इमारतों को ठंडा रखने वाली फ़िल्म का आविष्कार | 13 Feb 2017

सन्दर्भ

  • यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि अमेरिका में कुल विद्युत् उत्पादन का 6 प्रतिशत घरों और इमारतों को ठंडा रखने में खर्च हो जाता है। गौरतलब है कि भारत, ब्राज़ील और चीन विकासशील से विकसित देश बनने की ओर अग्रसर हैं। ऐसे में सम्भावना यह व्यक्त की जा रही है कि विकसित होते इन राष्ट्रों के नवनिर्मित आधारभूत ढाँचे को गतिशील बनाए रखने के लिये बड़ी मात्रा में विद्युत् आपूर्ति की आवश्यकता होगी। लेकिन कोलोराडो यूनिवर्सिटी के डॉ. यान और यिन नामक दो वैज्ञानिकों ने एक ऐसी फिल्म( इसे मेम्ब्रेन, परत, या झिल्ली भी कह सकते हैं) का अविष्कार किया है जो बिना किसी विद्युत् खपत के घरों एवं इमारतों को ठंडा रखने का कार्य करेगी। सबसे बढ़कर, यह कि इस फ़िल्म के निर्माण की लागत भी बहुत कम है।

कैसे काम करेगी यह फिल्म?

  • गौरतलब है की यह फ़िल्म विकिरण शीतलन (radiative cooling) की प्रक्रिया के आधार पर कार्य करता है। हम सभी जानते हैं कि ताप को धारण करने वाले एक निश्चित तरंग दैर्ध्य के अवरक्त विकिरण(infrared radiation) बिना किसी अवरोध के ही अन्तरिक्ष में चले जाते हैं। यदि सरल शब्दों में कहें तो अवरक्त विकिरण एक खास तरंग दैर्ध्य पर बिना किसी रोक-टोक के ही वापस अंतरिक्ष में चले जाते हैं। यह फ़िल्म इस अवधारणा पर कार्य करेगी की यदि अवांछनीय ताप की मात्रा को इस निश्चित तरंग दैर्ध्य वाले विकिरण में तब्दील कर दिया जाए तो यह अवांछनीय ताप अपने आप अतंरिक्ष में चला जाएगा।
  • ऐसा नहीं है कि डॉ. यान और यिन से पहले किसी अन्य ने इस सिद्धांत का उपयोग नहीं किया लेकिन अब तक इस संबंध में जितने भी अन्वेषण हुए थे वे काफी खर्चीले और जटिल थे। अतः यह अविष्कार निश्चित ही एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण अविष्कार है। यह फ़िल्म नीचे दिये गए चित्र के अनुरूप ही कार्य करेगा, जहाँ फ़िल्म रहित छत को काली छत से इंगित किया गया है वहीं फ़िल्म सहित छत को सफ़ेद छत की संज्ञा दी गई है। 

कैसे होगा इस फ़िल्म का निर्माण?

  • इस फ़िल्म का निर्माण पोलिमिथाइलपेंटेंन (polymethylpentene) से किया जाएगा। यह एक प्रकार का एक पारदर्शी प्लास्टिक है जो कि सामान्य तौर पर बाज़ारों में टीपीएक्स के नाम से बेचा जाता है। इस टीपीएक्स में काँच की छोटी-छोटी मोतियों को चिपकाया जाता है उसके बाद इस टीपीएक्स को एक-एक माइक्रोन के पचास पतली-पतली चादरों के रूप में विकसित किया जाता है जिसके एक तरफ चाँदी की परत चढ़ाई जाती है। यह प्लाटिक यानी टीपीएक्स सूर्य के प्रकाश को परवर्तित कर देता है और इसके नीचे इमारत बहुत अधिक गर्म होने से बच जाती है।

निष्कर्ष

आज हम एक ऐसे समय में रह रहे हैं जहाँ ग्लोबल वार्मिंग सबसे बड़ी समस्या बन गई है, तापमान के बढ़ने के साथ ही हम अपने घरों और इमारतों को ठंडा रखने का प्रयास करते हैं और इस क्रम में हमारी उर्जा ज़रूरतें तो बढ़ ही रही हैं साथ में हम पर्यावरण को क्षति भी पहुँचा रहे हैं। अतः कोलोराडो यूनिवर्सिटी के डॉ. यान और यिन का यह आविष्कार निश्चित ही 21वीं सदी के महत्त्वपूर्ण आविष्कारों में से एक है।