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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अर्थव्यवस्था की गिरती विकास दर पर एक नज़र

  • 05 Jun 2017
  • 6 min read

संदर्भ
केंद्रीय सांख्यिकी आयोग (CSO) ने 31 मई को देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) से संबंधित आँकड़े जारी कर देश की अर्थव्यवस्था की तस्वीर पेश की। आँकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2016-17 की चौथी तिमाही में जी.डी.पी. की वृद्धि दर घटकर 6.1 फीसदी पर आ गई है। इसके बहुत से कारण बताए गए हैं जिनमें वैश्विक एवं घरेलू कारण भी शामिल हैं। इस गिरावट की वजह से भारत की बजाय चीन 'सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था' बन गया है। 

महत्त्वपूर्ण बिंदु 

  • अर्थव्यवस्था के अधिकांश क्षेत्र 2016-17 की चौथी तिमाही में नोटबंदी के कारण बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
  • नवीनतम अनुमान के मुताबिक जनवरी-मार्च 2017 में विकास दर गिरकर 6.1% हो गई। सकल मूल्य वर्द्धन (GVA) तीसरी तिमाही के 6.7% से गिरकर चौधी तिमाही में 5.6% हो गया है।
  • अगर अर्थव्यवस्था को क्षेत्रवार ढंग देखें तो निर्माण-क्षेत्र में 3.7% की गिरावट हुई; विनिर्माण क्षेत्र में 5.3% की गिरावट हुई; जबकि व्यापार, होटल और परिवहन जैसी सेवाओं में 6.5% की गिरावट देखी गई।  
  • कृषि अर्थव्यवस्था की बेहतर स्थित और सरकार द्वारा किये गए खर्च के कारण पूरे वर्ष आर्थिक विकास में 7.1 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई।
  • अर्थव्यवस्था में रोज़गार के अवसर पैदा करने के लिये आर्थिक विकास बहुत ज़रूरी है। आर्थिक विकास को बढाने के लिये निवेश को बढ़ाना आवश्यक होता है लेकिन नया निवेश 6.5% से घटकर 2.4% रह गया है, जोकि अर्थव्यवस्था के लिये सही नहीं है। उल्लेखनीय है कि नोटबंदी के बावज़ूद निजी निवेश में बढ़ोतरी देखी गई, साथ ही सरकारी खर्च भी 6 प्रतिशत तक बढ़ गया है।
  • वर्तमान में निवेश चक्र को पुनः प्रारंभ करने के लिये अनुकूल परिस्थतियाँ विद्यमान हैं। इसके लिये सरकार एक तरफ रुकी हुई परियोजनाओं से संबंधित मुद्दों को जल्दी हल करने की कोशिश कर सकती है, तो दूसरी तरफ अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता मांग को बढ़ाकर निजी निवेश को बढ़ावा दिया जा सकता है। 
  • वास्तविक जी.डी.पी. (मुद्रास्फीति के बिना आर्थिक उत्पादन की मात्रा में वृद्धि) की तुलना में नाममात्र (Nominal) जी.डी.पी. (मूल्य के संदर्भ में आर्थिक विकास) आम आदमी के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इसी के द्वारा लाभ और बिक्री में वृद्धि के साथ-साथ किसानों, उद्यमियों और वर्तनभोगियों  की आय में होने वाली वृद्धि को भी आंका जाता है।
  • दक्षिण-पश्चिम मानसून की अच्छी स्थिति के कारण कृषि के जी.वी.ए. में 0.7% से 4.9% की बढ़ोतरी ने आर्थिक वृद्धि दर को 6.1% बनाए रखने में मदद की।

सकारात्मक संकेत

  • हालिया महीनों में मुद्रास्फीति (थोक मूल्य पर) में वृद्धि के बावजूद मौजूदा कीमतों पर जी.वी.ए. वित्त वर्ष 2017 की पहली तिमाही में 8.7% था, जो चौधी तिमाही में बढ़कर 11.3% हो गया है।
  • हालाँकि, नवीनतम आँकड़ों में जी.डी.पी. में गिरावट ज़रूर दर्ज़ की गई लेकिन ये आँकड़े अनौपचारिक क्षेत्र की पूरी तस्वीर पेश नहीं करते, जबकि ज़्यादातर लोग इसी क्षेत्र में कार्यरत हैं।
  • जी.डी.पी. के अग्रिम और अनंतिम आँकड़े संगठित क्षेत्र के आई.आई.पी. (IIP), बिक्री कर संग्रह और सूचीबद्ध कंपनियों के त्रैमासिक परिणाम जैसे अति परिवर्तनशील आँकडों पर आधारित हैं, जो प्रत्येक छमाही में बदलते रहते हैं। अत: इससे संपूर्ण अर्थव्यवस्था की स्थिति का पता नहीं चलता है। 

क्या हो सकते हैं नकारात्मक प्रभाव ?

  • इस प्रकार के अनुमानों से विदेशी निवेश में कमी आ सकती है, जबकि देखा जाए तो विमुद्रीकरण के कारण अर्थव्यवस्था में निवेश पहले से ही प्रभावित है।
  • इसके कारण अर्थव्यवस्था में मांग में कमी आएगी, परिणामस्वरूप निजी निवेश भी प्रभावित होगा।
  • साथ ही, इससे वैश्विक स्तर पर भारत की छवि प्रभावित हो सकती है।

निष्कर्ष
हालाँकि बदलते वैश्विक परिदृश्य तथा घेरलू स्तर पर नोटबंदी तथा अन्य कारणों से जी.डी.पी. में गिरावट अवश्य आई है, लेकिन यह हमारे लिये इस बात का संकेत है कि हम अपनी अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाएँ। हमें ऐसी ठोस नीतियाँ बनाने की आवश्यकता है जो घरेलू स्तर पर अर्थव्यवस्था को मज़बूती प्रदान करें और साथ ही वैश्विक आघातों से सुरक्षा दिला सकें। आने वाले समय में हम आशा कर सकते हैं कि अगर मानसून अपनी मज़बूत स्थिति में रहा और निजी क्षेत्र ने अपना अच्छा प्रदर्शन किया तो अर्थव्यवस्था अपनी मज़बूत स्थित को पुन: प्राप्त कर सकेगी।

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