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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत के लिये शंघाई सहयोग संगठन के मायने

  • 09 Jun 2018
  • 6 min read

संदर्भ

9-10 जून, 2018 को भारत चीन के किंगदाओ में आयोजित हो रहे शंघाई सहयोग संगठन के सम्मेलन में पूर्ण सदस्य के रूप में भाग ले रहा है। स्मरणीय है कि भारत और पाकिस्तान को पिछले वर्ष कजाकिस्तान के अस्ताना में संपन्न हुए संगठन के 17वें शिखर सम्मेलन में पूर्ण सदस्य का दर्जा प्रदान किया गया था।

प्रमुख बिंदु

  • जून 2009 में रूस के येकातेरिनबर्ग में आयोजित हुए शंघाई सहयोग संगठन के वार्षिक सम्मेलन में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी को कड़ा संदेश देते हुए कहा था कि पाकिस्तान की धरती का इस्तेमाल भारत के विरुद्ध आतंकवादी गतिविधियों के संचालन हेतु नहीं किया जाना चाहिये।
  • उस समय भारत और पाकिस्तान दोनों देश संगठन में पर्यवेक्षक के तौर पर शामिल थे, लेकिन भारत ने उस समय पहली बार संगठन में शामिल होने में अपनी रुचि व्यक्त की थी और भारतीय प्रधानमंत्री उस सम्मेलन में शामिल हुए थे।
  • तब से लेकर अब तक वैश्विक राजनीति में बहुत सारे बड़े बदलाव आ चुके हैं। यथा-

♦ अमेरिका ने ईरान के साथ हुई न्यूक्लियर डील से खुद को अलग कर लिया है, जबकि चीन,रूस और डील में शामिल अन्य यूरोपीय देश इसमें बने हुए हैं।
♦ लगभग ढाई महीने तक चले डोकलाम गतिरोध के बाद भारत और चीन ने फिर से संबंधों को सुधारने का प्रयास किया और भारतीय प्रधानमंत्री तथा चीन के राष्ट्रपति के मध्य चीन के वुहान में एक अनौपचारिक सम्मेलन आयोजित किया गया।
♦ भारतीय प्रधानमंत्री ने इजरायल और फिलिस्तीन की यात्रा संपन्न की।
♦ भारत ने अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर क्वाड को पुनर्जीवित किया। 
♦ किंगदाओ में चल रहे सम्मेलन में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के समक्ष यहाँ कई चुनौतियाँ भी होंगी और अवसर भी उपस्थित होंगे।
♦ यह सम्मेलन भारत और पाकिस्तान के शीर्ष नेतृत्व को सम्मेलन से इतर अनौपचारिक रूप से मिलने का अवसर प्रदान करेगा।
♦ दोनों देशों को अपने द्विपक्षीय विवादों को किनारे रखकर पारस्परिक हित के मुद्दों पर सहयोग करना होगा। 
♦ वुहान में हुई वार्ता के पश्चात् यह सम्मेलन भारत और चीन के शीर्ष नेताओं को वार्ता करने और मिलने का अवसर प्रदान करेगा।
♦ किंगदाओ सम्मेलन चीन के लिये अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंध सुधारने और मजबूत करने का एक अच्छा अवसर हो सकता है।
♦ एससीओ में प्रवेश कराने में रूस भारत का सबसे बड़ा समर्थक रहा है। रूस ने भारत को संगठन में प्रवेश दिलाने के लिये चीन पर निरंतर दबाव डाला। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन के मध्य पिछले माह रूस के सोची शहर में एक अनौपचारिक वार्ता संपन्न हुई थी। दोनों नेता इस वार्ता को भी एससीओ सम्मेलन के इतर जारी रखना चाहेंगे।
♦ भारत पहले ही यह साफ कर चुका है कि रूस के साथ भारत के संबंध पश्चिमी जगत के रूस के प्रति अपनाए जा रहे रवैये के कारण प्रभावित नहीं होंगे।
♦ भारत का इसी प्रकार का दृष्टिकोण ईरान के लिये भी रहने की उम्मीद है, जो कि संगठन में एक पर्यवेक्षक राज्य के तौर पर शामिल है और संगठन की पूर्ण सदस्यता के लिये आवेदन कर चुका है।
♦ इस सम्मेलन के दौरान ही भारतीय प्रधानमंत्री ईरान के शीर्ष नेतृत्व के साथ भी वार्ता कर सकते हैं। ध्यातव्य है कि भारत का ईरान के चाबहार बंदरगाह के साथ बड़ा राजनीतिक हित जुड़ा हुआ है। 
♦ शंघाई स्पिरिट, जो कि एससीओ की प्रमुख विचारधारा है, सद्भाव, सर्व सम्मति, दूसरी संस्कृतियों का सम्मान, दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना और गुटनिरपेक्षता पर जोर देती है।
♦ वास्तव में शंघाई सम्मेलन भारत को उस प्रकार की शक्ति के प्रदर्शन का अवसर प्रदान करता है, जैसा भारत चाहता है।

शंघाई सहयोग संगठन

  • शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) एक यूरेशियन राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संगठन है, जिसकी स्थापना चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान के नेताओं द्वारा 15 जून, 2001 को शंघाई (चीन) में की गई थी।  
  • उज़्बेकिस्तान को छोड़कर बाकी देश 26 अप्रैल 1996 में स्थापित ‘शंघाई पाँच’ समूह के सदस्य हैं।
  • भारत और पाकिस्तान को वर्ष 2017 में इस संगठन के पूर्ण सदस्य का दर्जा प्रदान किया गया।
  • 2005 से भारत और पाकिस्तान इस संगठन में पर्यवेक्षक के रूप में शामिल थे।
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