भारतीय इतिहास
भारत छोडो आंदोलन की 77 वीं वर्षगांठ
- 10 Aug 2019
- 3 min read
चर्चा में क्यों?
8 अगस्त 2019 को भारत छोडो आंदोलन (Quit India Movement) की 77वीं वर्षगांठ मनाई गई।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
‘क्रिप्स मिशन’ (Cripps Mission) के वापस लौटने के उपरांत महात्मा गांधी ने एक प्रस्ताव तैयार किया जिसमें अंग्रेज़ों से तुरंत भारत छोड़ने तथा जापानी आक्रमण होने पर भारतीयों से अहिंसक असहयोग का आह्वान किया गया था। 8 अगस्त, 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (All India Congress Committee) की गवालिया टैंक, बंबई में हुई बैठक में ‘अंग्रेज़ों भारत छोड़ो’ का प्रस्ताव पारित किया गया तथा घोषणा की गई कि-
- भारत में ब्रिटिश शासन को तुरंत समाप्त किया जाए।
- स्वतंत्र भारत सभी प्रकार की फासीवादी एवं साम्राज्यवादी शक्तियों से स्वयं की रक्षा करेगा तथा अपनी अक्षुण्ता को बनाए रखेगा।
- अंग्रेज़ों की वापसी के पश्चात् कुछ समय के लिये अस्थायी सरकार बनाई जाएगी।
- ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध सविनय अवज्ञा जारी रहेगा।
- महात्मा गांधी इस संघर्ष के नेता रहेंगे।
गतिविधियाँ
- ब्रिटिश सरकार द्वारा रात को 12 बजे ऑपरेशन ज़ीरो ऑवर (Operation Zero Hour) के तहत सभी बड़े नेता गिरफ्तार कर लिये गए। महात्मा गांधी को पुणे की आगा खां जेल में रखा गया ।
- आरंभ में आंदोलन मुख्यतः शहरों में रहा। पटना के सचिवालय में तिरंगा झंडा लगाते समय हुई हिंसक झड़प में कई लोग मारे गए।
- अगस्त के मध्य तक आंदोलन गाँवों तक पहुँच गया और बलिया के चित्तू पांडे ने समानांतर सरकार का गठन किया। इनके लावा महाराष्ट्र के सतारा ज़िले के नाना पाटिल व तामलुक क्षेत्र के सतीश सावंत ने भी समानांतर सरकारों का गठन किया।
- महिलाओं ने भी आंदोलन में बढ-चढ़ कर हिस्सा लिया। उषा मेहता ने जहाँ गुप्त रूप से रेडियो का संचालन किया, वहीं अरुणा आसफ अली व सुचेता कृपलानी जैसी महिलाओं ने क्रांतिकारियों को संरक्षण प्रदान किया।
- आंदोलन में कम्युनिस्ट पार्टी व मुस्लिम लीग ने भागीदारी नहीं की।
महत्त्व
- यह आंदोलन स्वतंत्रता के अंतिम चरण को इंगित करता है। इसने गाँव से लेकर शहर तक ब्रिटिश सरकार को चुनौती दी।
- भारतीय जनता के अंदर आत्मविश्वास बढ़ा। समानांतर सरकारों के गठन से जनता में उत्साह की लहर दौड़ी।
- जनता ने अपना नेतृत्व स्वयं संभाला जो राष्ट्रीय आंदोलन के परिपक्व चरण को सूचित करता है।
- इस आंदोलन के दौरान पहली बार राजाओं को जनता की संप्रभुता स्वीकार करने को कहा गया।