इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


भारतीय समाज

प्रसव से संबंधित गुजरात मॉडल पर एडवाइजरी

  • 21 Dec 2019
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिये

ऑक्सिटोसिन, WHO

मेन्स के लिये

प्रसव से संबंधित दिशा-निर्देश एवं उससे जुड़े मुद्दे, महिला स्वास्थ्य और महिला अधिकार से संबंधित मुद्दे

संदर्भ

हाल में ही केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) ने “प्रसव के अंतिम चरणों के दौरान गैर-पारंपरिक दृष्टिकोण” से संबंधित गुजरात मॉडल (Gujarat Model) को सभी राज्यों द्वारा अपनाने हेतु एडवाइजरी जारी की है।

  • इस एडवाइजरी में जीवन रक्षक दवाओं के देर से प्रयोग की सलाह ने एक नए विवाद को जन्म दिया है।

एडवाइजरी के संदर्भ में :

  • सरकार द्वारा जारी की गई एडवाइजरी मुख्य रूप से प्राकृतिक प्रसव प्रक्रिया (Natural Childbirth Process) को अपनाने पर बल देती है तथा प्रसव के अंतिम चरण के दौरान गैर-परंपरागत दृष्टिकोण को अपनाने की वकालत करती है।
  • इसमें गर्भाशय से गर्भनाल (Placenta) के अलग होने के बाद ही इसको दबाने और काटने का प्रावधान है।
  • इसमें प्राकृतिक प्रसव के पश्चात गर्भनाल के गर्भाशय से बाहर निकलने के बाद ही माता पर जीवन रक्षक दवाओं जैसे ऑक्सिटोसिन के प्रयोग की बात कही गई है जो इस एडवाइजरी का विवादित बिंदु है।
  • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, यह एडवाइजरी महिलाओं के लिये प्रसव को प्राकृतिक एवं सकारात्मक अनुभव बनाने के लिये है।

एडवाइजरी से जुड़े विवादास्पद मुद्दे :

  • भारत ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Orgnisation- WHO) के प्रसव से संबंधित दिशा-निर्देशों को अपनाया है किंतु भारत की यह एडवाइजरी WHO के दिशा-निर्देशों के विपरीत है।
  • WHO के अनुसार, प्रसव के तीसरे चरण से ही सक्रिय प्रबंधन (Active Management) की आवश्यकता है और इसी चरण में माता पर ऑक्सिटोसिन का प्रयोग कर के प्रसव प्रक्रिया को जोखिम रहित बनाना है।
    • जबकि इस एडवाइजरी के अनुसार, प्रसव के अंतिम चरण में गैर-परंपरागत दृष्टिकोण को अपनाना है तथा गर्भनाल के गर्भाशय से बाहर निकलने के बाद ही माता पर ऑक्सिटोसिन का प्रयोग करना है।
    • ध्यातव्य है कि प्रथम चरण प्रसव के लिये शारीरिक परिवर्तन से संबंधित है जबकि दूसरे चरण का संबंध प्रसव प्रक्रिया से है।
    • प्रसूति रोग विशेषज्ञों का मानना है कि यह एडवाइजरी WHO की अनुशंसाओं और विश्व की अन्य एडवाइजरियों के विपरीत है और यह एडवाइजरी उनके द्वारा प्रसवोत्तर रक्तस्त्राव एवं रक्तस्त्राव से माताओं की मृत्यु को रोकने के सभी पूर्ववत प्रयासों को विफल कर देगी।
  • इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (Indian Medical Association) ने केंद्र सरकार से यह मांग की है कि प्रसूति से संबंधित नैदानिक निर्णय डॉक्टरों को ही लेने दिया जाए और यह एडवाइजरी वापस ले ली जाए क्योंकि इससे डॉक्टर तथा बर्थिंग असिटेंट (Birthing Assistants) को विरोधाभासी संदेश जाता है।
  • प्रसूति रोग विशेषज्ञों की सबसे बड़ी चिंता माता पर ऑक्सिटोसिन के देर से प्रयोग को लेकर है क्योंकि प्रसव के तीसरे और चौथे चरण में गर्भाशय के संकुचन में देरी से अत्यधिक मात्र में रक्तस्त्राव होता है, जबकि ऑक्सिटोसिन शिशु के निकलने के तुरंत बाद गर्भाशय के संकुचन और बिना रक्त स्त्राव के गर्भनाल के निष्कासन में मदद करता है।

