‘चेन्नई-कन्याकुमारी औद्योगिक कॉरिडोर’ के लिये ADB का ऋण | 18 Jun 2021

प्रिलिम्स के लिये

चेन्नई-कन्याकुमारी औद्योगिक कॉरिडोर, एशियाई विकास बैंक, औद्योगिक गलियारा योजना, पूर्वी तट आर्थिक गलियारा

मेन्स के लिये

औद्योगिक गलियारे और उनका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एशियाई विकास बैंक (ADB) और भारत सरकार ने ‘तमिलनाडु औद्योगिक कनेक्टिविटी परियोजना’ के लिये 484 मिलियन अमेरिकी डॉलर के ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।

  • यह ऋण तमिलनाडु राज्य में ‘चेन्नई-कन्याकुमारी औद्योगिक कॉरिडोर’ (CKIC) के अंतर्गत परिवहन कनेक्टिविटी में सुधार और औद्योगिक विकास की सुविधा से संबंधित है।

एशियाई विकास बैंक

  • यह 19 दिसंबर, 1966 को स्थापित एक क्षेत्रीय विकास बैंक है। इसका मुख्यालय मनीला, फिलीपींस में स्थित है।
  • वर्तमान में इसके 68 सदस्य देश हैं, जिनमें से 49 एशियाई देश हैं। भारत भी इसका सदस्य है।
  • इसके पाँच सबसे बड़े शेयरधारकों में जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका (कुल शेयरों का 15.6% हिस्सा), पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (6.4% हिस्सा), भारत (6.3% हिस्सा) और ऑस्ट्रेलिया (5.8% शामिल) हैं।
  • इसका उद्देश्य एशिया और प्रशांत क्षेत्र में सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है।

प्रमुख बिंदु

ऋण समझौता

  • यह ऋण परियोजना ‘एशियाई विकास बैंक’ की दीर्घकालिक कॉरपोरेट रणनीति यानी ‘रणनीति-2030’ के अनुरूप है और स्थिरता, जलवायु परिवर्तन के लिहाज़ से लचीलापन और सड़क सुरक्षा से जुड़े तत्त्वों पर ज़ोर देती है। 
    • ‘रणनीति-2030’ के मुताबिक, ‘एशियाई विकास बैंक’ अत्यधिक गरीबी को मिटाने के अपने प्रयासों के तहत एक समृद्ध, समावेशी, लचीला और सतत् एशिया-प्रशांत सुनिश्चित करने के लिये अपने दृष्टिकोण का विस्तार करेगा।
  • ‘चेन्नई-कन्याकुमारी औद्योगिक कॉरिडोर’ भारत के ‘पूर्वी तट आर्थिक गलियारे’ (ECEC) का हिस्सा है।

औद्योगिक गलियारा योजना

  • औद्योगिक गलियारा एक आर्थिक पारिस्थितिकी तंत्र है, जो दो प्रमुख आर्थिक केंद्रों को जोड़ने वाले परिवहन गलियारे के चारों ओर बनाया गया है, जहाँ परिवहन गलियारा आर्थिक गतिविधियों के तंत्रिका केंद्र के रूप में कार्य करता है।
    • परिवहन गलियारे के अलावा एक औद्योगिक गलियारे में क्षेत्रीय और वैश्विक मांग को पूरा करने वाले औद्योगिक उत्पादन के क्लस्टर और एकसमान रूप से विकसित शहरी केंद्र भी शामिल होते हैं।
  • वर्ष 2019 में सरकार ने ‘राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास और कार्यान्वयन ट्रस्ट’ (NICDIT) के माध्यम से कार्यान्वित की जा रही पाँच औद्योगिक गलियारा परियोजनाओं के विकास को मंज़ूरी दी थी।
    • NICDIT केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के ‘उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग’ (DPIIT) के प्रशासनिक नियंत्रण में एक सर्वोच्च निकाय है।
  • पाँच औद्योगिक गलियारा परियोजनाएँ
    • दिल्ली-मुंबईऔद्योगिक गलियारा (DMIC)
    • अमृतसर-कोलकाता औद्योगिक गलियारा (AKIC)
    • चेन्नई-बंगलूरू औद्योगिक गलियारा (CBIC)
    • पूर्वी तट आर्थिक गलियारा (ECEC) के साथ विज़ाग चेन्नई औद्योगिक गलियारा
    •  बंगलूरू-मुंबई औद्योगिक गलियारा (BMIC)

Amritsar

पूर्वी तट आर्थिक गलियारा

  • पश्चिम बंगाल से तमिलनाडु तक विस्तृत यह आर्थिक गलियारा समग्र भारत को दक्षिण, दक्षिणपूर्व और पूर्वी एशिया के उत्पादन नेटवर्क से जोड़ता है।
    • ‘पूर्वी तट आर्थिक गलियारे’ के विकास में ‘एशियाई विकास बैंक’ भारत सरकार का प्रमुख भागीदार है।
  • इसमें पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु को कवर किया गया है। इस कॉरिडोर के विज़ाग-चेन्नई खंड को फेज-1 के रूप में विकसित किया गया है।
    • विज़ाग-चेन्नई औद्योगिक गलियारा (VCIC) देश का पहला तटीय आर्थिक गलियारा है।
  • यह परियोजना ‘स्वर्णिम चतुर्भुज’ के साथ संरेखित है। यह भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    • स्वर्णिम चतुर्भुज भारत की सबसे लंबी सड़क परियोजना है और दुनिया का पाँचवाँ सबसे लंबा राजमार्ग है। यह दिल्ली, मुंबई, कोलकाता एवं चेन्नई को जोड़ता है।

औद्योगिक गलियारों का महत्त्व 

  • निर्यात के लिये नवीन संभावनाएँ
    • औद्योगिक गलियारों से लोजिस्टिक्स की लागत कम होने की संभावना है, जिससे औद्योगिक उत्पादन संरचना की दक्षता में वृद्धि होगी।
    • इस तरह की दक्षता उत्पादन की लागत को कम करती है जो भारत में निर्मित उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धा के लिये और अधिक सक्षम बनाता है।
  • रोज़गार अवसर
    • यह उद्योगों के विकास के लिये निवेश आकर्षित करेगा, जिससे बाज़ार में अधिक रोज़गार सृजित होने की संभावना है।
  • पर्यावरणीय महत्त्व
    • सभी राज्यों में औद्योगिक गलियारों के साथ औद्योगिक इकाइयों की स्थापना से किसी एक विशिष्ट स्थान पर उद्योगों के एकत्रण को रोका जा सकेगा। ज्ञात हो कि किसी विशिष्ट स्थान उद्योगों के एकत्रण के कारण उस क्षेत्र के पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जो पर्यावरणीय गिरावट का कारण बनाता है।
  • सामाजिक-आर्थिक महत्त्व
    • सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से भी औद्योगिक गलियारे काफी महत्त्वपूर्ण हैं, इसके परिणामस्वरूप  औद्योगिक टाउनशिप, शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों की स्थापना जैसी सामाजिक कल्याण गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। ये देश में मानव विकास को और अधिक बढ़ावा देंगे।

स्रोत: पी.आई.बी.