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एथिक्स

उत्संस्करण

  • 24 Aug 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

उत्संस्करण का अर्थ।

मेन्स के लिये:

उत्संस्करण और उसके परिणाम, उत्संस्करणका महत्त्व , भारत और उत्संस्करण।

चर्चा में क्यों?

विभिन्न संस्कृतियों के अपने विशिष्ट संलयन के साथ भारत में ऐसे आदर्श हैं जो उत्संस्करण (Acculturation) की अवधारणा और उसके परिणामों की गहरी समझ प्रदान करते हैं।

उत्संस्करण का क्या अर्थ

  • उत्संस्करण की अवधारणा वर्ष 1880 में अमेरिकी भू-विज्ञानी जॉन वेस्ले पॉवेल द्वारा अमेरिकी ब्यूरो ऑफ एथ्नोलॉजी की एक रिपोर्ट में गढ़ी गई थी।
    • उन्होंने इसे परि-सांस्कृतिक अनुकरण के कारण लोगों में प्रेरित मनोवैज्ञानिक परिवर्तनों के रूप में परिभाषित किया, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न संस्कृतियों के साथ अंतः क्रिया हुई।
  • वर्तमान समय में उत्संस्करण को उस प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसमें एक संस्कृति का व्यक्ति या समूह दूसरी संस्कृति के संपर्क में आता है और अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखते हुए दूसरे के मूल्यों एवं प्रथाओं को अपनाता है।
    • एक उपयुक्त उदाहरण श्वेत अमेरिकी समाज के भीतर अश्वेत अमेरिकियों का एकीकरण है।
  • समाजशास्त्री उत्संस्करण को द्विपक्षीय प्रक्रिया के रूप में समझते हैं, जिसमें अल्पसंख्यक संस्कृति बहुमत के संस्कृति को अपनाती है और बहुसंख्यकों की संस्कृति भी अल्पसंख्यक की संस्कृति से प्रभावित होती है।

उत्संस्करण के विभिन्न परिणाम:

  • आत्मसात:
    • वर्ष 1918 में शिकागो में पोलिश प्रवासियों पर डब्ल्यू.आई. थॉमस और फ्लोरियन ज़्नानीकी द्वारा किये गए एक अध्ययन ने आत्मसात की अवधारणा की बेहतर समझ प्रदान की।
    • यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें समूह एक नई संस्कृति को अपनाते हैं जो वस्तुतः अपनी मूल संस्कृति पूर्णतः बदल देती है और इस प्रक्रिया में पूर्व संस्कृति के केवल कुछ तत्त्व ही बचते हैं।
    • नई संस्कृति को आत्मसात करने के क्रम में, व्यक्ति या समूह अंततः उस संस्कृति से अप्रभेद्य हो जाते हैं जिसके साथ वे संपर्क में आए थे।
    • यह तब होता है जब किसी की संस्कृति को तुलनात्मक रूप से कम महत्त्व दिया जाता है ऐसी स्थिति में इसे एक नए स्थान में अस्तित्त्व की रक्षा के लिये उच्च महत्त्व की संस्कृति को अपनाना बाध्यकारी हो जाता है।
    • यह परिघटना ऐसे समाज में ज़्यादा देखी जा सकती है जो "मेल्टिंग पॉट्स" जैसी होती हैं अर्थात् जिसमें नई संस्कृति आसानी से समाहित हो जाती है।
  • विभाजन:
    • यह उस प्रक्रिया को संदर्भित करता है जिसमें एक व्यक्ति या समूह एक नए सांस्कृतिक समूह के संपर्क में आता है, लेकिन नई संस्कृति के पहलुओं को नहीं अपनाता है, क्योंकि वह दूसरी संस्कृति के मूल्यों और मानदंडों से 'दूषित' हुए बिना अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखना चाहते हैं।
    • अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों को बनाए रखते हुए एक नई संस्कृति की अस्वीकृति आमतौर पर सांस्कृतिक या नस्लीय रूप से भिन्न समाजों में होती है।
  • एकीकरण:
    • एकीकरण के तहत एक व्यक्ति या समूह अपनी मूल संस्कृति को बनाए रखते हुए एक नई संस्कृति को अपनाता है। यह तब होता है जब समाज के सुचारू कामकाज के लिये सांस्कृतिक अंगीकरण को महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
    • अल्पसंख्यक समूहों के अपेक्षाकृत उच्च अनुपात वाले बहुसांस्कृतिक समाज में ऐसी रणनीति का उपयोग किया जाता है।
    • इस रणनीति का उपयोग करने वाले व्यक्ति या समूह विभिन्न संस्कृतियों के मूल्यों और मानदंडों को सहजता से अपना सकते हैं, ये दोनों संस्कृतियों के समूहों के मध्य परस्पर अंतर्क्रिया करने के लिये अनुकूलित होते है।
  • पार्श्वीकरण:
    • यह तब होता है जब व्यक्ति/समूह एक नए सांस्कृतिक समूह के साथ मुश्किल से घुल-मिल पाते हैं।
    • इस रणनीति के परिणामस्वरूप व्यक्ति या समूह को अलग-थलग कर दिया जाता है, उन्हें समाज में हाशिए पर धकेल दिया जाता है।
    • एक ऐसे समाज में जहाँ सांस्कृतिक बहिष्कार का अभ्यास किया जाता है तो दोनों के बीच निर्मित बाधाओं के कारण एक अलग सांस्कृतिक समूह के साथ समन्वयन और एकीकरन लगभग असंभव हो जाता है।
  • रूपांतरण:
    • यह वह प्रक्रिया है जिसमें एक नई संस्कृति के पहलुओं को अपनाने के साथ-साथ अपनी संस्कृति को भी महत्त्व दिया जाता है।
    • यह इस अर्थ में एकीकरण से अलग है कि संस्कृतियों को एक नए रूप में समामेलित किया जाता है (एकीकृत करने और छोड़ने के बजाय दो अलग-अलग संस्कृतियों के नियम और आचरण का समामेलन )।
      • इस प्रकार, दो संस्कृतियों का एक अनूठा मिश्रण एक नई संस्कृति को जन्म देता है जिसे दोनों व्यक्तियों/समूहों द्वारा स्वीकार किया जाता है।

