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भारतीय राजव्यवस्था

प्रवासी बच्चों की शिक्षा (Education of migrant children)

  • 24 Nov 2018
  • 4 min read

संदर्भ


हाल ही में जारी की गई ग्लोबल एजुकेशन मॉनीटरिंग रिपोर्ट 2019 में यह खुलासा किया गया है कि भारतीय शहरों में मौसमी प्रवासी परिवारों के बच्चों के 80 फीसदी हिस्से के लिये कार्यस्थल पर शिक्षा अब भी एक सपना है। अंततः इन परिवारों के बच्चों का 40 फीसदी हिस्सा स्कूल जाने की जगह काम करना शुरू कर देते हैं, जहाँ उनका शोषण होता है।

हालात

  • ‘बिल्डिंग ब्रिज़ेज़ नॉट वॉल्स’ नामक इस रिपोर्ट के अनुसार, 2013 में 6 से 14 वर्ष की उम्र के 10.7 मिलियन बच्चे घर में परिवार के किसी ऐसे सदस्य के साथ रहते थे, जो मौसमी प्रवासी था और 15 से 19 वर्ष की उम्र के युवाओं का 28 फीसदी हिस्सा अनपढ़ था।

लोग प्रवास क्यों करते हैं?

  • ग्रामीण इलाकों का कृषि आधार वहाँ रहने वाले सभी लोगों को रोज़गार प्रदान नहीं करता है।
  • क्षेत्रीय विकास में असमानता लोगों को ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में स्थानांतरित होने के लिये मजबूर करती है।
  • शैक्षणिक सुविधाओं की कमी के कारण विशेष रूप से उच्च शिक्षा प्राप्त लोग इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये ग्रामीण लोगों को शहरी क्षेत्रों में स्थानांतरित होने के लिये प्रेरित करते हैं।
  • राजनीतिक अस्थिरता और अंतर-जातीय संघर्ष के कारण भी लोग अपने घरों से दूर चले जाते हैं। उदाहरण के लिये, पिछले कुछ वर्षों में अस्थिर परिस्थितियों के कारण जम्मू-कश्मीर और असम से बड़ी संख्या में लोग प्रवास कर चुके हैं।
  • गरीबी और रोज़गार के अवसरों की कमी लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिये प्रेरित करती है।
  • बेहतर तृतीयक स्वास्थ्य और वित्तीय सेवाओं का लाभ उठाने के लिये लोग बेहतर चिकित्सा सुविधाओं की तलाश में अल्पावधि के आधार पर भी प्रवासन करते हैं।

चुनौती अब भी है

  • ग्लोबल एजुकेशन मॉनीटरिंग रिपोर्ट स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर भारत द्वारा शुरू की गई पहलों पर ध्यान केंद्रित करती है जिसका उद्देश्य मौसमी प्रवासियों के बच्चों को शिक्षित करने के साथ-साथ मौसमी प्रवास की वज़ह से शिक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करना भी है।
  • यह रिपोर्ट भारत द्वारा प्रवासी बच्चों की शिक्षा में सुधार हेतु उठाए गए आवश्यक कदमों के सकारात्मक प्रभावों पर प्रकाश भी डालती है लेकिन अब भी ऐसी अनेक चुनौतियाँ हैं जिनका सामना किया जाना बाकी है।
  • शहरों तथा उनके आस पास रहने वाले लोगों की आबादी में वृद्धि होने के साथ ही शिक्षा जैसी आवश्यक जरूरतों को पूरा करने की आवश्कता होती है। आँकड़ों के बगैर सरकारें ऐसी ज़रूरतों को अनदेखा करती रहती हैं।
  • पंजाब में किये गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक, 2015-16 में ईट-भट्टों में काम करने वाले मज़दूरों में 60 फीसदी मज़दूर किसी अन्य राज्य से थे। ईट भट्टे के आस-पास रहने वाले 5 से 14 वर्ष की उम्र के 65 से 80 फीसदी बच्चे रोज 7 से 9 घंटे काम करते हैं।
  • ईट भट्टों में काम करने वाले 77 फीसदी मजदूरों के अनुसार, बच्चों की शुरुआती शिक्षा की व्यवस्था नहीं है।
  • इस रिपोर्ट के अनुसार, 2001 से 2011 के मध्य एक राज्य से दूसरे राज्य में प्रवास करने की दर दो गुनी हो गई।
  • 2011 से 2016 के बीच सलाना लगभग 9 मिलियन लोगों ने एक राज्य से दूसरे राज्य में प्रवास किया था।

स्रोत- द हिंदू बिज़नेस लाइन

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