ऑशविट्ज़ की मुक्ति की 75वीं वर्षगाँठ | 29 Jan 2020

प्रीलिम्स के लिये:

ऑशविट्ज़ का मुक्ति दिवस

मेन्स के लिये:

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान घटित घटनाएँ, द्वितीय विश्वयुद्ध एवं भीषण नरसंहार से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

27 जनवरी, 2020 को पोलैंड में ऑशविट्ज़ की मुक्ति (Auschwitz's Liberation) की 75वीं वर्षगाँठ मनाई गई।

पृष्ठभूमि

  • द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ऑशविट्ज़ यूरोप में नाज़ियों द्वारा स्थापित यातना केंद्र था।
  • 27 जनवरी, 1945 को सोवियत सैनिकों ने द्वितीय विश्वयुद्ध के सबसे बुरे यातना शिविरों में से एक ऑशविट्ज़ बिरकेनौ (Auschwitz-Birkenau) को मुक्त किया था। उस समय से यह एक यादगार अवसर बन गया है और हर साल अंतर्राष्ट्रीय होलोकॉस्ट (बलिदान) दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जर्मन नाज़ी सरकार ने यूरोप के लगभग 17 मिलियन लोगों की सात हत्या केंद्रों में में हत्या की थी। इन सात हत्या केंद्रों में ऑशविट्ज़ का शिविर सबसे प्रसिद्ध और आकार में सबसे बड़ा था।

होलोकॉस्ट इतिहास में 27 जनवरी का महत्त्व

  • नाज़ी जर्मनी के पतन से पहले दूसरे विश्वयुद्ध के अंतिम चरण के दौरान नाज़ी अधिकारियों ने यूरोप में फैले शिविरों से कैदियों को ज़बरन ऑशविट्ज़ शिविर में ले जाना शुरू कर दिया था। ध्यातव्य है कि कैदियों को पैदल ही भूखे-प्यासे ठंड में ही ऑशविट्ज़ शिविर में ले जाया जाता था जिसे डेथ मार्च (Death March) कहा गया।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, शिविरों में युद्ध कैदियों को मुक्त करने से रोकने और मानवता के खिलाफ अपराधों से संबंधित साक्ष्यों को मिटाने के लिये कैदियों को यूरोप में अन्य शिविरों में ले जाया जा रहा था तथा जो कैदी बहुत बीमार और विकलांग थे उन्हें शिविरों में मरने के लिये छोड़ दिया जाता था।
  • द्वितीय विश्वयुद्ध के अंत में सोवियत रेड आर्मी ने यूरोप के विभिन्न सामूहिक कैद और यातना शिविरों में जाकर वहाँ बंद कैदियों को मुक्त करना शुरू किया। इसी क्रम में सोवियत सेना से सर्वप्रथम जुलाई 1944 में पोलैंड में माजदानेक शिविर (Majdanek Camp) को मुक्त कराया तथा 27 जनवरी, 1945 को आर्मी ने ऑशविट्ज़ में प्रवेश किया और वहाँ बंद कैदियों को मुक्त कराया था।
  • वर्ष 2005 में संयुक्त राष्ट्र ने ऑशविट्ज़ से कैदियों की मुक्ति के संदर्भ में 27 जनवरी को अंतर्राष्ट्रीय होलोकॉस्ट स्मरण दिवस के रूप में घोषित किया।
  • ध्यातव्य है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान यूरोप के ऑशविट्ज़ में घटने वाली हृदयविदारक घटनाओं से मुक्ति के कारण 27 जनवरी का दिन होलोकॉस्ट इतिहास में महत्त्वपूर्ण है।

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ऑशविट्ज़ शिविर का उपयोग

पूरे यूरोप से कैदियों को इस शिविर में लाया जाता था और फिर उन्हें दो भागों में विभाजित किया जाता था- पहले भाग में वे कैदी जो काम कर सकते थे और दूसरे वे कैदी जिन्हें मार दिया जाना था।\

बाद में उन कैदियों को गैस चैंम्बर में ले जाकर मार दिया जाता था तथा काम कर सकने वाले कैदियों से दासता के तहत श्रम कराया जाता था।

ऑशविट्ज़ यातना शिविर अलग कैसे?

