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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

जारवा जनजाति से संबंधित वीडियो फिल्म के मामले में होगी कार्रवाई

  • 08 Jul 2017
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

  • विदित हो कि राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) ने यू-ट्यूब सोशल मीडिया मंच पर अंडमान द्वीप समूह की जारवा और अन्य संरक्षित जनजातियों की आपत्तिजनक वीडियो फिल्मों और तस्वीरों पर स्वतः संज्ञान लेते हुए इन पर कार्रवाई शुरू कर दी है।
  • आयोग ने यू-ट्यूब से इन आपत्तिजनक वीडियो फिल्मों को हटाने तथा इन वीडियो क्लिप्स को सोशल मीडिया मंच पर अपलोड करने वालों पर कार्रवाई शुरू करने के लिये इस मामले को गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, जनजातीय कार्य मंत्रालय और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के समक्ष उठाने का फैसला किया है।
  • उल्लेखनीय है कि अंडमान एवं निकोबार द्वीप (आदिम जनजाति संरक्षण) कानून, 1956 के अनुसार अंडमानिज़, ओंग्स, सेंतिनेलिज़, निकोबारिज़ और शोम पैंस की पहचान ‘आदिम जनजातियों’ के रूप में की गई है और इसमें इन समुदायों को बाहरी हस्तक्षेप से संरक्षित किये जाने का प्रावधान है।
  • अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह की कुल आबादी लगभग 28077 है। इनमें से पाँच जनजातीय समुदायों की तादाद 500 से भी कम है।

जारवा जनजाति से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • जारवा जनजाति मानव सभ्यता की सबसे पुरानी जनजातियों में से एक है, जो पिछले कई वर्षो से भारत के केंद्रशासित प्रदेश अंडमान और निकोबार द्वीप समूह पर रह रही है।  यह चिंतनीय है कि आज इस समुदायके  400 से भी कम सदस्य बचे हैं।
  • जारवा जनजाति के संरक्षण के लिये दिसंबर 2004 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जनजातीय मामलों के मंत्रालय और अंडमान निकोबार प्रशासन के साथ मिलकर एक नीति बनाई थी।
  • जंगल से मिलने वाली तमाम परंपरागत चीज़ो के संरक्षण में जरावा समुदाय की अहम भूमिका को देखते हुए उनके रिज़र्व क्षेत्र को 847 वर्ग किलोमीटर से बढ़ाकर 1028 वर्ग किलोमीटर किया गया।
  • जारवा लोगों को शिकार करने के लिये एक निश्चित क्षेत्र उपलब्ध कराने के उद्देश्य से समुद्र तटीय इलाकों में भी ‘ट्राइबल रिज़र्व बेल्ट’ बनाया गया।
  • इसके अलावा रिज़र्व के बाहर पाँच किलोमीटर का एक बफर जोन बनाया गया, जिससे उन्हें यहाँ बड़ी संख्या में पहुँचने वाले पर्यटकों और व्यावसायिक गतिविधियों से अछूता रखा जा सके।
  • अंडमान और निकोबार द्वीप समूह पर ग्रेट अंडमानीज़,  ओंगे,  सेंटिनेलीज़ और शौम्पेन जैसे संख्या में बेहद कम हो चुके संकटग्रस्त जनजातीय समूह के लोग भी रहते हैं।
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