शासन व्यवस्था
भारत में शैक्षणिक स्वतंत्रता
- 07 Nov 2020
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प्रिलिम्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक स्वतंत्रता सूचकांक मेन्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक स्वतंत्रता सूचकांक |
चर्चा में क्यों?
‘अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक स्वतंत्रता सूचकांक’ (International Academic Freedom Index) में भारत ने 0.352 स्कोर के साथ बहुत खराब प्रदर्शन किया है।
प्रमुख बिंदु
- ‘शैक्षणिक स्वतंत्रता सूचकांक‘ ग्लोबल टाइम-सीरीज़ डेटासेट (वर्ष 1900 से वर्ष 2019 तक) के एक भाग के रूप में यह ‘ग्लोबल पब्लिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट’ (Global Public Policy Institute) द्वारा जारी किया गया है।
- फ्रेडरिक-अलेक्जेंडर यूनिवर्सिटी एर्लांगेन-नार्नबर्ग, स्कॉलर्स एट रिस्क और वी-डेम इंस्टीट्यूट भी इस कार्य में निकट सहयोगी रहे हैं।
शैक्षणिक स्वतंत्रता सूचकांक:
- शैक्षणिक स्वतंत्रता का मतलब है कि संकाय के सदस्यों और छात्रों द्वारा आधिकारिक हस्तक्षेप या प्रतिशोध के डर के बिना बौद्धिक विचार व्यक्त किये जाते हों।
- यह सूचकांक दुनिया भर में शैक्षणिक स्वतंत्रता के स्तर की तुलना करता है और साथ ही शैक्षणिक स्वतंत्रता में की गई कमी की समझ को बढ़ाता है।
- शैक्षणिक स्वतंत्रता सूचकांक का मूल्यांकन निम्नलिखित आठ घटकों के आधार पर किया जाता है।
- शोध और शिक्षा की स्वतंत्रता;
- अकादमिक विनिमय और प्रसार की स्वतंत्रता;
- संस्थागत स्वायत्तता, परिसर अखंडता;
- शैक्षणिक और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता;
- शैक्षणिक स्वतंत्रता की संवैधानिक सुरक्षा;
- शैक्षणिक स्वतंत्रता के तहत अंतर्राष्ट्रीय कानूनी प्रतिबद्धता;
- आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय समझौते;
- विश्वविद्यालयों का अस्तित्व।
- सूचकांक में 0-1 के बीच स्कोर दिया गया है और 1 सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन को बताता है।
शीर्ष प्रदर्शक:
- 0.971 के स्कोर के साथ उरुग्वे और पुर्तगाल शैक्षणिक स्वतंत्रता सूचकांक (एएफआई) में शीर्ष पर हैं, इसके बाद लातविया (0.964) और जर्मनी (0.960) हैं।
- सूचकांक में अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया सहित 35 देशों के डेटा की रिपोर्ट नहीं थी।
सूचकांक पर भारत का प्रदर्शन:
- 0.352 के स्कोर के साथ भारत, सऊदी अरब (0.278) और लीबिया (0.238) के निकट है। पिछले पाँच वर्षों में भारत के एएफआई स्कोर में 0.1 अंक की गिरावट दर्ज की गई है।
- मलेशिया (0.582), पाकिस्तान (0.554), ब्राज़ील (0.466), सोमालिया (0.436) और यूक्रेन (0.422) जैसे देशों ने भारत से बेहतर स्कोर किया है।
भारत के खराब प्रदर्शन का कारण:
- भारत ने संस्थागत स्वायत्तता, परिसर की अखंडता, शैक्षणिक और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा शैक्षणिक स्वतंत्रता की संवैधानिक सुरक्षा जैसे घटकों में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है।
- एएफआई ने ‘फ्री टू थिंक (Free to Think): स्कॉलर्स एट रिस्क अकादमिक फ्रीडम मॉनीटरिंग प्रोजेक्ट’ का हवाला देते हुए सुझाव दिया है कि भारत में राजनीतिक तनाव के कारण ‘शैक्षणिक स्वतंत्रता’ में गिरावट हो सकती है।
- रिपोर्ट के अनुसार, भारत में राजनीतिक तनाव के कारण छात्रों, सुरक्षा बलों और शैक्षणिक परिसर के छात्र समूहों के बीच हिंसक टकराव हुए हैं तथा शैक्षिक संस्थानों में मौजूद विद्यार्थियों (scholars) के खिलाफ कानूनी कार्रवाई और अनुशासनात्मक उपाय किये गए हैं।
भारत के लिये चुनौतियाँ
विद्वानों को स्वतंत्रता:
- भारत विद्वानों को राजनीतिक और सांस्कृतिक रूप से विवादास्पद विषयों पर अपने जीवन, अध्ययन या पेशे के डर के बिना चर्चा करने के लिये वांछित स्वतंत्रता प्रदान करने में विफल रहा है।
राजनीतिक हस्तक्षेप:
- देश के अधिकांश विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक दोनों ही मुद्दों पर सरकारों के अवांछित हस्तक्षेप का सामना करना पड़ता है।
- अधिकांश नियुक्तियों में विशेष रूप से शीर्ष पदों के लिये जैसे- कुलपति और कुलसचिव का अत्यधिक राजनीतिकरण किया गया है।
भ्रष्ट आचरण:
- राजनीतिक नियुक्तियाँ न केवल शैक्षणिक तथा रचनात्मक स्वतंत्रता को बढ़ावा देती हैं, बल्कि लाइसेंसिंग और मान्यता सहित भ्रष्ट प्रथाओं को भी जन्म देती है।
विश्वविद्यालयों की नौकरशाही:
- वर्तमान में कई शैक्षणिक संस्थान और नियामक संस्थाएँ, केंद्रीय और राज्य स्तरों पर नौकरशाहों के नेतृत्व में हैं।
भाई-भतीजावाद:
- स्टाफ की नियुक्तियों और छात्रों के प्रवेश में पक्षपात तथा भाई-भतीजावाद का बोलबाला है। यह शैक्षणिक परिसर के भीतर ‘किराया प्राप्त करने संस्कृति’ (Rent-Seeking Culture) को दर्शाता है।
- किराये पर लेने की मांग एक आर्थिक अवधारणा है जो तब होती है जब कोई संस्था उत्पादकता के किसी भी पारस्परिक योगदान के बिना अतिरिक्त धन प्राप्त करना चाहता है। आमतौर पर यह सरकार द्वारा वित्तपोषित सामाजिक सेवाओं और सामाजिक सेवा कार्यक्रमों के चारों ओर घूमती है।
समाधान:
‘नई शिक्षा नीति’ (New Education Policy) को लागू करना 2020:
- नई शिक्षा नीति, 2020 का दावा है कि यह रचनात्मकता और महत्त्वपूर्ण सोच के सिद्धांतों पर आधारित है तथा एक ऐसी शिक्षा प्रणाली को लागू करती है जो राजनीतिक या बाहरी हस्तक्षेप से मुक्त है।
- इस नीति में कहा गया है कि संकाय (faculty) को ‘पाठ्यपुस्तक और पठन सामग्री चयन, कार्य और आकलन सहित’ अनुमोदित ढाँचे के भीतर अपने स्वयं के पाठ्यक्रम और शैक्षणिक दृष्टिकोण को डिज़ाइन करने की स्वतंत्रता दी जाएगी।
- यह एक ‘राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन’ (National Research Foundation), एक मेरिट-आधारित और ‘सहकर्मी-समीक्षा शोध निधि’ का गठन करने का भी सुझाव देता है, जिसे "सरकार से स्वतंत्र एक रोटेशनल बोर्ड (Rotating Board) द्वारा शासित किया जाएगा।
- इसके अलावा शिक्षाविदों को शासन की शक्तियाँ देकर शिक्षा प्रणाली का वि-नौकरशाहीकरण (De-Bureaucratise) करना है। यह उच्च शिक्षा संस्थानों को अपने प्रशासन को बोर्ड को सौंपने के लिये शिक्षाविदों को शामिल करके स्वायत्तता देने की बात करता है।
विनियामक और शासन सुधार:
- प्रभावी समन्वय सुनिश्चित करने के लिये विभिन्न उच्च शिक्षा नियामकों (UGC, AICTE, NCTE आदि) का पुनर्गठन या विलय किया जा सकता है। विनियामक संरचना को विधायी समर्थन देने के लिये यूजीसी अधिनियम, 1956 में संशोधन किया जाए।
- पारदर्शी और वस्तुनिष्ठ प्रक्रिया के माध्यम से विश्वविद्यालयों के कुलपतियों का चयन किया जाना चाहिये।
- विश्वविद्यालयों को प्रदर्शन के आधार पर अनुदान दिया जाना चाहिये।
आगे की राह:
- विश्वविद्यालयों को विश्वस्तरीय बनाने के लिये उन्हें राजनीति से दूर रखकर स्वायत्तता प्रदान की जानी चाहिये। उच्च राजनीतिक स्वायत्तता वाले संस्थान जैसे- IIT, IIM or IISc अधिक सफल हैं।
- उच्च शिक्षा नीति-निर्माताओं को एएफआई स्कोर में गिरावट के प्रति जवाबदेह बनाना चाहिये। संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्य-4 के साथ गठबंधन करते हुए ‘भारत को आगे बढ़ना चाहिये इससे भारत को एक ‘वैश्विक ज्ञान आधारित महाशक्ति’ बनाने में मदद मिलेगी।
- शैक्षणिक स्वतंत्रता एक प्राथमिकता है। विश्वविद्यालय सवाल पूछने की संस्कृति को बढ़ावा देते हैं। उत्कृष्टता की तलाश में विचारों की खोज करना, मुद्दों पर बहस करना और स्वतंत्र रूप से सोचना आवश्यक है।