कई कारकों ने ऑशविट्ज़ को यूरोप के अन्य शिविरों से अलग बनाया।

  • ऐतिहासिक रिकॉर्ड के अनुसार, नाज़ी अधिकारियों द्वारा कैदियों को विशेष रूप से ऑशविट्ज़ में विस्थापित करने के प्रयासों के बावजूद कुछ कैदी जीवित बच गए थे जिन्होंने नाज़ी अधिकारियों के खिलाफ गवाही दी।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, ऑशविट्ज़ में दो उद्देश्यों के लिये शिविर बनाए गए थे:
    • कैदियों से श्रम कराने के लिए एक शिविर के रूप में
    • और एक तबाही शिविर के रूप में, जिसमें आधुनिक शवदाहगृह होते थे और जो गैस कक्षों से सुसज्जित होते थे जिनका उपयोग कैदियों को मारने के लिए किया जाता था।
  • यह शिविर पोलैंड के ओस्विसिम (Oswiecim) शहर में एक बड़े क्षेत्र में फैला था जो तीन खंडों में विभाजित था:
    • ऑशविट्ज़ I जो कि मुख्य कैंप था।
    • ऑशविट्ज़ II-बिरकेनौ में तबाही शिविर और गैस कक्ष शामिल थे।
    • और ऑशविट्ज़ III कई छोटे शिविरों से बना था जिसमें नाज़ी सैनिकों द्वारा कैदियों को नाज़ी कंपनियों में श्रम के लिये मज़बूर किया जाता था।
  • ऑशविट्ज़ का शिविर मूल रूप से पोलैंड के राजनीतिक कैदियों को पकड़ने के लिए बनाया गया था लेकिन मार्च 1942 तक यहूदी कैदियों का यातना केंद्र बन गया।

भीषण नरसंहार से प्रभावित वर्ग

  • नाज़ियों ने न केवल यहूदियों को निशाना बनाया बल्कि उन्होंने अपनी विचारधारा का इस्तेमाल अपनी जातीयता, राजनीतिक मान्यताओं, धर्म और यौन अभिविन्यास के आधार पर लोगों के साथ भेदभाव करने और उन्हें सताने के लिये किया।
  • लगभग 75,000 पोलिश (पोलैंड के) नागरिक, 15,000 सोवियत युद्ध कैदी, समलैंगिकों और राजनीतिक कैदियों एवं अन्य लोगों को भी जर्मन सरकार ने ऑशविट्ज़ कॉम्प्लेक्स में मौत के घाट उतार दिया था।
  • ज़बरन औशविट्ज़ भेजे गए लगभग 1.3 मिलियन लोगों में से लगभग 1.1 मिलियन लोग मारे गए थे जिनमें से अधिकांश यहूदी थे।

ऑशविट्ज़ की मुक्ति के बाद की घटनाएँ

  • द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद के वर्षों में, यूरोप में नाज़ी अधिकारियों और विभिन्न शिविरों में मानवता के खिलाफ अपराधों को बढ़ावा देने वालों पर कार्यवाही की गई।
  • कुछ नाज़ी जर्मनी के पतन के बाद अपने अपराधों की जवाबदेही से बच गए थे। उनमें से कई अधिकारियों ने अपनी पहचान बदल ली और यूरोप, अमेरिका तथा दुनिया के अन्य हिस्सों में भाग गए।
  • ऑशविट्ज़ का शिविर होलोकॉस्ट की भयावहता का एक महत्त्वपूर्ण अनुस्मारक बन गया और वर्ष 1947 में पोलैंड की सरकार ने इस स्थल को राजकीय स्मारक बना दिया।
  • वर्ष 1979 में यूनेस्को ने ऑशविट्ज़ स्मारक को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की अपनी सूची में शामिल किया।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस