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सामाजिक न्याय

57.3% एलोपैथिक चिकित्सक अयोग्य

  • 14 Aug 2019
  • 3 min read

चर्चा में क्यों? 

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आँकड़ों में कहा गया है कि वर्तमान में 57.3% एलोपैथिक चिकित्सकों (Allopathic Practitioners) के पास पर्याप्त योग्यता नहीं है। 

प्रमुख बिंदु: 

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) ने चिकित्सक और जनसंख्या का 1:1000 के अनुपात को मानक निर्धारित किया है। लेकिन वर्तमान में भारत का चिकित्सक-जनसंख्या अनुपात 1:1456 है। इसके अतिरिक्त चिकित्सक घनत्व भी शहरों के 3.8 की अपेक्षा गांँवों में केवल 1 है। 
  • शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत चिकित्सकों के वितरण में कमी के कारण ग्रामीण क्षेत्र की गरीब जनसंख्या अच्छी गुणवत्ता वाली चिकित्सा देखभाल से वंचित है।
  • भारतीय चिकित्सा अधिनियम, 1956 की धारा 15 के अनुसार राज्य चिकित्सा रजिस्टर (State Medical Register) पर नामांकित चिकित्सक के अतिरिक्त राज्य में अन्य किसी अयोग्य व्यक्ति को चिकित्सा कार्यों हेतु प्रतिबंधित किया गया है।
  • स्वास्थ्य, राज्य सूची का विषय है इसलिये ऐसे मामलों से निपटने की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होती है।
  • सरकारी रिकार्ड के अनुसार 31 दिसंबर, 2018 तक कुल 11,46,044 एलोपैथिक चिकित्सक मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ( Medical Council of India) के साथ पंजीकृत थे।
  • भारत में 7.63 लाख आयुर्वेद, यूनानी और होम्योपैथी चिकित्सक हैं, जिनमें से लगभग 80% चिकित्सक चिकित्सा हेतु उपलब्ध हैं जिनकी संख्या लगभग 6.1 लाख है। 
  • एलोपैथिक चिकित्सकों को आयुर्वेद, यूनानी और होम्योपैथी चिकित्सकों के साथ सम्मिलित करने   पर नया चिकित्सक-जनसंख्या अनुपात 1: 884 का हो जाएगा।
  • थाईलैंड, यूनाइटेड किंगडम और चीन आदि देशों तथा न्यूयॉर्क जैसे शहरों ने सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं के माध्यम से बेहतर स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान की है।
  • भारत में भी छत्तीसगढ़ और असम राज्य ने सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं के माध्यम से सामुदायिक स्वास्थ्य क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन किया है और हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ (Harvard School of Public Health) द्वारा कराए गए स्वतंत्र मूल्यांकन के अनुसार उनका प्रदर्शन भी बहुत अच्छा रहा है।

प्राथमिक देखभाल के लिये दक्ष चिकित्सकों के प्रशिक्षण में निवेश किया जाना चाहिये लेकिन सामुदायिक स्वास्थ्य को सुगम बनाने के लिये सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं की क्षमता को भी नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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