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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

5वां भारतीय मक्का सम्मेलन

  • 26 Mar 2018
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?
20-21 मार्च को फिक्की द्वारा पाँचवें भारतीय मक्का सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इस अवसर पर यह रेखांकित किया गया कि पिछले कुछ वर्षों में मक्का उत्पादन में काफी वृद्धि दर्ज की गई है, जो रकबे के साथ ही उत्पादकता में बढ़ोतरी की वजह से संभव हुआ है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु 

  • 1950-51 में भारत में सिर्फ 1.73 मीट्रिक टन (MT) मक्का का उत्पादन हुआ था, जो 2016-17 में बढ़कर 25.89 MT हो गया और 2017-18 में इसके बढ़कर 27 MT होने का अनुमान है। भारत में मक्का की औसत उत्पादकता 2.43 टन प्रति हेक्टेयर है।
  • भारत में गेहूँ और चावल के बाद मक्का तीसरा सबसे ज़्यादा पसंद किया जाने वाला खाद्यान्न है। चार राज्यों मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और राजस्थान की देश के कुल मक्का उत्पादन में आधी से ज़्यादा की हिस्सेदारी है।
  • वर्तमान में भारत दुनिया के शीर्ष मक्का निर्यातक देशों में शामिल है। अमेरिका और चीन के बाद भारत मक्का का शीर्ष उत्पादक है। इसके बावजूद भारत की सिर्फ 25% जनसंख्या ही इसका खाद्य फसल के तौर पर इस्तेमाल करती है।
  • वैश्विक स्तर पर खाद्यान्न की मांग और उपभोक्ताओं की खाद्य प्राथमिकताओं के विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि भारत जैसे विकासशील देशों सहित अधिकांश विकसित देशों में मक्का को काफी पसंद किया जाता है।
  • इस मौके पर फिक्की और प्राइसवाटरहाउस कूपर्स (PWC) द्वारा संयुक्त रूप से मक्का विजन 2022 भी जारी किया गया।
  • भारत में मक्का के तहत सिर्फ 15% कृषि क्षेत्र ही सिंचित है। इसलिये मक्के की फसल के लिये पर्याप्त सिंचाई सुविधाएँ देना आवश्यक है, जिससे मक्के का उत्पादन, उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार किया जा सके।
  • भारत में मक्के के तहत लगभग आधा रकबा कर्नाटक, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में केंद्रित है तथा बिहार सहित ये राज्य मक्के के कुल राष्ट्रीय उत्पादन का 2/3 हिस्सा उत्पादित करते हैं। 
  • हालाँकि, मक्का की राष्ट्रीय उत्पादकता वैश्विक मानकों से काफी कम है। भारत की मक्का की पैदावार ब्राजील (5.5 टन/हेक्टेयर), चीन (6 टन/हेक्टेयर) और अमेरिका (10.2 टन/हेक्टेयर) से काफी कम है।
  • ICAR-भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान (IIMR), लुधियाना को मक्का के उत्पादन, उत्पादकता और स्थायित्व में सुधार के उद्देश्य से बुनियादी, रणनीतिक और शोध का काम सौंपा गया है।
  • सरकार कई माध्यम से आवश्यक वित्तीय सहायता उपलब्ध कराकर 28 राज्यों के 265 जिलों में मक्का उत्पादन को प्रोत्साहन दे रही है।
  • 2015-16 से इस अभियान को केंद्र व राज्य सरकारों के बीच 60:40 और केंद्र व पूर्वोत्तर एवं 3 पर्वतीय राज्यों के बीच 90:10 की साझेदारी व्यवस्था के तहत लागू किया जा रहा है। 

मक्का (MAIZE) की कृषि के लिये भौगोलिक दशाएं 

  • मक्का मुख्य रूप से वर्षा-आधारित खरीफ फसल है जिसे मानसून के आगमन से पहले बोया जाता है। तमिलनाडु में यह एक रबी फसल है जिसे सितंबर और अक्टूबर में बारिश होने से पहले बोया जाता है।
  • रुक-रुक कर होने वाली 50-100 सेंटीमीटर तक की वर्षा मक्के की कृषि के लिये अनुकूल होती है।
  • 100 सेमी. से अधिक वर्षा और वर्षा ऋतु में सूखे की लंबी अवधि मक्के की फसल के लिये नुकसानदेह है। वर्षा के बाद धूप मक्का के लिये बहुत उपयोगी है।
  • पंजाब और कर्नाटक जैसे कम वर्षा वाले  क्षेत्रों में इसकी सिंचाई द्वारा खेती की जाती है।
  • यह फसल आम तौर पर 21 डिग्री सेल्सियस से 27 डिग्री सेल्सियस के तापमान में अच्छी तरह से बढती है। हालाँकि यह 35 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सहन कर सकती है।
  • पाला अथवा फ्रॉस्ट (Frost) मक्का के लिये हानिकारक है और यह फसल केवल उन क्षेत्रों में उगाई जाती है, जहाँ एक वर्ष में लगभग साढ़े चार महीने पालारहित होते हैं।

मक्का की कृषि के लाभ 

  • मक्का रकबे के संदर्भ में दुनिया की दूसरी सबसे महत्त्वपूर्ण अनाज की फसल है और इसे 'अनाज की रानी' (Queen of Cereals) कहा जाता है। 
  • भारत में कम-से-कम 15 मिलियन किसान मक्के की खेती करते हैं और इससे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 650 मिलियन से अधिक के कार्य-दिवसों का सृजन होता है। कुल कृषिगत उत्पादन में मक्का का हिस्सा 2% है।
  • मक्का अन्य अनाजों की तुलना में पानी की कम मांग करता है और यह एक C4 फसल है।
  • C4 पौधे, वे पौधे होते हैं जो कार्बन-डाइऑक्साइड स्थिरीकरण के क्रम में प्रथम उत्पाद 4-कार्बन परमाणु युक्त यौगिक तथा ऑक्सैलो-ऐसीटिक अम्ल का निर्माण करते हैं।
  • इससे प्रकाश संश्लेषण अधिक दक्ष तरीके से होता है। इसके अतिरिक्त मक्का एक 'डे नियुट्रल' (Day Neutral) फसल है।
  • यह कम अवधि में प्रति हेक्टेयर अधिक उपज देता है और इसे किसी भी मौसम में उगाया जा सकता है।
  • इसे खाद्यान और चारे दोनों के रूप में प्रयोग में लाया जा सकता है। इसलिये किसानों की आजीविका और आय सुरक्षा में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
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