भारत के संदर्भ में उत्संस्करण की प्रासंगिकता:

  • भारत की विशिष्ट समिश्रित संस्कृति उत्संस्करण और उसके परिणामों को समझने में महत्त्वपूर्ण रूप से मदद करती है।
  • फारसी संस्कृति ने भारतीय समाज के लगभग सभी पहलुओं को प्रभावित किया है; बिरयानी और फालूदा जैसे लोकप्रिय खाद्य पदार्थों की उत्पत्ति और केसर तथा जीरा जैसे मसाले फारसी मूल के हैं।
  • उर्दू भाषा, अरबी, फारसी, तुर्की और हिंदी का मिश्रण, जो संस्कृतियों के समामेलन और रूपांतरण का एक उदाहरण है।
  • केरल में ईसाई चर्चों की वास्तुकलजैसे कोट्टायम में चेरियापल्ली (छोटा चर्च) या चेंगन्नूर में पझाया सुरियानी पल्ली (पुराना सीरियाई चर्च) में हिंदू मंदिर स्थापत्य शैली के चिह्न हैं।
    • हिंदू देवताओं के समान कमल के अंदर ईसाई देवताओं की मूर्तियाँ और चर्च की दीवारों पर खुदी हुई गाय, हाथी और बंदर जैसे जानवरों की मूर्तियाँ भारतीय समाज में हिंदू और ईसाई परंपराओं और संस्कृतियों के एकीकरण के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

निष्कर्ष:

  • उत्संस्करण एक अनिवार्य सामाजिक प्रक्रिया है, क्योंकि प्रवास और विभिन्न संस्कृतियों के साथ अंतःक्रियाएँ हमेशा सभ्यता के विकास का हिस्सा रही हैं।
  • उत्संस्करण हमें विभिन्न संस्कृतियों के नए पहलुओं को सीखने और समझने और उनके मतभेदों की सराहना करने की अनुमति देता है।
    • अन्य संस्कृतियों के प्रति आक्रोश और यह विश्वास कि किसी की अपनी विरासत श्रेष्ठ है का परिणाम विभिन्न संस्कृतियों के हाशिए पर जाने और फिर उनका अलगाव हो सकता है जिससे अंततः समाज की प्रगति में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
  • शांतिपूर्ण समाज के लिये विभिन्न समूहों के बीच संस्कृतियों का सौहार्दपूर्ण आदान-प्रदान अनिवार्य है।

स्रोत: द हिंदू

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