लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

किशोर न्याय अधिनियम 2015 के मसौदा नियम जारी

  • 06 Jun 2016
  • 5 min read

हाल ही में केंद्र सरकार ने किशोर न्याय अधिनियम 2015 के मसौदा नियम जारी किए हैं. इन नियमों को में पुलिस, बाल न्याय बोर्ड और आपराधिक मामलों में पकड़े गए बच्चों से निपटने संबंधी अदालत के संदर्भ में कई बाल मित्रवत प्रक्रियाओं का उल्लेख किया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • मसौदा नियमों के तहत, किशोर अपराधियों को उपयुक्त चिकित्सा सुविधा और कानूनी सहायता प्रदान करने के सा थ उसके माता-पिता और अभिभावकों को सूचित करने की बात कही गई है।

  • बोर्ड और बाल अदालत को बच्चों के सर्वोच्च हितों के सिद्धांत का अनुपालन करना चाहिए, साथ ही समाज में उनके पुनर्वास एवं मुख्यधारा से जोड़ने का उद्देश्य पूरा करना चाहिए।

  • मसौदा नियमों के अनुसार, प्रत्येक राज्य सरकार के लिए ऐसे बच्चों के पुनर्वास के वास्ते कम से कम 'एक सुरक्षित' जगह स्थापित करना जरूरी है।

  • नियमों के अनुसार 16 से 18 वर्ष का कोई बालक यदि किसी आपराधिक मामले में पकड़ा जाता है तो उसे हथकड़ी नहीं लगाई जाएगी और न ही उसे जेल भेजा जाएगा।

  • नियमों में ऐसे बच्चों की नियमित निगरानी की व्यवस्था करने की बात कही गई है।

  • कानून में बच्चों के खिलाफ कई नए अपराधों को शामिल किया गया है जिसमें किसी भी उद्देश्य के लिए बच्चों की खरीद, किसी सेवा संस्थान में बच्चों को शारीरिक दंड, बच्चों को उग्रवादी बनाना, बच्चों को मादक पदार्थ खिलाना आदि शामिल है।

  • इसमें आयु निर्धारित करने के बारे में विस्तृत प्रक्रिया बताई गई है तथा किशोर न्याय समिति आवेदन के 30 दिनों में बच्चे की आयु निर्धारित करेगी.

  • इन नियमों का मसौदा बहुआयामी समिति ने तैयार किया है जिसमें एक वरिष्ठ न्यायाधीश और वकील, किशोर न्याय बोर्ड एवं बाल कल्याण समिति के सदस्य, राज्य सरकारों के प्रतिनिधि, नागरिक समाज के सदस्य शामिल थे।

हाल के वर्षों में किशोर अपराधियों की संख्या तेजी से बढ़ी है, इसलिए कानून पर पुनर्विचार जरूरी था। विदेशों में भी ऐसा हुआ है, जैसे-इंग्लैंड में फरवरी 1993 जेम्स बलजर नामक एक बच्चे की 10 वर्ष के दो बच्चों ने अपहरण कर हत्या कर दी। इस घटना के एक वर्ष के अंदर वहां क्रिमिनल जस्टिस एंड पब्लिक ऑर्डर एक्ट, 1994 बनाया गया, जिसमें किशोर अपराधियों के लिए सख्त सजा का प्रावधान है। उस घटना के पहले वहां भी किशोर अपराधियों के लिए सजा के बजाय पुनर्वास की ही व्यवस्था हुआ करती थी।

देश में पहला मामला; वयस्क की तरह चलेगा मुकदमा

दिल्ली में 4 अप्रैल को हुए मर्सडीज हिट एंड रन केस में किशोर न्यायालय ने 4 जून को सुनाए गए अपने अभूतपूर्व फैसले में नाबालिग आरोपी के खिलाफ वयस्कों की तरह सामान्य ट्रायल कोर्ट में मुकदमा चलाने का आदेश दिया। किशोर न्यायालय ने इस संबंध में दिल्ली पुलिस की अर्जी को स्वीकार कर लिया। किशोर न्याय कानून में संशोधन के बाद देश में इस तरीके का संभवतः यह पहला मामला है जब किसी अवयस्क को किसी मामले में वयस्क माना गया है।

  • इस कानून में सात साल तक की सजा वाले अपराधों सहित गंभीर अपराध में लिप्त होने पर बोर्ड को नाबालिग के खिलाफ सामान्य ट्रायल कोर्ट में मुकदमा चलाने के आदेश देने की शक्तियां प्राप्त हैं।

उल्लेखनीय  है कि 4 अप्रैल को दिल्ली के सिविल लाइन्स इलाके में मर्सडीज कार से सिद्धार्थ शर्मा नाम के 30 साल के युवक का एक्सीडेंट हो गया था, जिसके बाद मौके पर ही उसकी मौत हो गई थी। इस घटना के बाद आरोपी वहां से भाग निकला था। पुलिस की जांच में पता चला कि आरोपी अवयस्क है, लेकिन इस दुर्घटना के चार दिन बाद ही वह 18 वर्ष (वयस्क) का हो गया था।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2