ओज़ोन क्षरण एवं मानसून पर ब्लैक कार्बन का प्रभाव | 16 Aug 2017
चर्चा में क्यों?
वायुयानों के धुएँ से भारी मात्रा में काले कार्बन (black carbon) का उत्सर्जन होता है जो न केवल श्वसन विकारों को बढ़ावा देने वाले प्रमुख प्रदूषक के रूप में जाना जाता है, बल्कि यह मानसून के चक्र में परिवर्तन करने के साथ-साथ ग्लेशियरों के पिघलने की दर में भी वृद्धि कर देता है यही कारण है कि इस समस्या के निवारण के संबंध में काफी समय से गंभीर शोध कार्य हो रहा है। इसी क्रम में हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन के अंतर्गत यह पाया गया कि वायुयानों से उत्सर्जित होने वाले धुएँ में काफी अधिक मात्रा में ब्लैक कार्बन पाया जाता है, जिससे ओजोन परत को काफी क्षति पहुँचती है।
अध्ययन में निहित प्रमुख बिंदु
- हालाँकि, हवा में उपस्थित ब्लैक कार्बन के कण कुछ महीनों के पश्चात् बारिश एवं हवा के प्रभाव से स्वतः ही नष्ट हो जाते हैं। साथ ही यह वातावरण में मात्र 4 किमी की ऊँचाई तक ही उपस्थित भी होते हैं।
- तथापि वैज्ञानिकों के एक समूह द्वारा स्ट्रैटोस्फीयर (stratosphere) में 18 किमी की ऊँचाई तक इन कणों के उपस्थित होने के साक्ष्य मौजूद हैं। उनके अनुसार, हर एक घन सेंटीमीटर में तकरीबन 10,000 ब्लैक कार्बन कण पाए जाते हैं।
- इन कणों के आकार और स्थान को मद्देनज़र रखते हुए, वैज्ञानिकों द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया है कि यह स्थिति केवल विमानन ईंधन (aviation fuel) से उत्सर्जित होने वाले धुएँ से ही प्राप्त की जा सकती है।
- इसका प्रभाव यह होता है कि ये ब्लैक कार्बन कण लंबे समय तक वातावरण में उपस्थित रहते हैं तथा ओजोन परत को नुकसान पहुँचाने वाली अन्य रासायनिक प्रतिक्रियाओं के लिये एक बेहतर स्थिति प्रदान करते हैं।
अध्ययन का आधार
- जैसा कि हम सभी जानते हैं कि स्ट्रैटोस्फियर (stratosphere) वायुमंडल का एक स्थिर क्षेत्र है तथा इसमें उपस्थित ब्लैक कार्बन कण गर्मी को अवशोषित करते हैं। वे आसपास के वायु को गर्म करते हैं तथा वज़न में हल्के होते जाते हैं और'सेल्फ लिफ्ट' के माध्यम से स्वयं को अधिक से अधिक ऊँचाई तक पहुँचाते हैं। इस प्रकार वे लंबे समय तक हवा में बने रहते हैं।
- स्पष्ट है कि जितनी अधिक मात्रा में हवाई यात्राएँ की जाएगी, उतनी ही अधिक मात्रा में वातावरण में ब्लैक कार्बन कणों की मात्रा बढ़ती जाएगी।
- इसका एक कारण यह है कि ब्लैक कार्बन कण सौर एवं स्थलीय विकिरण को वृहद रूप में अवशोषित करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप वातावरण गर्म हो जाता है। स्पष्ट रूप से यह गर्म वातावरण मानसून प्रणाली को प्रभावित करने में पूर्णतया समक्ष होता है। यदि ये बर्फ पर जमा हो जाएँ तो यह बर्फ के पिघलने की दर को तेज़ कर सकते है जिससे ग्लेशियरों के पिघलने की दर में गंभीर रूप से तेज़ी आ सकती है।