भारत में हाथ से मैला ढोने की कुप्रथा | 10 Jul 2019
चर्चा में क्यों?
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (Ministry of Social Justice and Empowerment) के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में हाथ से मैला ढोने (मैनुअल स्केवेंजिंग) के कारण मरने वाले सफाई कर्मचारियों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है और यह आँकड़ा 88 तक पहुँच चुका है।
मुख्य बिंदु:
- ज्ञातव्य है कि भारत में मैनुअल स्केवेंजिंग या हाथ से मैला ढोने की प्रथा को पूर्णतः प्रतिबंधित किया जा चुका है, परंतु अभी भी भारत के समक्ष यह एक गंभीर समस्या के रूप में विद्यमान है।
- मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 1993 से अब तक इस शर्मनाक प्रथा के कारण कुल 620 लोगों की मौत हो चुकी है।
- लोकसभा में पेश किये गए आँकड़ों के अनुसार, अब तक 445 मामलों में मुआवज़ा दिया चुका है, 58 मामलों में आंशिक समझौता किया गया है और 117 मामले अभी भी लंबित हैं।
- इस संदर्भ में 15 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने मंत्रालय के साथ जानकारी साझा की है, जिसके अनुसार अकेले तमिलनाडु में ही इस प्रकार के 144 मामले दर्ज़ किये गए हैं।
- कुछ राज्यों ने इस प्रकार के मामलों का कोई भी रिकॉर्ड नहीं रखा है जिसके कारण अभी तक सही आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं, इस प्रथा के कारण होने वाली मौतों की संख्या और अधिक हो सकती है।
- 27 मार्च, 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में सरकार को वर्ष 1993 से मैनुअल स्केवेंजिंग के कारण मरे गए लोगों की संख्या की पहचान करने और उनके परिवारों को मुआवज़े के रूप में 10-10 लाख रूपए देने का निर्देश दिया था।
क्या है हाथ से मैला ढोना (मैनुअल स्केवेंजिंग)?
किसी व्यक्ति द्वारा शुष्क शौचालयों या सीवर से मानवीय अपशिष्ट (मल-मूत्र) को हाथ से साफ करने, सिर पर रखकर ले जाने, उसका निस्तारण करने या किसी भी प्रकार की शारीरिक सहायता से उसे संभालने को हाथ से मैला ढोना या मैनुअल स्केवेंजिंग कहते हैं। इस प्रक्रिया में अक्सर बाल्टी, झाड़ू और टोकरी जैसे सबसे बुनियादी उपकरणों का उपयोग किया जाता है। इस कुप्रथा का संबंध भारत की जाति व्यवस्था से भी है।