गंभीर बीमारी से ग्रस्त भ्रूण के गर्भपात की इज़ाज़त | 04 Jul 2017
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात से संबंधित मामलों को लेकर एक महत्त्वपूर्ण निर्णय दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता की एक महिला को 26 हफ्तों का गर्भ गिराने की इज़ाज़त दे दी है। गौरतलब है कि कानूनी तौर पर 20 हफ्ते तक के गर्भ को गिराने की मंज़ूरी है।
महिला के पेट में पल रहा भ्रूण दिल की गंभीर बीमारी से ग्रस्त है। महिला और उसके पति ने अदालत से इस आधार पर भ्रूण को नष्ट किये जाने की अनुमति मांगी थी कि यह बीमारी मां के स्वास्थ्य के लिये भी घातक हो सकती है। कोर्ट ने महिला और उसके गर्भ के स्वास्थ्य की जांच के लिये 7 डॉक्टरों के एक पैनल का गठन किया था, जिसकी रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट ने महिला को गर्भपात की इज़ाज़त दी।
क्या कहते हैं संबंधित प्रावधान ?
- दरअसल, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट में प्रावधान है कि 20 हफ्ते के बाद गर्भपात नहीं किया जा सकता। इसके तहत सात साल तक की सज़ा का प्रावधान है। हालाँकि, यह छूट भी है कि अगर माँ या बच्चे को खतरा हो तो गर्भपात किया जा सकता है।
- इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे कई मामलों में गर्भपात की इज़ाज़त दी है। इसी साल उच्चतम न्यायालय ने मुंबई निवासी 24 हफ्ते की गर्भवती एक 23 वर्षीय महिला को गर्भपात की इज़ाज़त दी थी।
- ध्यातव्य है कि वर्ष 2014 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट में एक संशोधन द्वारा गर्भपात की अनुमति प्राप्त करने की अवधि को 20 हफ्ते से बढ़ाकर 24 हफ्ते करने का प्रस्ताव किया गया था, हालाँकि बाद के वर्षों में भी समय-समय पर यह मांग उठती रही है।
- गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम, 1971 (The Medical Termination Of Pregnancy Act 1971) साधारण तौर पर इस कानून के अनुसार कुछ विशेष परिस्थितियों में 12 से 20 सप्ताह तक ही गर्भपात कराने की व्यवस्था की गई है।
क्या होना चाहिये ?
- यह कानून 45 साल पुराना है, जो उस वक्त की जाँचों पर आधारित है। इस कानून के अनुसार, कानूनी तौर पर गर्भपात केवल विशेष परिस्थितियों में ही किया जा सकता है, जैसे; जब महिला की जान को खतरा हो, महिला के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को खतरा हो, गर्भ बलात्कार के कारण हुआ हो, पैदा होने वाले बच्चे का गर्भ में उचित विकास न हुआ हो और उसके विकलांग होने का डर हो।
- गर्भपात का अधिकार, महिलाओं के लिये जीवन के अधिकार का ही एक भाग है। यह महिलाओं को मिलना चाहिये। ऐसी भी परिस्थिति होती है, जिसमें गर्भपात करवाना ज़्यादा नैतिक और तर्कसंगत लगता है, जैसे कि गर्भधारण के कारण यदि माता के स्वास्थ्य को गंभीर खतरा हो, साथ ही, अगर टेस्ट में यह पाया जाए कि गर्भ में पल रहे बच्चे में कुछ असाधारण बीमारी, विकलांगता या उसका सही तरह से विकास नहीं हुआ है, अगर ऐसी स्थिति में माता गर्भपात कराना चाहे तो क्या यह गलत या अनैतिक होगा?
- इस प्रकार के सवालों के जवाब न तो विधायिका के पास हैं और न ही अभी तक न्यायपालिका ने इस संबंध में विशेष कार्य किया है। अतः इस विषय पर समुचित अध्ययन के पश्चात् मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट में कुछ सुधारवादी संशोधन तो होने ही चाहिये।