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जैव विविधता और पर्यावरण

विदेशज़ जानवरों के आयात पर एडवाइज़री

  • 06 Jun 2020
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिये:

आक्रामक प्रजातियाँ, स्थानिक प्रजातियाँ, विदेशज़ प्रजातियाँ

मेन्स के लिये:

विदेशज़ जानवरों के आयात का नियमन 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय’ (Union Ministry of Environment, Forest and Climate Change-  MoEF&CC) ने विदेशज़ जानवरों के आयात को विनियमित करने के संबंध में एक एडवाइज़री जारी की है।

प्रमुख बिंदु:

  • वर्तमान में COVID-19 महामारी ने ‘वन्यजीवों के माध्यम से ज़ूनोटिक रोगों के प्रसार’ को पुन: चर्चा का मुद्दा बना दिया है। अत: वन्य-जीवों के व्यापार को विनियमित करने के उद्देश्य से सरकार यह एडवाइज़री लेकर आई है।
  • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि भारत में अनेक विदेशज़ प्रजातियों का आयात वाणिज्यिक प्रयोजन के लिये किया जाता है, जिनके साथ अनेक जोखिम जुड़े होते हैं। 

विदेशज़ प्रजातियों (Exotic Species) की सूची: 

  • जानवरों की वे प्रजातियाँ जो भारत के विभिन्न हिस्सों में पाई जाती है तथा जिनको ‘वन्यजीवों तथा वनस्पतियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन’ ( Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora- CITES) के तहत लुप्तप्राय प्रजातियों के रूप में शामिल किया गया है लेकिन ‘वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972‘ (Wild Life (Protection) Act, 1972) के तहत शामिल नहीं किया गया है। 
  • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि CITES समझौते के तहत संकटापन्न प्रजातियों को तीन परिशिष्टों में शामिल किया जाता है। जिनमें परिशिष्ट (I) में ऐसी प्रजातियों को शामिल किया गया है जो ‘लुप्तप्राय’ हैं तथा जिन्हें व्यापार से और भी अधिक खतरा हो सकता है।
  • ‘वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में छ: अनुसूचियों को शामिल किया गया है ताकि देश के वन्य जीवों तथा वनस्पतियों के अवैध व्यापार को नियंत्रित किया जा सके। 

प्रजातियों का उनकी स्थानिकता या आवास क्षेत्र के आधार पर वर्गीकरण:

  • स्थानिक प्रजातियाँ (Endemic species):
    • ऐसी प्रजातियाँ जो भौगोलिक रूप से पृथक क्षेत्रों में पाई जाती हैं तथा विश्व में अन्यत्र कहीं प्राकृतिक रूप से नहीं पाई जाती हैं। उदाहरणत: कंगारू मूल रूप से ऑस्ट्रेलिया के लिये स्थानिक प्रजाति है।
  • विदेशज़ प्रजातियाँ (Exotic Species):
    • विदेशज़ को सामान्यत: गैर-स्थानिक, बाहरी (Alien) प्रजातियों के रूप में जाना जाता है। ये प्रजातियाँ सामान्यत: उनकी प्राकृतिक भौगोलिक सीमा के बाहर के क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
  • आक्रामक प्रजातियाँ (Invasive Species):
    • इन्हें विदेशज़ प्रजातियों का एक उप प्रकार माना जा सकता है। आक्रामक प्रजातियों में ऐसे पौधे या जानवर शामिल किये जाते हैं जो मनुष्य द्वारा, दुर्घटनावश या जानबूझकर, उनकी प्राकृतिक भौगोलिक सीमा के बाहर ऐसे क्षेत्र जहाँ वे प्राकृतिक रूप से नहीं पाए जाते हैं, स्थानांतरित कर दिये जाते हैं परंतु ये स्थानिक प्रजातियों के लिये नुकसानदायक होते हैं।

विदेशज़ प्रजातियों के व्यापार का नियमन: 

