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उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के पैटर्न में बदलाव और इसके निहितार्थ

  • 16 Sep 2017
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

पश्चिमी प्रशांत महासागर में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के एक अनोखे पैटर्न के कारण अगस्त के महीने में भारत में मानसून की अच्छी बारिश नहीं हुई है, जबकि भारत के मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने अगस्त में सामान्य वर्षा की भविष्यवाणी की थी।

असमान्य बारिश के कारण

  • विदित हो कि मानसून के दौरान, पश्चिमी प्रशांत महासागर से चक्रवात भारत की ओर बढ़ते हैं और उप-महाद्वीप में मानसून की सामान्य वर्षा सुनिश्चित करते हैं।
  • हालाँकि कभी-कभी ऐसा भी होता है कि भारत की ओर बढ़ते इन चक्रवातों की दिशाएँ बदल जाती हैं, जैसा कि इस बार हुआ है।
  • चक्रवातों की दिशाएँ सामान्य तौर पर तब बदलती हैं जब अल-नीनो प्रभाव देखने को मिलता है, लेकिन इस बार बिना अल-नीनो के प्रभाव के ही यह बदलाव देखने को मिल रहा है।
  • कुछ वैश्विक मौसम विज्ञान अध्ययन संस्थानों ने कहा था कि हो सकता है कि अगस्त और सितंबर में अल-नीनो की परिस्थितियाँ बने, जबकि ऐसा नहीं हुआ है।

क्या है अल-नीनो?

  • अल-नीनो का स्पेनी भाषा में अर्थ होता है 'छोटा बालक'। अल-नीनो का दूसरा मतलब 'शिशु क्राइस्ट' भी बताया जाता है।
  • यह अल-नीनो का ही प्रभाव था कि 2015 में भारत में मानसून सामान्य से 15 फीसदी कम रहा और इस वज़ह से भारत में कृषि खासी प्रभावित रही और खाद्य पदार्थों की कीमतें आसमान पर पहुँच गई थी।
  • दरअसल, प्रशांत महासागर में बीते कुछ वर्षों से समुद्र की सतह गर्म होती जा रही है, जिससे हवाओं का रास्ता और रफ्तार भी बदल जाती है। यही कारण है मौसम का चक्र बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है।
  • मौसम के बदलाव की वजह से कई जगह सूखा पड़ता है तो कई जगहों पर बाढ़ आ जाती है। इसका असर दुनिया भर में महसूस किया जा रहा है।
  • विदित हो कि बहुत से जानकारों का यह मानना है कि प्रशांत महासागर के सतह का तापमान बढ़ने का सीधा संबंध जलवायु परिवर्तन से है।
  • अल–नीनो एक वैश्विक प्रभाव वाली घटना है और इसका प्रभाव क्षेत्र अत्यंत व्यापक है।
  • स्थानीय तौर पर प्रशांत क्षेत्र में मतस्य उत्पादन से लेकर दुनिया भर के अधिकांश मध्य अक्षांशीय हिस्सों में बाढ़, सूखा, वनाग्नि, तूफान या वर्षा आदि के रूप में इसका असर सामने आता है।

 निष्कर्ष

प्रशांत महासागर में दक्षिण अमेरिका के निकट खासकर पेरु वाले क्षेत्र में यदि विषुवत रेखा के इर्द-गिर्द समुद्र की सतह अचानक गरम होनी शुरू हो जाए तो अल-नीनो की स्थिति बनती है। यदि तापमान में यह बढ़ोतरी 0.5 डिग्री से 2.5 डिग्री के बीच हो तो यह मानसून को प्रभावित कर सकती है। इससे मध्य एवं पूर्वी प्रशांत महासागर में हवा के दबाव में कमी आने लगती है। इसका असर यह होता कि विषुवत रेखा के इर्द-गिर्द चलने वाली ट्रेड विंड कमज़ोर पड़ने लगती हैं। यही हवाएँ मानसूनी हवाएँ होती हैं जो भारत में बारिश करती है।

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