प्रसवोत्तर रक्तस्त्राव (Post Partum Haemorrhage- PPH) :

बच्चे के जन्म के बाद के पहले 24 घंटों के भीतर लगभग 500 मिलीलीटर से 1,000 मिलीलीटर या अधिक रक्तस्राव होता है। ध्यातव्य है कि प्रसवोत्तर रक्तस्राव भारत में प्रसव के दौरान महिलाओं की मौतों के प्रमुख कारणों में से एक है, जिसके कारण वार्षिक रूप से 1.2 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु होती है।

गुजरात मॉडल के संदर्भ में :

यह मॉडल प्राकृतिक प्रसव की प्रक्रिया को बढ़ावा देने से संबंधित है। केंद्र द्वारा दिया गया यह दिशा निर्देश यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षण (Randomised Controlled Trial) पर आधारित हैं।

ध्यातव्य है कि गुजरात और कोलकाता के एक छोटे अस्पताल में लगभग 450 महिलाओं का प्राकृतिक प्रसव कराया गया तथा फिजियोलॉजिकल कॉर्ड ब्लड क्लैम्पिंग (Physiological Cord Blood Clamping) के प्रभाव का अध्ययन किया गया। इस अध्ययन में माता द्वारा शिशु को जल्द दुग्धपान कराने, दुग्ध में आयरन में वृद्धि, बच्चे की प्रतिरक्षा में वृद्धि तथा संज्ञानात्मक और विकासात्मक वृद्धि संबंधी परिणाम सामने आये हैं। इस आधार पर इन दिशा-निर्देशों को जारी किया गया है।

प्रसव प्रक्रिया को जोखिम रहित बनाने के लिये WHO द्वारा उठाए गए कदम :

  • WHO प्रसव के तीसरे चरण में ही सक्रिय प्रबंधन और गैर-परंपरागत दृष्टिकोण की वकालत करता है क्योंकि तीसरा चरण शिशु के प्रसव और गर्भनाल के निष्कासन के बीच का समय है जिसकी अवधि 6 मिनट से 30 मिनट तक हो सकती है। इस दौरान रक्तस्त्राव इस बात पर निर्भर करता है कि गर्भनाल को गर्भाशय की दीवार से अलग होने में कितना समय लगता है और गर्भाशय की मांसपेशियाँ प्रसव के बाद कितने प्रभावी रूप से सिकुड़ती हैं?
  • गौरतलब है कि यह समय काफी मुश्किल का समय होता है। इसलिये वर्ष 2012 में WHO ने “प्रसव के तीसरे चरण का प्रबंधन (Active Management of Third Stage of Labour- AMTSL)” की पुष्टि की। जिसमें उपयोग की जाने वाली यूटेरोटॉनिक्स (Uterotonics) (गर्भाशय को प्रबंधित और रक्तस्त्राव को कम करने की दवा) प्रसव प्रक्रिया को जोखिम रहित बनाने में सबसे अच्छा उपाय है।

प्रसव प्रक्रिया को जोखिम रहित बनाने के लिये भारत में उठाए गए कदम :

  • केरल ने प्रसवोत्तर रक्तस्त्राव की घटनाओं को कम करने के लिये नाइस इंटरनेशनल (NICE International) नामक संस्था के साथ मिलकर प्रसूति देखभाल की गुणवत्ता मानकों को विकसित और क्रियान्वित किया है जिसके फलस्वरूप केरल ने वर्ष 2013 में प्रसवोत्तर रक्तस्राव को कम करने में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है।

ऑक्सिटोसिन (Oxytocine)

  • ऑक्सिटोसिन एक हार्मोन है जो मस्तिष्क में अवस्थित पिट्यूटरी ग्रंथि से स्रावित होता है।
  • मनुष्य के व्यवहार पर पड़ने वाले प्रभाव के कारण ऑक्सिटोसिन को ‘लव हार्मोन’ नाम से भी जाना जाता है।

स्रोत: द हिन्दू, इंडियन एक्सप्रेस

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2