  • भारत में अनेक पक्षियों, सरीसृपों तथा उभयचरों की विदेशी प्रजातियाँ वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिये आयात की जाती हैं।
  • अब तक इन प्रजातियों का आयात ‘विदेश व्यापार महानिदेशक’ (Director General of Foreign Trade- DGFT) के तहत किया जाता था, जो वन विभाग के दायरे से बाहर था।

नवीन एडवाइज़री के प्रमुख प्रावधान:

  • एडवाइज़री में विदेशज़ जानवरों के आयात तथा प्रकटीकरण संबंधी प्रावधान शामिल किये गए हैं।  ये प्रावधान उन जानवरों पर भी लागू होंगे जिनकी आयातित प्रजातियाँ भारत में पहले से ही मौजूद हैं।
  • किसी भी विदेशज़ जानवर का आयात करने से पूर्व व्यक्ति को DGFT से लाइसेंस प्राप्ति के लिये एक आवेदन प्रस्तुत करना होगा।
  • आयातक को आवेदन के साथ संबंधित राज्य के ‘मुख्य वन्यजीव वार्डन’ को 'अनापत्ति प्रमाण पत्र' (No Objection Certificate- NOC) भी संलग्न करना होगा।
  • वे लोग जो पहले से ही विदेशी जानवरों का आयात कर चुके हैं, उन्हें 6 माह के भीतर जानवर के मूल आयातित स्थान की जानकारी देनी होगी। अगर आयातक 6 माह में यह जानकारी देने तथा घोषणा करने में असमर्थ रहते हैं तो उन्हे आवश्यक दस्तावेज़ जमा कराने होंगे। 

नवीन एडवाइज़री का महत्त्व:

  • भारत में विदेशज़ जानवरों के व्यापार के उचित नियमन का अभाव पाया जाता है। अत: नवीन एडवाइज़री इन जानवरों के व्यापार का उचित विनियमन करने में मदद करेगी।
  • एडवाइज़री देश में मौजूद विदेशज़ जानवरों की जानकारी जुटाने में मदद करेगी।

संभावित चुनौतियाँ:

  • अनेक वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है एडवाइज़री ज़ूनोटिक रोगों के प्रसार को रोकने में अप्रभावी रहेगी। इसमें आक्रामक प्रजातियों (Invasive Species) के माध्यम से ज़ूनोटिक रोगों के प्रसार पर ध्यान नहीं दिया गया था।
  • भारत में वर्तमान में विदेशज़ प्रजातियों के घरेलू व्यापार में लगातार वृद्धि हो रही है। अनेक प्रजातियों यथा 'शुगर ग्लाइडर्स' (Sugar Gliders) मकई सर्प (Corn Snakes) आदि को CITES के तहत सूचीबद्ध नहीं किया गया है।
  • ऐसे लोग जो वन्यजीवों की ‘कैप्टिव ब्रीडिंग’ (Captive Breeding) करते हैं एडवाइज़री में उसके लिये रखरखाव मानकों का कोई उल्लेख नहीं किया गया है।
    • कैप्टिव ब्रीडिंग वह परिकीय है जिसमें वनस्पति तथा वन्य जीवों को नियंत्रित वातावरण यथा वन्यजीव भंडार, चिड़ियाघर, वनस्पति उद्यान आदि में रखा जाता है। 
  • पशुओं के रख-रखाव तथा देखभाल संबंधी मानकों के अभाव के कारण अलग-अलग प्रजातियों के मध्य भी रोगों के प्रसार की पूरी संभावना रहती है।
  • एडवाइज़री को कानूनी समर्थन का अभाव है, अत: यह वन्य जीवों के अवैध व्यापार को बढ़ावा दे सकता है। 

निष्कर्ष:

  •  विदेशज़ जानवारों के व्यापार के नियमन के लिये उचित नियमों के निर्माण की आवश्यकता है जिसमें विदेशज़ प्रजातियों के साथ जुड़े वास्तविक जोखिमों तथा लागतों को ध्यान में रखा जाए। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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