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भूगोल

भारत में ‘हीटवेव’ में स्थानिक परिवर्तन

  • 12 Oct 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत मौसम विज्ञान विभाग, हीटवेव

मेन्स के लिये:

‘हीटवेव’ के कारण और परिणाम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक अध्ययन के दौरान भारत में ‘हीटवेव’ में स्थानिक परिवर्तन की स्थिति देखी गई है।

  • अध्ययन में कहा गया है कि पूर्वी एवं पश्चिमी तट, जो कि वर्तमान में हीटवेव से सुरक्षित हैं, भविष्य में गंभीर रूप से प्रभावित हो सकते हैं।
  • इस अध्ययन के दौरान वर्ष 1951-2016 तक देश में ‘हीटवेव’ में मासिक, मौसमी, दशकीय और दीर्घकालिक रुझानों का आकलन किया गया।

प्रमुख बिंदु

  • निष्कर्ष:
    • उत्तर-पश्चिमी एवं दक्षिणी भारत में एक ‘वार्मिंग पैटर्न’ देखा गया है, जबकि देश के उत्तर-पूर्वी एवं दक्षिण-पश्चिम क्षेत्रों में एक प्रगतिशील ‘कूलिंग पैटर्न’ पाया गया है।
    • ‘हीटवेव’ की घटनाओं में एक ‘स्थानिक-अस्थायी बदलाव’ प्रकट होता है, जिसमें तीन प्रमुख हीटवेव प्रवण क्षेत्रों- उत्तर-पश्चिमी, मध्य और दक्षिण-मध्य भारत में उल्लेखनीय रूप से बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जो कि पश्चिमी मध्य प्रदेश में सबसे अधिक (0.80 घटनाएँ/वर्ष) है।
      • ‘हीटवेव’ की घटना पारंपरिक रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली और मध्य प्रदेश के उत्तरी हिस्सों से जुड़ी हुई है।
    • दक्षिणी मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में हीटवेव की घटनाएँ पाई गईं, जहाँ वे परंपरागत रूप से नहीं पाई जाती थीं।
      • कर्नाटक और तमिलनाडु में ‘हीटवेव’ की घटनाओं में हो रही वृद्धि विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है, और भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं में बढ़ोतरी को इंगित करती है।
    • पूर्वी क्षेत्र यानी पश्चिम बंगाल में गंगा के आसपास के हिस्सों में ‘हीटवेव’ में उल्लेखनीय कमी (−0.13 घटनाएँ/वर्ष) दर्ज की गई है।
    • पिछले दशकों में 2001–2010 के दशक में हीटवेव वाले दिनों और गंभीर हीटवेव वाले दिनों की बढ़ती प्रवृत्ति देखी गई है।
  • कारक
    • देश में हीटवेव की स्थिति को बढ़ाने में मुख्यतः दो तत्त्व उत्तरदायी हैं- रात के समय के तापमान में वृद्धि, जो रात में ऊष्मा के निर्वहन को बाधित करता है और आर्द्रता के स्तर में हो रही बढ़ोतरी।
  • हीटवेव 
    • परिचय
      • ‘हीटवेव’ का आशय असामान्य रूप से उच्च तापमान की अवधि से है, जब किसी क्षेत्र विशिष्ट का तापमान वहाँ के सामान्य तापमान से अधिक होता है।
      • ‘हीटवेव’ की स्थिति प्रायः मार्च और जून के बीच देखी जाती है तथा कुछ दुर्लभ मामलों में यह जुलाई माह तक विस्तृत हो सकती है।
      • ‘भारत मौसम विज्ञान विभाग’ (IMD) हीटवेव को क्षेत्रों और उनके तापमान रेंज के अनुसार वर्गीकृत करता है।
    • हीटवेव संबंधी मानदंड:
      • ‘हीटवेव’ की स्थिति प्रायः तब उत्पन्न होती है जब किसी स्टेशन का अधिकतम तापमान मैदानी इलाकों में कम-से-कम 40 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी क्षेत्रों में कम-से-कम 30 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता है।
      • वहीं यदि किसी स्टेशन का सामान्य अधिकतम तापमान 40°C से कम या उसके बराबर है, तो सामान्य तापमान से 5°C से 6°C की वृद्धि को ‘हीटवेव’ स्थिति माना जाता है।
        • इसके अलावा सामान्य तापमान से 7°C या उससे अधिक की वृद्धि को भीषण ‘हीटवेव’ की स्थिति माना जाता है।
      • यदि किसी स्टेशन का सामान्य अधिकतम तापमान 40°C से अधिक है, तो सामान्य तापमान से 4°C-5°C की वृद्धि को ‘हीटवेव’ की स्थिति माना जाता है। 
        • इसके अलावा 6°C या उससे अधिक की वृद्धि को भीषण ‘हीटवेव’ की स्थिति माना जाता है।
      • इसके अतिरिक्त यदि वास्तविक अधिकतम तापमान, सामान्य अधिकतम तापमान के बावजूद 45 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक रहता है, तो एक गर्मी की लहर घोषित कर दी जाती है।
    • प्रभाव
      • हीट स्ट्रेस:
        • वातावरण में नमी की उपस्थिति पसीने के माध्यम से शरीर के बाष्पीकरणीय कूलिंग के थर्मोरेगुलेटरी तंत्र को बाधित करती है, जिससे ‘हीट स्ट्रेस’ की स्थिति पैदा हो सकती है।
      • ‘हीट’ संबंधी मृत्यु दर में वृद्धि
        • गर्मी के दौरान औसत तापमान में 0.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के कारण गर्मी से संबंधित मृत्यु दर में 2.5% से 32% तक की वृद्धि हो सकती है और यदि हीटवेव की अवधि में 6 से 8 दिनों तक की वृद्धि होती है, तो इसके परिणामस्वरूप मृत्यु दर में 78% तक की वृद्धि हो सकती है। 
      • हीट स्ट्रोक
        • बहुत अधिक तापमान या आर्द्र परिस्थितियाँ ‘हीट स्ट्रोक’ का एक बढ़ा जोखिम पैदा करती हैं।
        • वृद्ध लोग और पुरानी बीमारी जैसे हृदय रोग, श्वसन रोग और मधुमेह आदि से पीड़ित लोग हीटस्ट्रोक के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, क्योंकि शरीर की गर्मी को नियंत्रित करने की क्षमता उम्र के साथ घटती जाती है।
      • ऊर्जा मांग में बढ़ोतरी
        • भीषण गर्मी के कारण प्रायः ऊर्जा की मांग में भी वृद्धि होती है, जिससे उसकी दरों में भी बढ़ोतरी होती है।
      • श्रमिकों की उत्पादकता में कमी:
        • भीषण गर्मी श्रमिक उत्पादकता को भी प्रभावित करती है, विशेष रूप से उन श्रमिकों को जो खुले क्षेत्रों में कार्य करते हैं।
        • कर्मचारी अक्सर ‘हीट स्ट्रेस’ के कारण कम उत्पादक हो जाते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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