तालिबान शांति समझौता

  • कतर के दोहा में अमेरिका के शांति प्रतिनिधि जलमय खालिज़ाद और तालिबान के प्रतिनिधि मुल्ला अब्दुल गनी बारादर के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
  • इस समझौते के अनुसार, अमेरिका आगामी 14 महीने में अफगानिस्तान से अपने सभी सैन्य बलों को वापस बुलाएगा। उल्लेखनीय है कि इस समझौते के दौरान भारत सहित दुनिया भर के 30 देशों के प्रतिनिधि मौजूद रहे।
  • इस समझौते के तहत अमेरिका, अफगानिस्तान में मौजूद अपने सैनिकों की संख्या में धीरे-धीरे कमी करेगा। इसके तहत अगले 6 महीने में लगभग 8,600 सैनिकों को वापस अमेरिका भेजा जाएगा।
  • अमेरिका अपनी ओर से अफगानिस्तान के सैन्य बलों को सैन्य साजो-सामान देने के साथ प्रशिक्षित भी करेगा, ताकि वह भविष्य में आंतरिक और बाहरी हमलों से खुद के बचाव में पूरी तरह से सक्षम हो सकें।
  • तालिबान ने इस समझौते के तहत बदले में अमेरिका को भरोसा दिलाया है कि वह अलकायदा और दूसरे विदेशी आतंकवादी समूहों से अपने संबंध समाप्त कर देगा।
  • तालिबान अफगानिस्तान की धरती को आतंकवादी गतिविधियों के लिये इस्तेमाल नहीं होने देने में अमेरिका की मदद करेगा।

पृष्ठभूमि

  • तालिबान का उदय 90 के दशक में उत्तरी पाकिस्तान में अफगानिस्तान से सोवियत संघ सेना की वापसी के पश्चात् हुआ। उत्तरी पाकिस्तान के साथ-साथ तालिबान ने पश्तूनों के नेतृत्व में अफगानिस्तान में भी अपनी मज़बूत पृष्ठभूमि बनाई।
  • विदित है कि तालिबान की स्थापना और प्रसार में सबसे अधिक योगदान धार्मिक संस्थानों एवं मदरसों का था जिन्हें सऊदी अरब द्वारा वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जाता था। प्रारंभ में तालिबान को भ्रष्टाचार और अव्यवस्था पर अंकुश लगाने तथा विवादित क्षेत्रों में अपना नियंत्रण स्थापित कर शांति स्थापित करने जैसी गतिविधियों के कारण सफलता मिली।
  • शुरुआत में दक्षिण-पश्चिम अफगानिस्तान में तालिबान ने अपना प्रभाव बढ़ाया तथा इसके पश्चात् ईरान सीमा से लगे हेरात प्रांत पर अधिकार कर लिया।
  • धीरे-धीरे तालिबान पर मानवाधिकार का उल्लंघन और सांस्कृतिक दुर्व्यवहार के आरोप लगने लगे। तालिबान द्वारा विश्व प्रसिद्ध बामियान बुद्ध प्रतिमाओं को नष्ट करने की विशेष रूप से आलोचना की गई।
  • वर्ष 2001 में न्यूयॉर्क में आतंकी हमले के बाद तालिबान दुनिया की नज़रों में आया। इसी दौरान 7 अक्तूबर 2001 को अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला कर दिया। अमेरिकी सेना ने तालिबान को सत्ता से बेदखल कर दिया।
  • हालाँकि, इस हमले के बावजूद तालिबान नेता मुल्ला उमर और अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन को पकड़ा नहीं जा सका। मई 2011 में पाकिस्तान के एबटाबाद में 9/11 हमलों के मास्टरमाइंड ओसामा-बिन-लादेन को अमेरिकी सेनाओं द्वारा मार गिराया गया।

भारत की भूमिका 

  • भू-राजनैतिक रूप से अहम अफगानिस्तान में तालिबान के प्रसार से वहाँ की नवनिर्वाचित सरकार को खतरा होगा और भारत की कई विकास परियोजनाएँ प्रभावित होंगी।
  • इसके अतिरिक्त पश्चिम एशिया में अपनी पैठ बनाने में लगी भारत सरकार को बड़ा नुकसान होगा।
  • इसके साथ ही भारत पहले से ही अफगानिस्तान में अरबों डॉलर की लागत से कई बड़ी परियोजनाएँ पूरी कर चुका है और इनमें से कुछ पर अभी भी काम चल रहा है।

आगे की राह

अनवरत बदलते वैश्विक परिदृश्य में क्षेत्र विशिष्ट में शांति स्थापित करना काफी आवश्यक है। इस कार्य हेतु सभी नेताओं को अपने राजनीतिक हित एक ओर रखकर एक मंच पर आना होगा। भारत इस संदर्भ में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है, भारत के लिये यह अनिवार्य हो जाता है कि अफगानिस्तान जैसे देशों के साथ अपने संबंधों को मज़बूत किया जाए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस